जब दुनिया बनी तो एक विस्फोट हुआ। उस विस्फोट के बाद एक ध्वनि प्रगट हुई, उस ध्वनि से तरंगित नाद को ‘‘ओ३म्’’ कहा जाता है, यही ब्रह्माण्ड की आदि ध्वनि कहलाती है। जो आज तक कण-कण में गूंज रही है, यही सृष्टि के सृजन का मूल तत्व है, गुरुतत्व भी यही है। परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग इसी से मिलता है, सद्गुरु शिष्य में इसी तत्व को जगाने की दृष्टि देते हैं।
साधक का गुरुतत्व जग जगा फिर उसे किसी की जरूरत नहीं पड़ती, यहां तक कि बाहर के गुरु की भी नहीं। मंदिर के घण्टे के नाद, शंख की उभरती फुंकार, सागर के लहरों से उठती हुंकार, आसमान में बादलों के बीच गरजन, शांत नीरव वातावरण का संनाटा आदि जर्रे जर्रे में जो कुछ गुंजायमान है, वह सब का सब ‘‘ओ३म्’’ का ही गुंजन है।’ वास्तव में ओंकार अद्भुत ब्रह्माण्डीय गूंज है।
परमात्मा ने इसे हमारे अंतःकरण की आवाज में स्थित कर दिया है, यही हमारे चेहरे से लेकर हर अंग के नूर में भर दिया है। यहां तक कि शरीर की बनावट में भी ओम ही है, नाक-आंखें, कान, नासिका, हाथ, ओठ, अंदर का मुख ओ३म् रूप है। पूरा शरीर ही ओंकार है। हम सब ओ३म् ही हैं। यही अनहद नाद है, जो सारी दुनिया में चल रहा है।’
मंत्र में शक्ति पड़ती है ओंकार के कारण, कार्य में ऊर्जा का जागरण भी ओ३म् से ही सम्भव हुआ है। आकार में जो ओ३म् है, वही अनुभूति में गुरुतत्व है। हर गुरु इसी की अनुभूति लेकर धरती पर आता है और अपने वंशजों, शिष्यों मेें अपने अपने ढंग से इसी तत्व को उतार देने के लिए व्याकुल फिरता है। ध्यान में इसी ओंकार की ध्वनि सुनी जाती है, यही अन्तर्नाद है। सभी मतों, पंथों, सम्प्रदायों में इसी की साधना किसी न किसी रूप में कराई जाती है। अनाहत नाद की उपासना का प्रचलन अनन्तकालीन व विश्व-व्यापी है।
हां तत्कालीन ऋषियों ने आंतरिक व वाह्य प्रकृति अनुसार ओंकार की अनुभूति अलग अलग शब्दों में की और अपनों को उससे जोड़ा। इसीलिए हर धर्म में ओंकार की किसी न किसी रूप में प्रतिष्ठा है, उदाहरणार्थ सनातन का ओम, तिब्बतियों में हुं आदि रूपों में ओंकार का ही प्रयोग होता है। पाश्चात्य विद्वानों में ओंकार को लेकर अनुभूति जन्य विविधता और भी अधिक है।
इसीलिए तत्वानुभूति एक होने के बावजूद अभिव्यक्तिगत वर्णन में बहुत विविधतायें हैं, ॐ कार के लिए फ्वर्ड लोगोस, हिस्पर्स फ्राम द अननोन, इनर हृयस, द लेग्वेज आफ सोल, प्रिमार्डियल साउन्ड, द व्हायस फ्राम हैवन, द व्हायस आफ सोल आदि वाक्यों से अभिव्यक्ति दी।
वहीं गणितज्ञ व दार्शनिक पाइथागोरस ने इसे सृष्टि का संगीत (म्यूजिक आफ द स्फियर्स) से संबोधित करते हुए कहा व्यष्टि (माइक्रो काज्म) को समष्टि (मेक्रोकाज्म) से जोड़ने में यह नाद-साधना अतीव उपयोगी सिद्ध होती है। स्वामी विवेकानन्द के शब्द में ओंकार को मदर आफ नेम्स एण्ड फार्म्स बताया। अन्य भारतीय मनीषियों ने इसे प्रणव ध्वनि, उद्गीथ, स्फोट, अनाहत, ब्रह्मनाद आदि अनेक नामों से पुकारा है।
बाइबिल कहता है-फ्इन दि विग²लग वाज दि वर्ड, दि वर्ड वाज विद गौड, दि वर्ड वाज गौड।’ अर्थात सृष्टि के आरम्भ में केवल शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ही ईश्वर था। शिव पुराण, उमा संहिता ऽण्ड 26 में अनाहत नाद का माहात्म्य उच्च स्तरीय गाया गया है।
जैसे सिख पंथ श्रद्धा से आदरपूर्वक ओंकार सतनाम का उच्चारण करता है। जैन साधु नमोकार अर्थात ओ३म् नमो सिद्धणाम्, नमो अरिहन्ताणाम का उच्चारण करते हैं। बौद्ध अनुयायी ‘‘ओ3म् नमो पद मे ओ३म्’’ का उच्चारण करते हैं। वहीं मुसलमान या क्रिस्चियन में सीधे ओ३म् नहीं दिखता, लेकिन वैसी ही मिलती-जुलती ध्वनि मुसलमान ‘‘आमीन’’ और क्रिस्चियन ‘‘आमेन’’ प्रयोग करते हैं। इस प्रकार यह ध्वनि एक जैसी सब जगह विराजमान है। इसी ध्वनि से योगी ध्यान की गहराई में उतरकर गुरु गरिमा की अनुभूति करते और कराते हैं, कहा भी गया है कि-
अर्थात ओंमकार बिन्दु से इस ध्वनि का उच्चारण करके योगी परमेश्वर को प्राप्त करते हैं। यही वह ध्वनि है जो भक्तों की सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करके दुःखों को दूर करती, मुक्ति दिलाती है।
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Thank you Guruji…Hariom