तीर्थों के तीर पर जप, तप, ध्यान करना सौभाग्य माना जाता है, भगवान शिव भी यही कहते हैं। हमारे आध्यात्मिक वाङ्मय वेद, शास्त्र, स्मृति, पुराण सभी में यही संदेश है। तीर्थ इस पृथ्वी और सूक्ष्म जगत दोनो का तेज स्वरूप है। यह महत् का तेज है, विश्व रचनाकर्ता, ज्ञानरन्ध होने पर मोक्ष दाता और अनुभूति के समय आनन्ददाता है। अतः दैविक उत्थान की अवस्था में आने वाली स्थितियों को गौ पद कहा गया है।
यहां तीर्थ भाव को गौ सेवा में ध्यान व स्थित होना है। यही तिलक व भूमध्य केन्द्र पर ध्यान तीर्थस्थान का फल देने वाला बताया गया है। भगवान का घर इस शरीर में हृदय स्थान है। हृदय को चित्त स्थान कहा गया है और ‘‘चिदाकाशमाकाश वासं भजाम्यहं’’ अर्थात चित्त के आकाश के भी आकाश में अर्थात् परे से भी अति परे मेरा परम धाम है। यह ध्यान केन्द्र भी है, जो भगवत फल देने वाला है।
इसी प्रकार गौशाला में हरिभजन करने का आशय ‘‘ज्ञानरूप सूर्य का ध्यान’’ करना है, जहां गौएं रहती हैं, वह गौ स्थान या ‘महत् तेज’ का स्थान माना जाता है, यहीं निराकार ब्रह्म में अपनी वृत्ति को मिलाकर लीन हो जाना गोष्ठे का भजन है। यह गौशाला सर्वदेवों का स्थान है, जो शुभ फल देने वाला है, ‘‘सर्वदेवमयी हि गौ’’ अर्थात तीर्थ स्थान में सब कुछ प्राप्त करना सुनिश्चित है।
भगवान शिव कहते है जो गुरुधाम, गुरुसंरक्षण, गुरु सान्निध्य में व गुरु निर्धारित क्षेत्र में ध्यान साधना के लिए संकल्पित होते हैं, उन्हें भौतिक लोक एवं आत्म-परमात्म लोक की याचना नहीं करनी पड़ती। पूज्य सद्गुरुदेव महाराज जी प्रतिवर्ष मनाली क्षेत्र में ‘‘ध्यान एवं चान्द्रायण तप’’ के लिए इसीलिए शिष्यों के साथ आते हैं, क्योंकि यह तीर्थ भूमि है।
हजारों वर्षों से मनाली ट्टषियों की साधना स्थली, भक्तों-योगियों-साधकों की तपःस्थली-तीर्थ स्थली रही है। तीर्थों में की गयी साधनायें एवं तीर्थ प्रवास जीवन में सकारात्मक परिणाम लाते हैं यह सर्व विदित है। वहां पिछले कई सौ सालों से मनाली में आध्यात्मिक तप-साधना की गतिविधियां चल रही हैं। ऐसे तीर्थ में ध्यान आदि के प्रयोग करने से अद्भुत लाभ मिलत ही हैं, जीवन व घर-परिवार में सकारात्मक बदलाव आते हैं, शुभ कर्म करने की प्रवृत्तियां जन्म लेती हैं। अंदर की सकारात्मक ऊर्जा जागृत होती है, जिससे जीवन में सुख-सौभाग्य जगते हैं।
तीर्थ चेतना से जुड़े लोग घोर कष्ट-कठिनाइयों में भी सदैव प्रसन्न व सकारात्मक ढंग से जीवन जीते देखे जाते हैं और सफल जीवन के स्वामी बनते हैं। हिमांचल प्रदेश का मनाली क्षेत्र उच्च स्तर का प्राचीन आध्यात्मिक तीर्थ है। पूज्य सद्गुरु महाराजश्री द्वारा अपने शिष्यों-स्वजनों को वहां चाण्द्रायण तप आदि की साधनायें अपने सान्निध्य व मार्गदर्शन में कराने का उद्देश्य है कि इन्हें प्राचीन ऋषियों की तपःऊर्जा का लाभ मिल सके और साधक अपने जीवन की कठिनाइयों-जटिलताओं से मुक्त हो, सुख-सौभाग्य के द्वारा खुलें।
मनाली महर्षि मनु की नगरी है। मनाली देवताओं की तपस्थली, जागृत आध्यात्मिक स्थली, परमतपस्वी प्रबुद्ध सन्तों की वर्षों की तपस्या का अनुभव समेटे प्राचीनतम तीर्थ क्षेत्र है मनाली। यह चौदह हिमाच्छादित पर्वत शिखरों के मध्य स्थित पुरातनकाल से भगवान शंकर-मां पार्वती की निवास स्थली रही है। देवताओं का आगमन स्थल तथा सिद्धों, साधकों, योगियों एवं संत-महापुरुषों की साधना भूमि है यह महर्षि मनु की नगरी। इसीलिए संतगण तपोभूमि व विशेष आध्यात्मिक क्षेत्र मानते हैं। ऐसे पावन, मनोरम दिव्य आध्यात्मिक तथा दैवीय स्पन्दनों से युक्त पावनी व्यास नदी के तट पर पूज्य गुरुदेव के साथ ‘‘ध्यान व चाण्द्रायण तप’’ सौभाग्य का विषय है।
इस वर्ष मई एवं जून माह में पूज्यश्री के पावन सान्निध्य एवं निर्देशन में यहां साधना शिविरों का आयोजन किया जा रहा है। इस शांत, एकान्त, वातावरण ध्यान शिविर के भागीदार बनकर आत्मानुभूति एवं आध्यात्मिक सौभाग्य जगाने का सौभाग्य पायें। इस दिव्य प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान ट्टषियों की तपः ऊर्जा भी मदद करेगी। जिससे साधकों के जीवन एवं परिवार में सुख-सौभाग्य बरसेगा एवं सुख-शांति के द्वार खुल सकेंगे।
टीम-
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