आध्यात्मिक लोक यात्रा का मार्ग ही जीवन का राजमार्ग है और मन की एकाग्रता उसका आधार है। मन की शक्ति एकाग्रता में है, एकाग्रता अंतर्मुखी होकर ही बन सकती है।
आपका मस्तिष्क शक्तिशाली तब बनता है, जब आप शांत-एकाग्र होते हैं, तनाव रहित होते हैं। जब मन तनाव ग्रस्त
होता है, तो मस्तिष्क विचलित हो उठता है। जीवन लड़खड़ाने लगता है, परिस्थितियाँ विपरीत हो उठती हैं। जीवन कमजोर पड़ता है।
एकाग्रता लाने के लिये आप जिस कार्य को कर रहे हैं, उसी में पूरी ऊर्जा लगा दें, आधे-अधूरे मनः शक्ति से बचें, अपने को न खण्डित होने दें, न बिखरने। यदि ऐसा कर सके, तो जीवन के लोक व्यवहार में एकाग्रता सहज सधने लगेगी। इसी प्रकार आप जो भी कुछ कर रहे हैं, उसे प्रेम करना सीखें। भोजन कर रहे हों या मनोरंजन, खेल रहे हों अथवा कोई भी कार्य निपटा रहे हों, सम्पूर्ण क्रिया-कलाप को स्वीकारना एवं प्रेम करना शुरू करें। इस प्रकार खण्डित होने से बचायें और कार्य को प्रेम करना शुरू करें, इस प्रयोग मात्र से जीवन में एकाग्रता सधने लगेगी और जीवन सम्पूर्ण की दिशा में खिलना शुरू होगा।
हम जो कुछ भी शरीर में आहार के रूप में डालते हैं, उससे आपका शरीर निर्मित होता है। अतः जो कुछ खायें उसे प्रेम की दृष्टि से देखें। शरीर में जो जायेगा, वह ऊर्जा बनेगा, अतः उसे देखकर नाक-भौं न सिकोड़ें, अपितु प्रेम की दृष्टि से देखें, सुनिश्चित यह प्रेम दृष्टि ही जीवन को पोषण देती है और नव ऊर्जा जगाती है। यदि अंतः में प्रेमदृष्टि है, तो आहार कैसा भी रूखा-सूखा हो स्वाद जन्म ले ही लेगा। सच कहें तो व्यक्ति के शरीर का निर्माण कैलोरी-प्रोटीन-वसा-आयरन आदि से जरूर होता है, लेकिन इन्हें जीवन में ऊर्जा में बदलने, प्राण ऊर्जा में बदलने का कार्य हमारे प्रेमपरक दृष्टिकोण एवं एकाग्रता ही पूरी करती है। सम्बन्धों, परिस्थिति, हर कुछ में प्रेममय दृष्टि से अनुकूलता आ जाती है।
इसी तरह संगीत सुनने में, हंसने-बोलने में, संबंध निर्वहन में, रास्ते चलते, छाया-धूप का आनन्द लेते समय तन्मयता बनाकर रखें। जीवन सधने लगेगा। जीवन आगे बढ़ने लगेगा। एकाग्रता, तन्मयता एवं प्रेममय दृष्टि के साथ ही अटैचमेंट एवं डिटैचमेंट की सोच भी बनाकर चलें। अर्थात् जो कुछ जितना जरूरी है, उतना ही उससे संबंध जोड़ें, उसके बाद उससे दूर हो कर बहते हुए जीवन के साथ आगे बढ़ लें, न ठहरें, न पकड़ें। इससे अंतःकरण में शांति एवं शुकून की शक्ति जन्म लेगी।
इस प्रकार क्रमशः जीवन वजनदार एवं प्रभावी बनने लगेगा। विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों के बीच अपरिवर्तित बने रहने की शक्ति जीवन में आयेगी, मन मजबूत होगा, अडिग होगा। तब आप बार-बार परिस्थितियों से हार कर भी मजबूत होंगे और मन से कह सकेंगे कि न हारा हूँ , न हारूंगा। जीवन की परिस्थितियों में विजयी था, विजयी हूँ और विजयी रहूँगा यही जीवन का असली राजमार्ग है।