नमन करने से मन सुमन होता है | आत्मचिंतन | Atmachintan | Sudhanshu Ji Maharaj

नमन करने से मन सुमन होता है | आत्मचिंतन | Atmachintan | Sudhanshu Ji Maharaj

Atmachintan

नमन करने से मन सुमन होता है

नम जाओ यानी झुक जाओ : झुकने का अर्थ है कि आप विनम्रता की पराकाष्ठा पर हैं। विनम्रता ही सीढ़ी है आध्यत्मिक बनने के लिए क्योकि जो अकड़ में है वह कभी प्रभु का प्यारा नही हो सकता ! भगवान को सबसे अधिक पसंद है तो नम्रता क्योकि उससे आपके विचार शुद्ध होते है , पवित्रता आती है , और आप भगवान की राह पर चल सकने की क्षमता रख पाते हैं !

ग्रंथों में वर्णन है कि घमंड से चढ़ी हुई आंखे, और क्रूरता से भरा दिल भगवान को बिल्कुल पसंद नही है । यह तो प्रेम का मार्ग है, सरलता का मार्ग है , प्रभु प्यारे के धाम तक पहुंचने का ! टेढ़ा होकर चलना, अहंकार से भरे रहना यह किसी भक्त के लक्षण हो ही नही सकते। टेढ़ा पेड़ काट कर गिराया जाता है और जलने के लिए प्रयोग आता है : सीधे पेड़ो को संभालकर काटा जाता है और वह फर्नीचर बनाने के काम आते हैं!

विनम्रता

आप जितना जितना विनम्र होते जाओगे उतनी ही शांति ह्रदय में उतरेगी, प्रेम का सागर बहने लगेगा । विनम्र होकर किसी भी व्यक्ति का मन जीत पाओगे ओर एक सुखद वातावरण बना रहेगा चाहे वह घर हो या आपकी कार्यशाला या आपका कोई व्यवसाय! कहते हैं कि मीठा बोलने वाले कि तो मिर्ची भी बिक जाती हैं पर कड़वा बोलने वाले का तो शहद भी नही बिकता, अर्थ यही है कि सीधे बनकर, भोले बनकर आप भौतिक उन्नति भी कर सकते हैं और आध्यात्मिक प्रगति भी !

प्रणाम की मुद्रा

जब आप नमन करते हैं यानि प्रणाम की मुद्रा में होते हैं तो आशीर्वाद स्वतः ही उस व्यक्ति के ह्दय से निकलता है जिसको आप प्रणाम कर रहे हैं ! आशीर्वाद मांगा नही जाता , कमाया जाता है , सरल बनकर ! भोले भाव मे भगवान सब कृपायें लुटा देते हैं अपने भक्तों पर — भोले के लिए वह भोले हैं और टेढ़े के लिए भाले हैं: अपनी पात्रता हमे स्वयम विकसित करनी होती है सरल, विनम्र बनकर !

इसी प्रकार कहा जाता है कि गुरु के समक्ष भी जाओ तो अपना अहम अपनी अकड़ छोड़कर जाओ – आप राजा हैं या फ़क़ीर,  गुरु के दर प्रसब समान हैं – इसीलिए प्राचीन काल मे राजा जब किसी महान पुरुष से मिलने जाते थे तो अपना मुकुट बाहर छोड़ कर साधारण व्यक्ति बनकर ही गुरु के चरणों मे शीश झुकाते थे और झोलियाँ भरकर वापस आते थे!

सार यही है कि नम्रता ही आपको मान देतीहै, सम्मान देतीहै, ज्ञान देती है, और उस परम पद की ओर लेकर चलती है जहां आनंद ही आनंद और सुख ही सुख है!

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