जीवन तो उतार चढ़ाव का नाम है जिसमें धारा कभी अनुकूल बहती है तो कभी प्रतिकूल! इसमें स्वयं को नियंत्रित रखना ,संतुलित रखना आना आवश्यक है क्योंकि जब विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं तो व्यक्ति निराश हो जाता है यह निराशा कभी कभी इतना भयंकर रूप धारण कर लेती है कि आत्महत्या तक करने के विचार मन में आने लगते हैं! परंतु सफल व्यक्ति वही है जो इनके बीच अपना संयम बनाकर रखे। प्रकृति में भी यही दो धाराएँ देखने को मिलती हैं -कभी पतझड़ है तो कभी वसंत का आगमन, चारों ओर हरियाली ,रंगीनियाँ !
इसलिए जीवन को कहा गया है कि यह तलवार की धार पर चलने के समान है! संभल कर चलोगे तो पार उतर जाओगे , हिल डुल गये तो कट कर गिर जाओगे! बहुत बार आपके ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव भी आपको प्रभावित करता है ,आपकी एंडोक्राइन ग्लैंड्स भी ऐसा स्राव निष्कासित करती हैं जिसके कारण आपके मूड बदलते हैं -कभी उत्साहित तो कभी निराश !
प्रश्न यह है कि यह परिवर्तन तो चलेगा, इसको कोई न रोक सकता है न बदल सकता है तो हमें क्या करना है कि स्वयं को कंट्रोल कर सकें !
सबसे मुख्य बिंदु होगा कि हमें भगवान से और अपने जीवन के निर्देशक सदगुरु से अवश्य जुड़ना है! क्योंकि वहीं से हमें वह शक्ति प्राप्त होती है जो हमारी निराशा को तोड़ सकती है -भगवान पर विश्वास की वह है! मेरे साथ है , उसकी कृपाएं मिल रही हैं!
यह भरोसा ही आपको इस गड्ढे से बाहर निकालेगा! और इस मार्ग पर चलने के लिए गुरु की आवश्यकता अवश्य होगी क्योंकि वही विधि देते हैं, पार करना सिखाते हैं -कहा है न गुरु बिन माला फेरता गुरु बिन करता दान: कह कबीर निष्फल भये जानत वेद पुराण -अर्थात् गुरु के बिना अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ ही नहीं सकते!
इसलिए संसार सागर से पार होने के लिए समर्पित होकर उनका आश्रय लो -ध्यान एक ऐसा माध्यम है जिस पर चलकर बहुत शीघ्र नकारात्मक सोच , निराशा ,कुंठा आदि से निजात मिल सकती है -गुरु से विद्या ग्रहण करो इसकी और सबसे अहम बिंदु है “कृपा “ जब गुरु की मेहर मिल जाये तो शक्ति से पूर्ण हो जाते हैं और जीवन यात्रा को सुखद आनन्दमय बना लेते हैं!