सम्पूर्ण विश्व में जिस ग्रंथ के प्रति सर्वाधिक लोगों की श्रद्धा, विश्वास है, जो ग्रंथ संसार के अनेक अनेक भाषाओं में अनुदित हुआ, जिससे इस ग्रंथ के नायक एवं युगनायक भगवान श्री कृष्ण का हर व्यक्ति को परिचय मिलता है। जो भारत, भारत की संस्कृति को समेटे सार्वभौम ग्रंथ है, उसे श्रीमद्भगवद् गीता कहते हैं।
गीता में समाये संदेश सम्पूर्ण मानवता के लिए, सब जातियों, सभी मत-पंथों के लिए तथा सब तरह के चिंतन मनन करने वाले लोगों के लिए है। इसमें समाया संदेश किसी वर्ग विशेष के लिए सीमित नहीं है, अपितु समस्त मनुष्य जाति के लिए होने के कारण इस ग्रंथ पर सम्पूर्ण मानव समाज किसी न किसी रूप में श्रद्धा रखता है।
इस प्रकार एक दृष्टि से इस ग्रंथ के सहारे इस गीता रूपी गीत के युग गायक भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए-
कृष्णं शरणं गच्छामि।सत्यं शरणं गच्छामि।
योग शरणं गच्छामि।सत्यं शरणं गच्छामि।
धर्मं शरणं गच्छामि।
अर्थात् जब हम सब श्रद्धा भाव से कहते हैं कि मैं धर्म की शरण में, कृष्ण के शरण में, सत्य की शरण में, योग की शरण में, ध्यान की शरण में जाता हूं। तो अंतःकरण श्रीकृष्ण के अनेक-अनेक वरदान, आशीर्वाद से आहलादित हो उठता है। मानवता धन्य हो उठती है। क्योंकि इसमें ऐसे सद्संकल्प समाये हैं, जिससे देवमानवों, उनकी संस्कृति, परम्पराओं का संरक्षण और राक्षसी वृत्तियों, असुरत्व के विनाश का आश्वासन स्वयं नारायण स्वरूप श्रीकृष्ण की ओर से मिलता है। साथ ही हर युग के, प्रत्येक विधाओं के हर कृष्ण के लिए एनकेन प्रकारेण इस दायित्व को निर्वहन करने का स्पष्ट संदेश भी प्राप्त होता है कि जो भी इस युग दायित्व को निभाने में समर्थ होगा, उसी को युग नमन वंदन करेगा-
ज्ञान, आध्यात्मिकता से भरा यह ग्रंथ एक प्रकार का उपनिषद है। कृष्ण भगवान द्वारा उपनिषदों के सार रूप में दिया गया एक ऐसा अमृत है, जो केवल उस बीते युग के लिए नहीं था, न ही वर्तमान तक के लिए है, अपितु यह सदा-सदा के लिए, सब के लिए प्रेरणीय है और रहेगा।
इस ग्रंथ की अनेक आयामों में अनेक-अनेक विद्वानों द्वारा इतनी व्याख्याएं हुई, असंख्य मु खों से इसका उच्चारण हुआ, अलग अलग ढंग से लोगों ने गीता के विषय में अपने भाव व्यक्त किये, गीता के संदेश कहे, जो अपने में अद्भुत है। दुनियां के लिए यह ऐसा ग्रंथ है, जो प्रत्येक को अधिकार देता है अपने प्रभु के प्रति अपने विचार पुष्प अर्पित करने का।
यह ग्रंथ संवाद ग्रंथ भी है। अर्जुन की जिज्ञासा और भगवान श्री कृष्ण के उत्तर से उपजा जीवात्मा और परमात्मा का अद्भुत संवाद इसमें समाया है। ऐसा संवाद जो मनुष्य मात्र के हृदय में उठते प्रश्नों पर आधारित है और इन सबका समाधान परक उत्तर स्वयं भगवान श्री कृष्ण देते हैं। इसलिए यह पवित्र ज्ञान से भरा ग्रंथ है। यह उस परिस्थिति में दिया गया संदेश व समाधान है, जब धर्म का लोप हो चुका था, लोग अपने कर्तव्य को भूल बैठे थे। मर्यादाओं का लोप हो चुका था, बडे़-बडे़ विद्वान जीवकोपार्जन के लिए राजाश्रयी हो रहे थे।
उनमें अतुल्य बल था, लेकिन किसी असहाय की सहायता करने का साहस नहीं बचा था। अद्भुत ज्ञान था, लेकिन उनमें सत्य को सत्य कहने की दृष्टि भोथरी हो चुकी थी। कुल बधुओं का अपमान अपनों के सामने होता रहना आम था, ऐसे अधर्म के युग में युग अवतार के अवतरण की आवश्यकता ही पड़ती है। भगवान इसी दौर में आये और उन्होंने मानवता को नव न्यायकारी चेतना से जोड़कर युग को गीता के रूप में जीवन जीने का सत्य परक आधार दे गये।
ध्यान रखने की जरूरत है कि भगवान श्री कृष्ण ने उस समय के प्रचलित ज्ञान को एक नया रूप, नयी युगीन व्याख्या दी। आदर्श को व्यवहारिक पक्ष दिया, क्योंकि जब तक आदर्श व्यवहार में नहीं उतरता, तब तक वह आदर्श आदर्श ही रह जाता है, जीवन को उससे कोई लाभ मिल पाना असम्भव होता है। इसके अतिरिक्त जो भी पवित्रतम ज्ञान चला आ रहा था, श्रीकृष्ण ने रूढ़ियों, परंपराओं, रीति-रिवाजों से अलग हटा कर उसे एक नया रूप दिया। इस प्रकार श्रीमदभगवद्गीता युग की आवाज बनी।
वास्तव में युद्ध भूमि में दिया गया भगवान श्रीकृष्ण का यह अमृत ज्ञान युद्ध उकसाने के लिए नहीं था, अपितु यह ज्ञान मनुष्य की कुंठित हो चुकी चेतना को सत्य, न्याय, सेवा-सहायता हेतु जागृत करने के लिए था। आइये इस दिव्य ज्ञान को नवसंकलित करके मानवता के हित हेतु प्रदान करने वाले उन व्यास ऋषि को नमन करके आत्म सात करें और जीवन को धन्य बनायें।