कहते हैं यज्ञ के यजमान को सर्वाधिक लाभ तब मिलता है, जब यज्ञ गुरु संकल्पित, गुरु आश्रम में गुरु निर्धारित तिथि पर सम्पन्न हो। इससे उनकी वर्षों से अपूर्ण कार्य और कामनायें पूर्ण होती हैं, भवबाधाओं से मुक्ति मिलती है, कष्ट कटते और सुखद सौभाग्य जगते हैं।
संतगणों का मत है कि जब कोई समर्थ सदगुरु यज्ञ के लिए संकल्पित होता है, तो यज्ञ की गरिमा, महिमा और परिणाम आदि का स्तर ऊँचा हो जाता है। ऐसे यज्ञ का लक्ष्य अपने शिष्यों का आध्यात्मिक विकास, रोजमर्रा के जीवन में आने वाली अनेक तरह की सूक्ष्म एवं कारण स्तर की रुकावटों से शिष्यों को मुक्त करना होता है, जिससे वे वर्षभर अपने जीवन को सुख, शांति, सौभाग्य, आनंद के साथ निष्कंटक जी सकें। अन्य विशेष लाभ वाला रहस्य छिपा ही रह जाता है, इसे समर्थ गुरु सदैव प्रकट करने से बचते हैं। तपोभूमि आनन्दधाम में अगले दिनों सम्पन्न होने वाला श्री गणेश लक्ष्मी महायज्ञ इसी स्तर की उपलब्धियों वाला है।
‘‘अधिकांश शिष्य इस यज्ञश्रृंखला को सामान्य ढंग से लेकर उसकी महिमा को नजरंदाज करके बड़ी चूक कर जाते हैं, क्योंकि उन्हें गुरु संकल्पित यज्ञानुष्ठान के पीछे के महान लक्ष्य का आभास तक नहीं होता और गुरुदेव भी इस रहस्य को अपने जीवन भर रहस्य ही बने रहने देना चाहते हैं। हां वे शिष्य अवश्य उन गूढ़ रहस्यों की कुछ झलक अनुभव करते हैं, जिनकी गुरु के प्रति श्रद्धा-विश्वास परिपक्व अवस्था में पहुंच गया है अथवा गुरु अनुशासित साधना ऊँचाई पा चुकी है।’’
महत्वपूर्ण यह भी कि वार्षिक यज्ञ अनुष्ठान जैसी गुरु अनुशासित ये श्रृंखलायें अपना विशेष आध्यात्मिक प्रवाह लेकर आगे बढ़ती हैं, इसलिए भी इससे जुडे़ साधको को हर सम्भव निरंतरता बनाकर रखनी चाहिए। इससे याजक-यजमान के कुल परिवार से जुडे़ पूर्वजों को भी संतोष-शांति मिलती है तथा उस कुल में भविष्य में जन्म लेने वाली संतानें उन्नत आत्मा वाली होती हैं, उनके आगमन में अवरोध नहीं पड़ता।
पूज्य सद्गुरुदेव श्री सुधांशु जी महाराज जी के संरक्षण में आनन्दधाम परिसर में वर्षों से सम्पन्न होने वाले 108 कुण्डीय लक्ष्मी-गणेश महायज्ञ आदि श्रृंखलायें इन्हीं चैतन्य स्तर की सम्भावनाओं से भरी है। यह एक प्रकार का सूक्ष्मऋषि सत्ताओं
द्वारा प्रेरित व गुरुसत्ता निर्देशित विशेष वैज्ञानिक अध्यात्म परक प्रयोग है। इसलिए यजमानों के लिए यज्ञ का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। अतः इसका लाभ लेना अत्यधिक पुण्यदायक है।
तपोभूमि, गुरुभूमि आनन्दधाम आश्रम परिसर में विगत 20 वर्षों से अनवरत सम्पन्न हो रहे इस महायज्ञ की दृष्टि से यह वर्ष और भी विशेष महत्व वाला है। यजुर्वेद पद्धति से श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ के आयोजन से साधकों के संकल्प पूरे होंगे, साथ विश्व ब्रह्माण्ड की दिव्य ऊर्जा को आकर्षित करने की अनुभूति भी सम्भव बन सकेगी। सुख-शांति की पूर्ति, दैवीय पुण्य का लाभ सहज मिलना ही है।
आगामी दिनों महाराजश्री के सान्निध्य में वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला यह ‘‘यजुर्वेदीय एवं श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ’’ भक्तों-श्रद्धालु शिष्यों के लिए स्वास्थ्य-सुख, धन-समृद्धि, नौकरी-व्यापार में उन्नति-प्रगति के साथ हर शुभ मनोकामनाओं को दिलाने वाला साबित होगा। यजुर्वेद का मंत्र यजु- 2/25 साधक-याजकों को यही प्रेरणा तो देता है-
दिवि विष्णु व्यक्तिस्त जागनेत छंदसा। तते निर्भयाक्ता योµस्यमान द्वेष्टि यंच वचं द्विषमः। अन्तरिक्षे विष्णुव्यक्रंस्त त्रेप्टुते छन्दसा। सतो नर्भक्तो। पृथिव्यां विष्णुर्व्यक्रस्तंगायणे छन्दसा। अस्यादत्रात्। अस्ये प्रतिष्ठान्ये। अगन्य स्वः संज्योतिषाभूम।
इसलिए हर समर्पित गुरु भक्तों, शिष्यों को गुरुधाम में सम्पन्न होने वाले इस यज्ञ में यजमान बनकर यज्ञ का लाभ लेना ही चाहिए। भक्तजन घर बैठे ऑनलाइन यजमान बनकर भी इस यज्ञ का पुण्यलाभ प्राप्त कर सकते हैं।
विश्व जागृति मिशन