हे मेरे प्रभु! मेरे हृदय में यज्ञरूप बनकर विराजमान हो जाओ। दुनिया में जहां कहीं जाऊं, जिधर भी चलूं, जो भी कर्म करूं, हर समय तेरी ही अनुभूति रहे। हे मेरे प्रभु! मैंने श्रद्धा का आसन बिछाया है, भावना की अग्नि जलाई है। इसी में विराजमान हो जाओ। जिससे जीवन धन्य हो उठे। हे प्रभु! मेरे मालिक! कभी मुझे भुलाना नहीं। मेरा मन थके नहीं, मेरी वाणी में तेरा नाम, चेतना में तेरा सद्कर्म बस जाए। कानों में तेरी महिमा गूंजे। आंखें तेरी महिमा देखने को सदैव लालायित हों। आप
समपूर्ण भुवन की ‘नाभि’ रूप हो। मेरे भी हृदय में प्रेम, माथे में शीतलता, चेहरे पर प्रसन्नता और घर में खुशहाली देना। हे प्रभु! यही हम याचना करतेे हैं। चहुँदिश तेरा ही नाद गूंजे यही वन्दना, यही प्रार्थना, यही अभ्यर्थना है हमारी, स्वीकार करो दयालु हे यज्ञ देव! स्वीकार करो।।
ओ3म् शांतिः। शांतिः।। शांतिः।।। ओ3म्