हे अनाथों के नाथ;निर्बलों के बल; निर्धनों के धन; दीनों के दीनानाथ; मैं आपका हूँ; मेरा सब कुछ आपका ही है! मैं आपके हाथों का खिलौना हूँ!
मैं आपका ही उपकरण, आपका ही यंत्र हूँ! आपकी इच्छा ही मेरी इच्छा हो;आपकी इच्छा पूर्ण हो।
मेरे जीवन की डोरी आपके हाथ में ही है!सबका न्याय करने वाले न्यायकारी आप ही मेरे पिता,बंधु और सखा हैं!मेरी आत्मीयता अब आपसे कभी कम न हो!
मुझे सदैव आपकी सहायता चाहिए!जीवन में कठोर, उबड़-खाबड़ कंटीले टेढ़े-मेढ़े मार्ग पर मेरा हाथ पकड़े रखना;मेरी परीक्षा मत लेना।
मैं परीक्षा के योग्य नहीं हूँ; मुझे तो अपनी करुणा के सहारे ही पार लगा दीजिए, मुझे तो केवल आपका ही भरोसा है
दुखों की आँधियों में; विपदाओं की झंझोड़ती हवाओं में,मैं निर्बल आत्मा कितनी बार चोट खाकर रोया हूँ।
अब और मत रुलाना! निर्दयी संसार का पाषाण हृदय कभी नहीं पिघला,बस आप कभी कठोर मत होना।
हे नाथ मेरा हाथ पकड़िये और मुझे पार उतारिये! मैं तुम्हारी शरण में हूँ!मेरी इस प्रार्थना को स्वीकार कीजिए।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः!!
सादर हरि ॐ!