आइये! श्रद्धाभाव से हाथ जोड़़कर परम पुनीत, परम पावन, सच्चिदानंद स्वरूप परमेश्वर को अपने हृदय में हम आमन्त्रित करें। आभान करें इस अग-जग में सर्वत्र प्रकाशमान, सर्वत्र अपनी शक्तियों को बिखेरने वाले, संसार का संचालन करने वाले, इसका प्रबंधन भी, सुव्यवस्था भी और रचना भी करने वाले आप ही हो प्रभु! आप ही आनन्द के दाता हैं, आप ही शान्ति देते हैं, सन्तुष्टि देते हैं। इस जगत में भी लाते हैं और इस जगत से वापिस भी बुला लेते हैं।
हे परम पावन परमेश्वर! आपको बारम्बार प्र्रणाम, आपकी कृपाओं के प्रति आभार, कृतज्ञ भाव लेकर हम आपको बारम्बार प्रणाम करते हैं, नमन करते हैं प्रभु! और ये विनती भी करते हैं, इस पृथ्वी ग्रह पर हमारा ये जीवन कर्मबंधन से बंधा हुआ है और कर्मबंध ही हमारा भाग्य बना हुआ है और प्रत्येक व्यक्ति का भाग्य उसे नचाता है।
आपने कर्म करने की शक्ति प्रत्येक को दी है लेकिन सभी लोग अपने-अपने मति, अपने संस्कार, अपने अन्तर्ज्ञान के अनुसार ही कर्म करते हैं। उसी के अनुरूप अपना रास्ता खोजते हैं, अपने दुख दूर करने के लिये जब भी कोई व्यक्ति कर्म करता है अगर अन्तःकरण उसका कलुषित है बहुत छोटा मार्ग ढूंढ लेगा।
उस छोटे मार्ग में उसे लगता है मेहनत करके ही नहीं चालाकी करके, चोरी करके, कपट करके, छीनकर, दूसरों का हक माकर मैं अपने आपको सुखी कर सकता हूं और फिर वह अनंत समय के लिये अपने जीवन में दुख बो लेता है और कर्म का बंधन कटता नहीं है। जब आप कृपा करते हैं किसी भी मनुष्य पर, उसके अन्तःकरण को शुद्ध करते हैं, हृदय में प्रेम देते हैं, बुद्धि सुबुद्धि बनाते हैं।
उसी के अनुरूप फिर कर्म भी उसी तरह होते हैं कि वह अपना जीवन जीने के लिये कलुषित व्यवहार नहीं करेगा, कलुषित कार्य नहीं करेगा। आन्तरिक शान्ति और सन्तुष्टि और चेहरे पर प्रसन्नता का भाव, कर्म करने का उत्साह, व्यवहार में माधुर्य-शालीनता और प्रभु से जुड़ा हुआ उसका चित्त निरंतर दिखाई देता है।
ऐसे व्यक्ति के अन्दर दिव्य स्वरूप, देवत्व का स्थापन होता है। जिसके कारण प्रत्येक व्यक्ति को अनुभव होता है कि यह व्यक्ति इस धरती पर होकर भी इस धरती का नहीं है। शायद कोई स्वर्ग से आया हुआ, देवत्व से भरा हुआ कोई देवदूत है, कोई फरिश्ता है, सज्जन है, सज्जनता का व्यवहार करता है।
जैसे चन्दन को काट भी दें तो भी जिसने काटा उस हथियार पर भी सुगंध लगा देता है, जला दिया तो अग्नि को भी सुगन्धित कर देता है, हवा मिल गयी तो हवा को भी सुगन्धित कर दिया। ऐसा व्यक्ति अपने व्यवहार से सबको सुगन्ध से भरता रहता है और वह सुगन्ध उसकी नहीं परमात्मा की सुगन्ध होती है उसके हृदय में, वही बाहर प्रकट होती है।
प्रभु हम यही प्रार्थना करते हैं कि हम सदा आपसे जुड़ें रहें और आपकी सुगन्ध हमारे हृदय में, हमारे रोम-रोम में फैलती रहे और हम बाहर के वातावरण को सुवासित करते रहें। जीवन धन्य हो और हमारे कर्म के बंधन कटें। परमानन्द से युक्त हो जायें। आपके दर पर आये हुये सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करना, भक्ति का दान देना, सुख-समृद्धि प्रदान करना, सबके घरों में खुशहाली देना यही विनती है प्रभु। आशीष दीजिये सबको।