हे प्रभु! हाथ सेवा-सत्कर्म करने के लिए सदैव तत्पर रहे | Prayer | Sudhanshu Ji Maharaj

हे प्रभु! हाथ सेवा-सत्कर्म करने के लिए सदैव तत्पर रहे | Prayer | Sudhanshu Ji Maharaj

प्रार्थना

प्रार्थना

दोनो हाथ जोड़ लीजिए सभी और प्रेम पूर्वक दोनों आंखें बंद कर लें। माथे को शांत करें, अपने प्यारे प्रभु की कृपाओं को ध्यान में रखकर प्रसन्नता का भाव चेहरे पर लाइये। देने वाले दाता की कृपाओं को याद करके हृदय में खुशी भरिये और उस दया निधान, कृपा निधान से प्रार्थना करिये कि हे दयानिधान, कृपा निधान, सच्चिदानन्द स्वरूप परमेश्वर तुम असीम हो, अनंत हो और इस पुरे संसार के आधार आप ही हो।

दाता दयालु सबके भंडार भरपूर करने वोल तुम्ही तो सबसे बड़े दाता हो प्रभु। हम सब बच्चों का प्रणाम स्वीकार करो।

चरण-शरण में उपस्थित होकर हम सभी आपके सामने झोली फैलाकर प्रार्थना करते हैं प्रभु, जाने में, अनजाने में न जाने कितनी-कितनी त्रुटियां, कितने दोष, कितनी गलतियां हम सबसे होती है और कर्म का सिद्धांत और आपका न्याय रूप वह दण्ड व्यवस्था हम सबके साथ, सभी जीवों के साथ शुरु हो जाती है।

पर माता-पिता, बन्धु सखा भी तुम्ही हो, दयालु देव भी तुम्ही हो, अपने बच्चों पर कृपा करना, दया करना, सतपथ दिखाना, लेकिन सम्भालना भी सही। गिर न जायें, खो न जायें इस दुनिया में, अपना लक्ष्य पहचान सकें, अपने कर्ज दूर कर सकें, अपने मर्ज दूर कर सकें और अपने फर्ज निभा सकें और हर दिन अर्ज-अरदास-प्रार्थना करते रहें, आपसे अपना हृदय जोड़े रखें।

चेहरे पर आनंद रहे, मन में प्रसन्नता, शांति रहे, हृदय प्रेम से भरपूर रहे। ये पांव सतमार्ग पर बढ़े और हाथ सेवा-सत्कर्म करने के लिए सदैव तत्पर रहे। धन से कोई किसी भी प्रकार का अभाव न हो। दयालु कृपा करना। अपने बच्चों पर मेहर बरसाये रखना, सबकी झोलियां भरना। बारम्बार आपको प्रणाम हम करते हैं।
शांतिः शांतिः शांतिः

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