हे मर्यादा पुरुषोत्तम कण-कण में बसने वाले राम! आप साक्षात् धर्म के विग्रह हैं। जीवन धर्म से युक्त होता है, वही अमर भी होता है, चिरस्थायी होता है, जीवन में सुख-शांति उसी के कारण आती है।
मर्यादा हो जीवन में संतुलन आता है। धैर्य हो हम दुःखों के पार जाते हैं। आपके स्वरूप का ध्यान करते हुए हम अपने जीव को धन्य बनायें। आप पतित पावन हैं, पतितों को भी पावन करते हैं। हर व्यक्ति अपने जीवन में कहीं न कहीं पतन की अवस्था में होता है।
पतन और उत्थान के बीच वो जो एक पग, एक कदम होता है वह एक कदम यदि हमारा पतन की ओर बढ़ गया तो फिर गिरते ही जायेंगे और अगर वही एक पग उत्थान की ओर बढ़ गया तो फिर ऊपर उठते जायेंगे।
प्रभु हमें आशीष दीजिए की हमारे निर्णय उचित हो और हमारा पग उत्थान की ओर जाये, पतन की ओर नहीं। सही निर्णय ले सकें, सही ढंग से जीवन को चला सखें, आशीर्वाद दीजिए हम सबका कल्याण हो, सबके घर में रामायण का वास हो।