हे जीवन के आधार जगदीश्वर, परमेश्वर! शुद्ध-बुद्ध मुक्त स्वभाव, हे सच्चिदानन्द स्वरूप। सबके हो और सबमें हो। हमारे अंतर में हमारे बाहर में जो कुछ है सब आप जानते हो। हमारे हृदय में क्या है, हमारे मन में क्या है, हमारे विचारों में क्या है, हमारे कर्म में क्या है, सबको आपको पता है भगवान। कितने अच्छे, कितने बुरे, कितने खोटे, कितने खरे जो भी हम हैं आप सब जानते हैं। हे प्रभु जैसे भी हैं, हैं हम आपके और आपकी शरण में हैं। जन्म-जन्मांतरों से इस आत्मा की यात्र चली आ रही है और यह पड़ाव मनुष्य के देह में फिर आया है।
फिर जागने का मौसम आया, फिर कुछ करने का ऐसा कि जन्म-जन्मांतरों के दुःख देने वाले कर्मों को धोने का अवसर आया। इस जन्म में यह कृपा तो हुई प्रभु। गुरुचरणों में ध्यान गया, सत्संग में रुचि गई। नाम जपने में भी रुचि आने लगी। आसन पर बैठने भी लग गये। हमें और कृपा चाहिए प्रभु। नाम भी जपे, सत्कर्म भी करें। अंतःकरण को शुद्ध करते-करते, अपनी आत्मा को पवित्र करते-करते हर दिन अपने आपको और ऊंचा उठायें। जीवन तो किसी न किसी तरह पूरा हो ही जायेगा।
जीवन यापन के साधन भी मिलते रहेंगे। सुख-सुविधा भी मिल जायेगी। अपने-अपने भाग्य के अनुसार सब कोई प्राप्त कर लेते हैं और प्रभु दुर्भाग्य मिट सके, परम सौभाग्य जाग सके, जन्म-जन्मांतरों का यह कर्मों का हिसाब अब समाप्त हो और अब हम मुक्त हो सकें। कष्टों के दुःखों के पार जा सके। ऐसे ही ज्ञान, ऐसे ही ध्यान, ऐसी भक्ति, ऐसा ही कर्म करने की शक्ति प्रदान करो प्रभु। ऐसी युक्ति दो कि मुक्ति हो। ऐसी युक्ति दो की दुःखों से छुटकारा हो। ऐसी युक्ति और बुद्धि-सुबुद्धि प्रदान करो प्रभु कि हम वह कर सकें, जो आपको पसंद आये। उस तरफ चलें जो मार्ग आपकी तरफ लेकर चले।
जीवन में आनंद रहे, प्रेम रहे। सुख-शांति रहे, सबकी उलझने दूर हो। सब आपका प्रेम पा सके। जो भी आपके द्वार पर आकर बैठें, आस लगाये हुए हैं, सबका कल्याण करो। वह प्रेम अगाध श्रद्धा दो, जो गुरु चरणों से होकर प्रभु आपके द्वार तक जा सके। यही विनती है इसे स्वीकार करना प्रभु।
¬ शांतिः शांति शांतिः ¬