हम अपना व दूसरों का उद्धार कर सकें | प्रार्थना | Sudhanshu Ji Maharaj

हम अपना व दूसरों का उद्धार कर सकें | प्रार्थना | Sudhanshu Ji Maharaj

हम अपना व दूसरों का उद्धार कर सके

हम अपना व दूसरों का उद्धार कर सकें!

हे अजर,अमर अविनाशी सतचिदानंद प्यारे प्रभु!हे सर्वव्यापक,सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ मेरे प्यारे देव!हे दीनों के दीनानाथ!करुणानिधान!दयालु भगवान! हमारा मंगल और व्यापक कल्याण आपके सर्वव्यापी हाथों में ही संभव है! हे अशरण के शरण! प्रकाश स्वरुप!आज हम सर्वात्मभाव से आपके सामने आत्म समर्पण करते है!अब हम अपनी जीवन नौका को आपको समर्पित करते है!हमारा जीवन संग्राम आपकी ही अध्यक्षता में होगा और आपकी अध्यक्षता में किये गए संग्रामों में हमें अवश्य ही विजय मिलेगी!हे जीवनसार ! हम आपकी शरण में है!हमारी रक्षा करें!हमें उबारें! हमें पाप ताप से पार उतारें! यही हमारी विनती है!इसे स्वीकार करें!

हे ज्योतिर्मय!हे शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वभाव!हमारा प्रणाम स्वीकार हो!हे प्यारे देव!मनुष्य अपनी जीवनयात्रा में आवश्यकताओं,इच्छाओं में बंधा रहता है! जिनके कारण मनुष्य इस संसार में तरह-तरह के कर्म करता है,भटकता है, भ्रमित होता है और दुःख भोगता है!जो इच्छा हमारी उन्नति कराए, हमें आपका प्रेम दे सके, जिससे-हमारे अंदर शांति आ सके, हम अपना और दूसरों का उद्धार कर सकें, उस इच्छा शक्ति को आप हमें प्रदान कीजिए!

हे प्यारे प्रभु

आप हमें वह सुबुद्धि प्रदान कीजिए, जिसके प्रकाश में हम उचित निर्ण्य लेकर उत्तम पथ पर अग्रसर हो सकें! हे प्यारे प्रभु!ऐसी सुमति प्रदान कीजिए, कि हम अच्छे-बुरे का भेद कर सकें और सत्कर्म की शक्ति हमारे अंदर बनी रहे!
हे नारायण!हे दीनवत्सल!आप ऐसी कृपा करें कि जिससे जीवन के अंतिम भाग तक यह शरीर कर्मशील बना रहे, कर्मठ बना रहे, सेवा करता रहे, लेकिन सेवा कराए नहीं! सदैव चेहरे पर मुस्कान,माथे पर शीतलता और वाणी में माधुर्य बना रहे! हे दाता!इतना धन-समृद्धि प्रदान करना कि ये हाथ कभी दूसरों के आगे फैले नहीं और हमारे कार्य पूर्ण रहें! हे प्यारे प्रभु!आंखों में ऐसी प्रेम दृष्टि देना जिससे कि हम द्वेष और घृणा से ऊपर उठकर जी सकें! हम कभी भी वैर के बीज को संसार में फैलाएं नहीं!जहां भी जाएं शांति की सुखद छाया चारों ओर फैला सकें!ऐसा हमें आशीर्वाद प्रदान करें! आपसे हमारी यही विनती है। इसे स्वीकार करें!

ॐ शांतिः-शांतिः-शांतिः ॐ!

सादार हरि ॐ जी!

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