हे अनन्त भगवान, कृपया मुझे उन महान भक्तों की संगति दें जिनके हृदय नितान्त कल्मषरहित हैं तथा जो आपकी दिव्य प्रेमा-भक्ति में उसी प्रकार लगे रहते हैं जिस प्रकार नदी की तरंगे लगातार बहती रहती हैं | मुझे विश्वास है कि भक्तियोग से मैं संसार रुपी अज्ञान के सागर को पार कर सकूँगा जिसमें अग्नि की लपटों के समान भयंकर संकटों की लहरें उठ रही हैं | मैं आपकी दिव्य गुणों तथा शाश्वत लीलाओं को सुनने के लिए पागल होना चाहता हूँ |
हे कमलनयन भगवान ! जैसे पक्षियों के पंखविहीन बच्चे अपनी माँ के लोटने तथा खिलाये जाने की प्रतीक्षा करते रहते हैं, जैसे रस्सियों से बंधे भूख से पीड़ित छोटे-छोटे बछड़े गाय दुहे जाने की प्रतीक्षा करते रहते हैं या जैसे वियोगनी पत्नी अपने प्रवासी पति के वापस आने तथा सभी प्रकार से तुष्ट किये जाने के लिए लालायित रहती है, उसी प्रकार मै आपकी प्रत्यक्ष सेवा करने का अवसर पाने के लिए सदा उत्कंठित रहूँ | मेरा मन, मेरी चेतना तथा मेरा सर्वस्व सदैव आपके ही प्रति आसक्त रहे |
हे कृष्ण, ये सारी विपत्तियाँ हम पर बार बार आयें, जिससे हम आपका दर्शन बार बार कर सके | इस प्रकार हमें बारम्बार होने वाले जन्म तथा मृत्यु को नही देखना पड़ेगा | हे ब्रह्माण्ड के स्वामी, हे विश्वरूप, कृपा कर मेरे स्वजनों के प्रति मेरे स्नेह-बंधन को काट डालें | हे मधुपति, जिस प्रकार गंगा नदी बिना किसी व्यवधान के सदैव समुंद्र की और बहती है, उसी प्रकार मेरा आकर्षण अन्य किसी और न बंट कर आपकी और निरन्तर बना रहे । एहि आपसे हमारी करजोड़ विनती है, कृपया इसे स्वीकार कीजिये।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॐ !
हरि ॐ जी !
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