हे असीम, हे अगोचर, हे अनंत, हे शुद्ध-बुद्ध मुक्त स्वभाव, हे सर्वव्यापी सर्वेश्वर, हे जगदाधार सर्वेश्वर, शुद्ध-बुद्ध मुक्त स्वभाव, हम आपकी शरण में हैं प्रभु हे प्रभु! मन मस्तिष्क पवित्र हो बुद्धि- सुबुद्धि बनें सभी का कल्याण हो आप सबके हैं सब में हैं, सर्वत्र ही आपके नियम और आपकी व्यवस्थाएं काम करती हैं। आपकी दिव्य योजना के साथ ही ये संसार निरंतर गतिमान है।
अनेकानेक जीव इस संसार में अपने कर्मों के अनुसार आवागमन के चक्र के साथ बंधें हुए हैं। इस पृथ्वी ग्रह में आते ही और अपना कर्म करते-करते फिर अगली गति को प्राप्त होते हैं।
परमेश्वर हम सब पर बड़ा सौभाग्य हुआ कि हमें मनुष्य की देह मिली, सत्संग मिला, सत्गुरु का साथ मिला, सत्शास्त्रों को पढ़ने के लिए चिंतन करने का अवसर मिला।
अब ये जीवन हमारा धन्य हो सके, हमारा पढ़ा हुआ हमारा सुना हुआ हमारे जीवन का अंग बनें। हम अपने जीवन में आनंद को प्राप्त हो, शांति से युक्त हों, प्रसन्नता और प्रफुल्लता से खिलें, अपने कर्तव्य कर्म पूर्ण कर सकें।
दयानिधान हम पर ये कृपा कीजिए के हमारी वाणी में आपका नाम प्रतिष्ठित हो जाए, नाम जपने वाले बन जाए। हमारे पग इस तरह सिद्ध हो जाएं के लक्षय की ओर बढ़े और परम् लक्षय आपको मानें।
हमारे हृदय में आपका अनंत प्रेम सदा रहे और संसार के प्रति भी करुणा और सहयोग की भावना रहे। मन मस्तिष्क पवित्र हो बुद्धि- सुबुद्धि बनें हमारा भी कल्याण हो और हमारे द्वारा अन्यों का भी कल्याण होता रहे।
अपनी भक्ति का दान दीजिए और जीवन को आनंदित, प्रफुल्लित हम कर सकें, ऐसी सुबुद्धि और जीवन शैली दीजिए।
यही विनती है प्रभु स्वीकार करें
ॐ शान्ति: शान्ति शान्ति: ॐ