दयानिधान, कृपानिधान, शुद्ध-बुद्ध मुक्त स्वभाव, पतित पावन, मनभावन मेरे प्रभु! बारंबार आपको नमन करते हैं, षाष्टांग प्रणाम करते हैं प्रभु, अनंत कृपायें, अनंत दया, अनंत प्रकार से अनुग्रह आपने हम सब पर किया है। जीवन दिया, जीवन जीने के साधन दिये। सत्संग दिया, संन्मार्ग दिया, सद्गुरु का साथ दिया।
बड़ों का प्यार दिया और इस अवतारों की भूमि भारत भूमि में आपने जन्म लिया। अनेक-अनेक उपकार रातदिन आप करते हैं, हमारे रक्षक बनकर सदैव हमारे साथ रहते हैं। हमारी गलतियों का अंत नहीं पर प्रभु आपकी कृपा का भी कोई अंत नहीं। दयालुदेव यह कृपा हमेशा बनी रहे।
आपके दर पर आये हुए जितने भी भक्त हैं सबकी झोलियां भरना, खुशहाली देना, सुख और समृद्धि से भरपूर करना और अपने चरणों के प्रति प्रीति देना। गुरुजनों के प्रति हमारी श्रद्ध और वफादारी हमेशा बनी रहे। गुरुचरणों के प्रति वफादारी हमारी बने लेकिन नियम के प्रति भी हमारा अखण्ड व्रत चलता रहे। दान, धर्म, सेवा, सत्कर्म, जीवन से होते रहें और जब तक भी इस दुनिया में जियें हमारे हाथ-पांव काम करते रहें।
हमें परमुखापेक्षी मत बनाना। हमें किसी के सहारे की प्रभु जरूरत न पड़े। सहारा दें, सहारा लेने की आवश्यकता न पड़े। आर्थिक रूप से भी हम आत्म निर्भर बनकर जियें और मन से भी, तन से भी, धन से भी सब तरह से हमारी आत्मनिर्भरता बनी रहे। हे प्रभु भले ही हम इस संसार में सक्षम बनकर जियें, लेकिन आपके सामने सदैव विनीत रहें।
हमारी अक्षमता, केवल आपके सामने ही प्रकट हो। हम सब पर कृपा करना प्रभु और इस धरती पर बसने वाले सभी लोगों को रोजी-रोटी भी देना, खुशहाली देना, मुस्कुराहट देना। रोग-शोक-कष्ट-क्लेश से सभी को मुक्त करना।
धरती पर आये हुए बहुत बड़े अभिषाप इस रोग से मुक्ति देना और सभी लोगों के हृदय में जो प्रेम और दया, करुणा आ सके वह जरूर दीजिये। ये क्रूरता से आपका बना हुआ संसार, सुंदर संसार है। क्रूर लोगों के हाथों से नष्ट न हो। धरती फिर से हरी-भरी रहे, सब खुशहाल जीवन जीयें, यही प्रार्थना है। स्वीकार करना भगवान।
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परम पूज्य परम वंदनीय पतित पावन श्री सदगुरु देव महाराज जी के श्री चरणों में कौटी कौटी दणडवत प्रणाम नमन जय हो सदगुरु देव महाराज जी आपकी जय हो शुक्रिया आपकी हर दैन के लिए शुक्रिया आपकी दया दृष्टि सभी भक्तों पर सदैव बनी रहे औम गुरुवै नम औम नमो भगवते वासुदेवाय नम