नित नया जीवन, नित नई मृत्यु | Sudhanshu ji Maharaj

नित नया जीवन, नित नई मृत्यु | Sudhanshu ji Maharaj

नित नया जीवन, नित नई मृत्यु

काश मनुष्य यदि अपनी मृत्यु के अंतिम कुछ सेकेण्ड पूर्व की भाव दशा को कागज के टुकड़े पर लिख पाता, तो सम्भवतः अपनी पीड़ा इसी रूप में व्यक्त करता कि ‘‘दुनिया से जा रहा मैं वह अभागा इंसान हूँ, जिसने परमात्मा की दी हुई सेहत को दांव पर लगाकर जीवन भर पैसा कमाया। पैसे के लिए नींद खराब की, सुख-चैन खराब किया क्योंकि उसमें मुझे अपने अहंकार की संतुष्टि मिलती थी। इसी में सुख-चैन दिखता था। अंत में पैसा लगाकर सेहत पाने का प्रयास किया, पर आज सुख-चैन, रुपया-पैसा, सम्पत्ति सबकुछ इकट्ठा कर लेने के बाद उसे छोड़कर जा रहा हूँ। आज मेरी तिजोरी में रुपया पैसा है, पर जीने के लिए समय नहीं। भोगने की शरीर में शक्ति नहीं है। समय तो बिल्कुल नहीं है, दुःखद कि मन निराशा से भरा हुआ है। यद्यपि मैं सोचता था इतना इकट्ठा करने के बाद जिंदगी का आनन्द लूंगा। लेकिन अब अनुभव हो रहा है कि मुझे जिंदगी का आनंद हर लम्हें में लेना चाहिये था।

‘‘जो गलती मैंने की। तुम मत करना, जिंदगी को जिंदगी की तरह जीना। हर क्षण को पूरी जिंदगी मानना। सच तो यह है कि जो वक्त हाथ में है, वहीं मुट्ठी के रुपये पैसे हैं। कल का कोई भरोसा न करना। आज आपके पास जो भी समय है, उसका आनन्द ले सको तो हमारी तरह आपको एक-एक सेकेण्ड के लिए तड़पना नहीं पड़ेगा। जो तड़प मैं अनुभव कर रहा हूँ, आप अभी शायद ही अनुभव कर पायें क्योंकि तुम्हारे पास अकूत समय है।’’
‘‘सच कहें तो यह आपको अपनी पूरी जिंदगी का तजुर्बा बतला रहा हूँ। आप भी जिंदगी की तैयारी में सारा समय मत लगा देना। अपितु एक-एक क्षण उत्सव में लगाना। आप जीवनभर शुभ की ओर बढ़ना, तो यह अंतिम जीवन शुभ बन चलेगा। तुम्हें मैं बहुत प्यार करता हूँ। सावधान! मैं तुम्हें जगा रहा हूँ कि मेरे साथ जो घट रहा है, वैसा तुम्हारे साथ कभी न घटे।

हमारे ऋषियों ने जीवन को भगवान से जोड़कर जीने का संदेश इसीलिए दिया है कि हमें अंतिम समय में तड़पना न पड़े। अतः मात्र 10 मिनट ही सही, पर रोजाना जाप करने वाले बन जाओ, साथ ही जीवन व्यवहार में परमात्मा को पाने का अभ्यास करो जीवन धन्य हो जायेगा।
इसके लिए नित नया जन्म, नित नई मृत्यु का अभ्यास महत्वपूर्ण सूत्र है। यह हमें अंतिम मृत्यु पर तड़पायेगा नहीं। जब दिन की शुरुआत हो, तो समझना कि एक नयी जिंदगी शुरु हो रही है और जैसे ही दिन समाप्त हो, तो समझना एक जिंदगी आज पूरी हो रही है। इसी प्रकार रात्रि को परिवर्तन वाला समय मानना।

वैसे भी एक उजाले की समाप्ति के साथ दूसरे उजाले के आने के बीच विश्राम का काल है रात्रि। हर अगले दिन फिर एक नया जन्म शुरू होता है।
इससे जीवन में रोज-रोज नयी जिंदगी धारण करने का भाव उभरेगा। यह अभ्यास जीना-मरना समझायेगा, तब अंतिम जीवन के क्षण आपके सुखद बीतेंगे। अनन्तकाल से हमारे पूर्वज इसी अभ्यास से जीवन को धन्य करते आये हैं। आइये! आप भी उस दिव्य धारा से जुड़ें।

2 Comments

  1. Sharad says:

    Aapki bahut bahut kripa hai mere sadguru

  2. Suresh Chandra Sharma says:

    Most valuable advice cum art of life management in appropriate manner so as to achieve fulfillment and thus, purpose of life, explained by Maharajshree so beautifully and as usual, so simply.

    Grateful thanks n regards

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