जब कोई व्यक्ति साधना के क्षेत्र में उतरता है! तो उसे कुछ विशेष बिंदुओं का ध्यान रखना चाहिए! जिससे वह उस ऊँचाई को प्राप्त कर सके जिसके लिये उसने यह कदम बढ़ाया है! क्योकि बहुत चुने हुए व्यक्ति ही इस ओर आते हैं! , उनकी रुचि जागती है जिन पर प्रभु कृपा होती है!
सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है! संबुद्ध सतगुरु की शरण ग्रहण करना क्योकि! उसके बिना प्रगति होगी नहीं -चाहे कितने प्रयत्न करते रहे पर वही के वही गोल गोल घूमते जाते हैं! इसलिए गुरु की सन्निधि में , उनके निर्देशानुसार की गई साधना ही सफलता की प्रथम सीढ़ी है!
अब आता है अनुशासन -क्योकि! गुरु भी सबसे पहले अनुशासन ही देते हैं! जब तक आपका जीवन अनुशासन में नहीं बंधेगा तब तक बदलाव आयेगा नहीं : अनुशासन चाहिए खाने का , पीने का , हंसने का .बोलने का ,सोने का , जागने का – सब कुछ अनुशासित हो -जैसे नदी दो किनारों के बीच बहती है! तो उपयोगी है , किनारे तोड़कर बाहर आ जाये तो बाढ़ बन जाती है , इसी प्रकार आपको भी बनना है!
अगला बिंदु आता है! नियमों में अपने आप को बांधकर चलना : अपने दिन के समय को बाँटकर चले कि कितना समय किस काम के लिए निर्धारित करना है ताकि दिनचर्या सुचारू रूप से चल सके!
मौन साधना – यह सफल साधक होने का महत्वपूर्ण ही नहीं आवश्यक बिंदु है! साधक को अधिक बोलने से बचना चाहिए , नपा तुला बोले , सारपूर्ण बोले , बोलते समय यह भी ध्यान रखना है कि व्यंगात्मक वचन का प्रयोग नहीं करना क्योकि जीभ ही एक ऐसी इंद्रिय है जो इतना गहरा घाव देती है जिसका कोई उपचार नहीं -इसलिए बोलते समय सतर्क रहे!
अधिक संग्रह के चक्कर में भी साधक को नहीं रहना चाहिए – जितना आपकी जीविका को आसान बनाने के लिए आवश्यक है : उतना ही चाहिए — अधिक और अधिक . के चक्कर में अपनी ऊर्जा का ह्रास ना करे!
भोजन भी महत्वपूर्ण बिंदु है! क्योकि भोजन आपके विचारों को बहुत अधिक प्रभावित करता है! शुद्ध सात्विक भोजन वह भी सात्विक पवित्र वातावरण में बनाया हुआ आपको सात्विक करता है! यहाँ तक कि पानी की भी एक स्मृति होती है — इसलिए पानी पीते समय भी उसमे शुभ दृष्टि डालकर उसे अमृत जल बनाये!
यह शरीर आपको दिया गया जिस पर सवार होकर सौ वर्षों की यात्रा करनी है! -यह देव मंदिर है इसलिए हर प्रकार से इसको शुद्ध , पवित्र बनाये रखना चाहिये : जैसे अगरबत्ती की ख़ुशबू वातावरण को महका देती है -ऐसे ही आपका शरीर इतना सात्विक ऊर्जा से भर जाए जिस में प्रभु का सिंहासन विराजमान हो सके!
नित्य प्रति का व्यायाम ,प्राणायाम , सुबह शाम की सैर , पवित्र विचार सुनना , सत्संग जिसका माध्यम है! साथ ही अपने सदगुरु से विधियाँ सीखें कि ध्यान की गहराई में उतरकर अपने चक्रों का शुद्धीकरण कैसे करना है क्योकि वही ऊर्जा आपको ब्रह्मांड से जोड़ती है!
अंतिम बिंदु और सबसे अधिक महत्वपूर्ण की अपने Life Coach यानी अपने गुरु के प्रत्येक वचन में इतनी गहरी श्रद्धा रखे की जो वह कह रहे हैं – मेरे लिये ही कह रहे हैं और उनके चरणों में इतनी श्रद्धा समर्पण कि वह मेरे हैं और मैं उनका,गुरु कृपा से आप उच्च कोटि के साधक बन सकेंगे और जो गुरु में बह रहा है! वह आप में भी बहने लगेगा , गुरु कृपा ही केवलम -गुरु कृपा ही केवलम!
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You are right, Guruji! I religiously follow your teachings, though I am past 72. I visualize you every morning at around 4 am. Om Guruve Namah.