मन चंद्रमा और चंद्रायन तप | Shudhanshu Ji Maharaj

मन चंद्रमा और चंद्रायन तप | Shudhanshu Ji Maharaj

Mana Moon and Chandrayan Tapa

यजुर्वेद में कहा गया है-

यस्मान् न ऋते किच्चन कर्म क्रियते।

अर्थात्, इस मन के बिना कोई कार्य संभव नहीं होता।

मन करता है, तो हम कार्य करते हैं। मन नहीं करता, तो हम कार्य नहीं करते। कभी-कभी काम को आरंभ कर बीच में ही छोड़ देते हैं। हमारे वेद में मन को हृदय में निवास करने वाला बताया गया है। इसलिए भी इससे अलग हटकर या इसको हटाकर कोई भी कार्य करना असंभव ही है। मन को सर्वोपरि माना गया है, क्योंकि हमारे चारों पुरुषार्थों में इसे एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। लोग कहते हैं – मन जीता, तो जग जीता।

किंतु प्रश्न उठता है कि क्या मन से ऊपर कुछ भी नहीं है? कोई मन का कोई स्वामी भी है? हां, अवश्य है। वह है चंद्रमा। मन का स्वामी चंद्रमा ही तो है। तभी तो वह भगवान शिव के मस्तष्क पर विराजमान है, सुशोभित है।

चंद्रमा की गतिविधियों, चंद्रमा की कलाओं का हमारे मन और हमारे तन, दोनों पर गहरा और सीधा असर पड़ता है। देखा जाए, तो मन की सभी वृत्तियों को चंद्रमा ही नियंत्रित और संतुलित करता है।

कहते हैं न कि इसका चंद्रमा दोषयुक्त है, इसलिए मानसिक संतुलन बिगड़ा हुआ है। यहां तक कि समुद्र में ज्वार-भाटा भी चंद्रमा के कारण आता है। विशालतम समुद्र पर भी चंद्रमा की कलाएं असर डालती हैं और विशाल मन पर भी। जलचर की कई प्रजातियों का जीवन-चक्र भी चंद्रमा की कलाओं से जुड़ा है और मन की वृत्तियां भी।
अतः चंद्रमा का आदर महत्वपूर्ण है। भारतीय प्राचीन परंपराओं में इसका विशेष महत्व है। प्रायः सभी त्योहार चंद्रमा की कलाओं के हिसाब से ही मनाए जाते हैं। भगवान भी इससे दूर नहीं हैं। भगवान श्रीकृष्ण को 16 कलाओं में दक्ष कहा गया। 16 कलाएं, यानी पूर्णता की प्राप्ति। अपने सभी आयामों पर विजय पाना।

ऐसे में, चंद्रमा की 16 कलाओं के साथ कोई साधक जप-तप करता है, तो वह अपने मन पर विजय पा लेता है। वह अपने पापों से मुक्ति पाता है। चंद्रायन तप मनुष्य के अपने पापों से मुक्ति का महत्वपूर्ण माध्यम है। यह प्रायश्चित का मार्ग प्रशस्त करता है।

3 Comments

  1. Vjm kanta chhabra says:

    *”ज्ञान दे जाते हैं, एक पहचान दे जाते हैं,गुरु आपको,आपके अंदर छिपा इंसान दे जाते है कई कड़वे सबक सिखाते हैं इस तरह कि, विष से बचने वाला अमृतपान दे जाते हैं, गुरु को प्रभु से कम न जानिए, प्रभु की तरह गुरु भी मिटटी में प्राण दे जाते हैं ” ……. !!*
    *श्री गुरुवे नमः*

  2. पुणे से ताराचंद जांगिड़ says:

    प्रणाम गुरु देव महाराज जी गुरु माँ और अर्चिका जीजी के श्री चरणों में कौटी कौटी परणाम नमंन भागयशाली महशुश कर रहे हैं और गुरु देव ही है जो चंद्रमा के द्वारा मन को अपने वश में करने का रास्ता बताते हैं औम गुरुवै नम

  3. Poonam Malhotra says:

    Adorable

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