मनुष्य के अंदर आरोग्यता शक्ति भी है और रोगाणु भी, पर हमारे शक्तिशाली प्राण ही हमें रोगाणुओं से बचाते हैं। प्राण विद्या विशेषज्ञ कहते हैं कि वही प्राण शक्तिशाली होते हैं, जो जितना अधिक पवित्र एवं सूक्ष्मतम होते हैं। ऐसे प्राणों से भरे व्यक्तित्व में रोगाणु व वायरस आसानी से प्रवेश नहीं कर पाते। अतः अपनी प्राणशक्ति को इतना सूक्ष्म, पवित्र व शक्तिशाली बनाएं कि आप संसार के संघर्षों में अडिग रह सकें। संघर्ष कैसा भी क्यों न हो। शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति, आत्मबल इसी प्राण से बढ़ता है। ज्ञान के तंतु भी इसी से झंकृत होते हैं। शरीर एवं मन इसी से ऊर्जावान बनते हैं। इन्हीं प्राणों से बुद्धि की जड़ता टूटती है, कोशिकाओं में जीवनी शक्ति का विकास होता है। कहते हैं भय, शोक, भोग व विछोह का आघात प्राणों पर पड़ता है, तो स्थूल प्राण इससे जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। स्थूल प्राण जड़ता से युक्त होते हैं।
क्योंकि यदि प्राण स्थूल व जड़ है, तो व्यक्ति तो रोग, भोग, शोक, भय से भयभीत रहेंगा, हर समय डरा रहेगा। इस भय से तनाव कनपटियों के पास जाकर बैठ जाता है और बुद्धितत्व कमजोर होने लगती है। क्योंकि प्राण सूक्ष्म न होने से वह तनाव को बाहर की ओर प्रवाहित नहीं कर पाता। इसी तरह क्रोध में आपकी श्वास की गति तो तीव्र चल रही होती है। पर प्राण में जड़ता होने से गुस्सा से नथुने फूल जाते हैं, जीभ लड़खड़ाने लगती है।
हमारे ट्टषियों द्वारा बनाई हर साधना पद्धति प्राण को परिष्कृत एवं सूक्ष्म करने के लिए है। ट्टषियों की प्राणविद्या एक ऐसी विद्या है, जिससे सभी आघात झेल सकने की प्राणों में शक्ति पैदा होती है। इस विद्या में प्राण को सूक्ष्मतर अवस्था में ले जाने की शक्ति है और सूक्ष्म प्राण से ही पवित्रता आती है। कहते हैं जैसे शरीर के लिए व्यायाम है, ऐसे ही प्राणों के लिये प्राणायाम है। प्राणों का व्यायाम ही प्राणायाम है, पर ध्यान, जप से भी अपनी प्राणशक्ति को इतना सूक्ष्म व शक्तिशाली बना सकते हैं कि आप संसार के संघर्षों में अडिग रह सकें। बीमारी भी कुछ न कर पाये। खुले स्थानों में ताजी हवा गहरे-गहरे श्वास लेना, हंसना एक बहुत अच्छा प्राणायाम है। जब खुलकर आप हंसते हैं तो आपके फेफड़ों में शुद्ध वायु पहुंचती है। शुद्ध प्राणवायु से जीवनी शक्ति और प्रबल हो जाती है और निरोगता बढ़ती है।
जिस आदमी की प्राणशक्ति सूक्ष्म व गहरी होगी, जो लोग गहरे श्वास लेंगें, उनकी जीवनी शक्ति प्रबल होगी। जिनके श्वास लेने की प्रक्रिया प्राणों को सूक्ष्म अवस्था तक धारण कराने में सक्षम है, वे अपनी आरोग्यता व आयु निरन्तर बढ़ाते जाते हैं। ध्यान, मौन व एकांत साधना से भी इंसान की आरोग्यता में वृद्धि होती है। इस विज्ञान को भी समझिये। प्राण का एक हिस्सा हमारी इन्द्रियों से और दूसरा हिस्सा हमारे मन से बंधा है। प्राण से इन्द्रिया भी वश में आती हैं, फेफड़े, गुर्दे, किडनी सहित सभी अंग और मन पर नियंत्रण होता है। अतः प्राण उपासक बने, प्राणायाम सीखें।
प्राण की साधना करोगे तो मन भी वश में आयेगा। आपके अंदर के जीवन में निखार व आरोग्यता आयेगा। दुःखों को, कष्टों को मिटाने, रोग, दुःखों को दूर करने की शक्ति आयेगी। भगवान का सहारा लेने से भी इंसान मन व शरीर तथा प्राण से समर्थ हो जाता है। अतः आइये हम भी प्राण को सूक्ष्म करें, हर तरह के वायरस से बचें, निरोग बनें।
2 Comments
Pujye Guruver ke pavan charno me koti koti Pranam Sadar Hari OmJi
Hume apne pran shakti ko majboot banana he. Bhakti me bahut shakti hoti. Ganne apne prani ko shuksn banana he taki is shareer ne kisi bhii prakar ka virus ander pravesh n kr aake. Hamne apne ko swasth rakhe ke liye pranayam, yog karte rahna chahiye tabhi hum apane shuksm shareer ko bahar ka kisi bhi prakar ka tap santap, krodh dukh chinta ke virus se hum surakshit rah saktein hein.
Lot of thanks Gurudev Ji
We will henceforth have to focus on boosting our immunity always and become more health- conscious rather than taste- conscious. Om Guruve Namah.