चलो जगाते हैं जीवन में आत्मनिर्भरता | Sudhanshu ji Maharaj

चलो जगाते हैं जीवन में आत्मनिर्भरता | Sudhanshu ji Maharaj

Let's wake up to self-sufficiency in life

चलो जगाते हैं जीवन में आत्मनिर्भरता

जिंदगी की यात्र निर्भरता से शुरू होती है, पर बड़े होते ही हम सीखते हैं आत्म निर्भरता। अर्थात् स्वयं पर निर्भर होना। उसके बाद स्वयं निर्णय लेने के संकल्प उठते हैं और जीवन में जिम्मेदारी के भाव जगते हैं। जिससे अपने सुख-दुःख के लिए, अच्छे-बुरे के लिये खुद जिम्मेदारी लेने की स्थिति आती है। आत्म-निर्भरता की यात्र यही तो है। दूसरे शब्दो में इसे ‘‘दूसरों पर निर्भरता से आत्म निर्भरता’’ की यात्र भी कह सकते हैं, जिसके साथ-साथ परस्पर निर्भरता का भाव विकसित होता है। एक तरफ पत्नि व भाई मुझ पर निर्भर हैं, तो मैं भाइयों पर भी तो निर्भर हूं। सोचिये पहले हम दूसरों पर निर्भर थे, फिर आत्म निर्भर हुए और फिर परस्पर निर्भरता आई। परस्पर निर्भरता से समाज का मजबूत ढांचा खड़ा है। इसे हम लीडिंग पॉवर कहते हैं।

सबको साथ लेकर चलने, परस्पर निर्भरता आने पर अनेक हाथ, अनेक मस्तिष्कों को लेकर अपने आपको सम्पूर्णता की ओर ले जाने का मार्ग खुलता है। पर कोई व्यक्ति पूरी टीम को साथ लेकर तब चल पाता है, जब व्यक्ति अंदर की शक्ति जगाकर आत्म निर्भर बनता है। आत्म निर्भरता से जीवन में एक लहर जन्म लेती हैं, बड़े निर्माण जन्म लेते हैं, बड़ी ताकत बनती है, बड़ा सृजन होता है।
किसी कम्पनी की ताकत भी उसमें काम करने वाले परस्पर आत्मनिर्भर लोगों के समूह होते हैं। सब लोग अपनी-अपनी ताकत ही तो लगाते हैं। इसी प्रकार शरीर के सारे अंग काम कर रहे हैं। हमारे शरीर की जितनी भी इन्द्रियां और अंग हैं वे सभी अपने में आत्मनिर्भर हैं, फिर परस्पर निर्भर बनकर शरीर संचालित होता है। यही है हर यूनिट की आत्मनिर्भरता से उपजी परस्पर निर्भरता की शक्ति। दूसरों को अपने पर निर्भर कराना और अपने आपको उनपर निर्भर करना, उनके साथ जुड़ना और एक ऐसी स्थिति बनाना, जिसमें आप नेतृत्व देने लग जायें। भारतीय ऋषि परम्परा का यही मूल शक्ति भी था।

आत्मनिर्भरता से जगे नेतृत्व से ही दुनिया में कुछ कृतियां बनती हैं, कोई ताजमहल बनता है, ऊंचे मानकों वाले साहित्य सृजित होते हैं, कलायें आकार पाती हैं, समाज व राष्ट्र, विश्व को दिशा देने के लिए संकल्प सधते हैं और संसार की नयी पहचान बनती है।
आत्मनिर्भरता से ही दुनिया में एक से एक बड़ी रचनाये हुई। यद्यपि व्यक्ति की शुरुआत दूसरों पर निर्भरता से हुई, व्यक्ति ने दूसरों से सीखना शुरू किया, सीखते-सीखते उसकी क्षमतायें विकसित होती गयी। फिर बहुतों को वह साथ लेकर चल पड़ा और बड़ी चीजें दुनिया में होने लगीं।
जब जीवन में आत्मनिर्भरता जन्म लेती है, तो ही व्यक्ति अपनी शक्ति को पहचान पाता है, तब उसे पता लगता है कि मैं एक छोटी सी जगह बैठने वाला छोटा सा मनुष्य नहीं हूं। उसी आत्मा, उसी शरीर के अंदर नया विकास हो जाता है।
जीवन में आत्मनिर्भरता दोहरा बदलाव लाता है। इसमें कुछ झड़ता है, तो कुछ सृजित होता है। हिमाचल प्रदेश में एक महिला सफाई कर्मचारी थी। उसने एक पहाड़ को कटते देखा, उसे लगा कि पहाड़ कटने से वहां गर्मी बढ़ने लग गयी है। मौसम बिगड़ने से पैदावार पर असर पड़ा है। लोग पहाड़ काटते जा रहे हैं, किसी को तो आवाज उठानी चाहिये।
उसने सोचा हम जिस जगह रहते हैं, यदि वहां चीज गलत होती है, तो असर हमारे ऊपर भी पड़ेगा। अतः उसने अपने घर के आस-पास बोलना शुरू किया। यद्यपि उसकी इन बातों को सुनकर लोगों ने हंसना शुरू किया कि इसका दिमाग खराब हो गया है। घर की समस्यायें सुलझती नहीं, बाहर की समस्या सुलझायेगी।

लेकिन वह रुकी नहीं। वह हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में गवर्नर हॉउस के सामने धरना देकर बैठ गयी कि जब तक ये पहाड़ों की कटाई बंद नहीं होगी, तब तक मुझे उठना नहीं है। धीरे-धीरे एक साधारण महिला चर्चा का विषय बन गयी। सरकारी आदेश से वहां पत्थर काटने वाले सभी ठेकेदार हटाये गये, पहाड़ों की कटाई रुकी। यही है आत्मनिर्भरता की शक्ति।
वास्तव में आत्मनिर्भरता पत्थरों के बीच से रास्ता निकालती है। पर यह शक्ति आती तब है जब व्यक्ति अपनी क्षमताओं को पहचानता है। आत्मनिर्भरता संकटों में रास्ता निकालने की शक्ति देती है। अन्यथा कदम-कदम पर दोषारोपण भाव ही उठते हैं।
आज सम्पूर्ण संसार के असंख्य लोग अपने रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी समस्याओं में घिरे पड़े हैं। महिला हो या पुरुष, पढ़ा-लिखा हो या निरक्षर, शक्ति सम्पन्न, हुनरमंद से हुनरमंद लोग असहाय जीवन जीते और रोते दिखते हैं। कारण एक ही है, आत्मनिर्भरता का अभाव। इसके बिना बड़े से बड़े साधन बेकार हैं। अक्सर महिलायें शिकायत करती हैं कि अमुक ने ऐसा बोला क्यों? इसी तरह पुरुष अपने ऑफिस व आस-पास की समस्याओं से घिरे रहते हैं। ऐसे ही अनेक संताप को लेकर लोग दुःखी रहते हैं। हर एक के चारों तरफ कुछ न कुछ जाल बंधा अनुभव होता है। उस जाल से निकल पाना आसान है, पर आदमी किस्मत का रोना रोता रहता है और ऊपर उठना, बाहर निकलना भूल जाता है। इसका कारण है कि ऐसे लोग जीवन में आत्मनिर्भर नहीं हैं।

जीवन में आत्मनिर्भरता आते ही क्षमतायें बढ़ जाती हैं। बहुत सारी समस्यायें वैसे ही भागने लग जाती हैं। आत्मनिर्भर व्यक्ति ही अपनी क्षमतायें पहचानता व ऊंचा उठने का दृढ़ प्रयास करता है। तब वह अपने जीवन का उद्देश्य बड़ा रखता, जिंदगी को बड़े रूप में देखता है।
अंदर से आत्मनिर्भरता लाने के लिए जरूरत है हर दिन स्वयं को पवित्र करने, पतित पावन की संगति में बैठने की। पतित पावन, पवित्रें का भी पवित्र एक मात्र परम ईश्वर ही है। अतः उससे थोड़ी देर प्रार्थना करें। अपने अंदर की रचनात्मक शक्ति को याद करें। उस शक्ति को याद करें जो आगे बढ़ाने वाली है। इस आधार पर यदि आपने निश्चय किया स्वयं की आत्म-निर्भरता के साथ, अन्य लोगों को आत्म निर्भर बनाने का, तो अन्तःकरण में अपने सपनों को पूरा करने की नई शक्ति जगेगी। तब स्वयं के सपने बहुतों के सपने बनने लगेंगे। इस प्रकार बहुतों के सपनों को जगाकर कुछ बड़ा कार्य किया जा सकेगा। आप स्वयं देखेंगे कि आत्मनिर्भरता का भाव आते ही परिवार की समस्यायें दूर होने लगती हैं। आपको दुनिया में जीना, रहना आ जायेगा। आत्मनिर्भरता के अभाव में ही लोगों को जीना नहीं आता।

भगवान योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि तुम स्वयं अपनी आत्मशक्तियों को नहीं पहचान पाते, तो याद रखो कि तुम स्वयं अपने दुश्मन बन रहे हो। पहचानों अपनी शक्ति। कहते हैं कि अपनी शक्ति भूलना ही परावलम्बन है। परावलम्बन से जुड़ा एक महत्वपूर्ण उदाहरण हैµबाज के अण्डे को किसी ने मुर्गी के घोसले में रख दिया, अण्डे से निकला बाज का बच्चा मुर्गियों के बीच पलता रहा। उसने मुर्गियों की तरह चलना, खाना आदि सीख लिया, इस प्रकार वह भूल गया कि उसकी शक्ति क्या है? एक दिन एक बाज पक्षी आया, बाज ने उस बच्चे को सावधान किया। समझाया, अपने जैसी आवाज निकालनी सिखाई तब बाज उड़ा, वैसे ही वह बच्चा भी उड़ने लगा। उसने देखा कि अब अन्य पक्षी उससे डर कर भाग रहे हैं। यही है आत्मनिर्भरता, जो स्वयं को स्वयं की पहचान दिलाती है। ठीक इसीप्रकार हमें दुनिया डरायेगी, चिन्तायें डरायेंगी। पर जिस दिन खुद को पहचानना शुरू कर दिया, उसी दिन चिन्तायें डरकर भाग जायेंगी। दुःख डर कर भाग जायेगा। अतः खुद को पहचानना ही आत्मनिर्भर होना है।

यह आत्मनिर्भरता क्रमशः जीवन में लाने का अभ्यास जरूरी है। इसके लिए पहले शरीर की क्षमताओं को विकसित करें, शरीर के नियमों का पालन करके। इससे आपको सेहत मिलेगी। आपको सेहत कमाना पड़ेगा अभ्यास से। इसी प्रकार आन्तरिक ज्ञान को विकसित करना पड़ेगा। अपनी योजनाओं पर पुनर्विचार करना पड़ेगा, इसी तरह क्रमशः अपनी सारी कमियों को दूर करते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है। कमियां दूर होंगी तो आत्म शक्ति जागेगी, आत्मनिर्भरता आयेगी। कई लोग सोच ठीक रहे होते हैं लेकिन उनके अंदर साहस नहीं होता, हिम्मत नहीं होती, हिम्मत के अभाव में टैलेंट धरा का धरा ही रह जाता है, आत्मनिर्भरता आने पर वही टैलेन्ट उन्हें लाभ देता है।।
जीवन में आत्मनिर्भरता आती है, तो हमें भीड़ से हटकर काम करने की प्रेरणा देती है। किसी ने लिखा कि मैं 100 धन कुबेरों को जानता हूं, जो दुनिया के सबसे बड़े अमीर थे। उन्होंने अपनी जिंदगी में ऊंचाई इसलिए प्राप्त की, क्योंकि उन्होंने कुछ हटकर काम किया। वे भीड़ में शामिल नहीं हुए। उनकी योजनाओं को लेकर भी लोगों ने खूब मजाक बनाया। उन्होंने कई बार चोटें खाईं, लेकिन अपना प्रयास जारी रखा और क्रमशः आत्मनिर्भर होते गये, सफलताये पाईं।

जिनके जीवन में थोड़ा सा भी आत्मनिर्भर बनने का साहस था, वे धन में ऊंचे उठे। एडमण्ड हिलेरी तीन बार फेल हुआ ऐवरैस्ट पर चढ़ने में। पर सफल होकर हिलेरी ने लोगों को आत्मनिर्भरता का श्रेष्ठ संदेश दिया।
आत्मनिर्भरता की पहली शर्त हैµसकारात्मक विचार रखें। मन को शांत रखने की कोशिश करें, संतुलन में चलें, गलत सोच से बचें। ऐसी चीजों को दिमाग में न आने दें, जो डराती हों।

मैं ये निवेदन करना चाहता हूं कि जिंदगी में हर जगह कोई न कोई चीज डराने के लिये खड़ी है, लेकिन दुनिया में आदमी से बढ़कर ताकत किसी की नहीं है। यदि आदमी हिम्मत बना के चले तो उसे कोई नहीं डरा सकता। यह ताकत आती है आत्मनिर्भरता से, फिर परस्पर निर्भरता बढ़ने लगती है। वास्तव में जब हम अपनी क्षमताओं को विकसित करने में लग जाते हैं, तो वे बढ़ने लगती हैं। बढ़ते हुए उस स्तर तक पहुंच जाती है कि हर स्थिति से लड़ने की ताकत पा जाते हैं। तब ही हम स्वयं को स्वस्थ रख पाते हैं और अपने कार्य क्षेत्र का पूरा आनन्द लेते हैं। यहीं से जीवन में परस्पर निर्भरता शुरू होती है। इसलिये अपनी शक्ति को पहचानें और अपने आपको ऊंचा उठाने की विविध ढंग से कोशिश करें। स्वास्थ्य सम्बंधी आत्मनिर्भरता, नींद के प्रति निर्भरता, यानी अच्छी नींद लें, बेखबर होकर सोयें। इसके लिए सोने से पूर्व अपना मस्तिष्क शांत करते चलें और सोचना बंद करें। सोते समय मस्तिष्क शांत हो जिससे सबेरे जागें, तो अपने अंदर ताजगी अनुभव करें।

दूसरा सूत्र हैµप्राणायाम। थोड़ा ध्यान, फिर किसी पुस्तक का ज्ञान, या गुरु की वाणी पढ़ने, सुनने का मौका खोजें। सबेरे के समय आप अपने मन के कम्प्यूटर में जो फीड करेंगे वही चीज शाम तक आपको लाभ देगी। आप निर्णय करें कि सारा दिन मुस्कुराते हुए चलना है, मस्तिष्क को शान्त रखना है। किसी से भी बातचीत करते हुए तनाव में न आयें। जो भी काम आप करें, वह पूरी लगन, मनोयोग से करें। निश्चय करें कि आधे-अधूरे मन से कोई काम नहीं करेंगे। ध्यान रखें कि शरीर मशीन की तरह है, लेकिन वह लोहा नहीं है। मशीन को भी आराम कराया जाता है, आपको भी समय पर आराम करना है। आज का काम आज ही पूरा करें, कल पर नहीं टालें। कार्य क्षमता को बढ़ायें। जीवन को न तेज गति चाहिये और न बहुत धीमी गति चाहिये। संतुलित शक्ति बनाये रखना, सधी हुई गति से चलना, शांत होकर रहना और विश्वासपूर्वक मानना कि मैं हर स्थिति को पार कर जाऊंगा, मैं हर सफलता प्राप्त करूंगा, मेरे भगवान मेरे साथ हैं, ये विश्वास बनाकर जीवन में आंतरिक शक्ति जगायें। यही सब पक्ष आत्मनिर्भरता की महत्वपूर्ण सीढ़ियां हैं।

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