कोई मर जाए तो उसे लोग कहते हैं, अमुक व्यक्ति पूरा हो गया। प्रश्न उठता है जो जीवन भर अधूरा रहा, वह मरकर पूरा कैसे हो गया? वास्तव में उसकी प्यास तो अधूरी रह गयी पर उम्र पूरी हो गयी। सच यही है कि इंसान अधूरी प्यास लेकर दुनिया से जाता है। भले वह महलों में बैठे, कुर्सी पर बैठे, उसके दर्द भरे आंसूू कोई भले जान नहीं सके, अन्दर की अशान्ति दिखाई न दे, पर रहता वह अधूरा ही है।
इस अधूरे पन की पूर्ति को हमारे ट्टषि अपने सद्गुणों से भर देने का संदेश देते आये हैं। पूज्य सद्गुरु सुधांशु जी महाराज कहते हैं ‘‘मनुष्य की मनुष्यता जब मिलावट के दौर से गुजर रही हो, तो ऐसे में हमें पुनः प्रकृति के सहारे जीवन के मापदण्ड तलाशने का प्रयास करना चाहिए। हम मनुष्य से न सीखें तो पशु-पक्षी के गुण से भी प्रेरणा लेकर मनुष्यता बचाई जा सकती है।’’
सच कहें तो पशु-पक्षियों ने गुण, स्वभाव और कलाओं में स्वभाविक रूप से विकास किया है। लेकिन इंसान आज भी इन्हें उभारने में असमर्थ है, मनुष्य की यात्र अधूरी है। उसे इन्हीं पशु-पक्षियों के सहारे अपूर्णता से पूर्णता की ओर बढ़ाना है।
इसीलिए चाणक्य ने भी हर मनुष्य को छः विशेष पशु-पक्षियों के सहारे उनके अंदर बसे बीस गुणों को जीवन में उतारने का संदेश दिया है। इसे कहते हैं शेर, बगुला, मुर्गा, कौवा, कुत्ता और गधा ऐसे प्राणी हैं, जो मनुष्य को उत्कृष्ट शिक्षाएं दे सकते हैं। जो इन गुणों का आचरण करेगा, दुनिया के हर क्षेत्र में सफल होगा। प्रस्तुत है उनकी विशेषता।
हर कार्य अपने बूते पर करता है, वह किसी की सहायता नहीं लेता। इसी संकल्प से मनुष्य को कर्मशील होना चाहिए। बहादुर आदमी को शेर की तरह जिन्दगी खपा कर अपने संकल्प को पूरा करना चाहिए।
इसी प्रकार अपने अकेलेपन से न घबराना भी शेर का गुण है। अर्थात् संदेश है कि शरीर बूढा हो जाए, पर हिम्मत बूढ़ी नहीं हो, तो मानना चाहिए ऐसा व्यक्ति बूढ़ा नहीं। अतः जीवन के आखिर तक अपने को कमजोर मत बनने दो। शेर से हिम्मत का गुण लेकर हर कार्य अपने बलबूते पर करना सीखें।
सरोवर में यह एक टांग पर एकाग्र होता है। मनुष्य इसकी सरलता भरी एकाग्रता से जुड़ सकता है। क्योंकि सरलता में ही सन्तुलन है, टेढ़ेपन में सन्तुलन नहीं। सन्तुलन ही जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वास्तव में एकाग्रता जीवन में बहुत जरूरी है, इसका अभ्यास करें।
इंसान को मुर्गे से चार चीजें सीखनी चाहिए। मुर्गा सूर्य उदय होने से पहले बोलकर सबको जगाता है। इस प्रकार जो सूर्य का स्वागत करने को तैयार है, वह तेजस्वी, प्रभावशाली बनकर दुनिया में राज करता है। मुर्गे से मनुष्य को ब्रह्मवेला में जागने की सीख भी लेनी चाहिए।
दूसरा ओर मुर्गा शत्रु से डटकर मुकाबला करता है। अतः हम भी अपनी कमजोरी को सबलता बनाएं। आलसी होकर मत बैठें। निपुणता लायें तो सफलता जरूर मिलेगी। मुर्गा की मिल-बांटकर खाने की आदत होती है। अतः सब मिलकर बांटकर खाना सीखें, इसी प्रकार मिट्टी हो या कचरा, इसमें से मुर्गा काम की चीज ढूंढ लेता है अर्थात् सभी गुण ग्राही बनें।
कौवे से पांच गुण सीखें जा सकते हैं। प्रथम है धैर्य-कौवा मुसीबत के आखिरी क्षण तक धीरज रखता है। अतः समस्याओं के सामने को कमजोर मत बनाएं, धैर्य रखें। दुःख में धैर्य की ही परीक्षा होती है। दूसरा सतर्कता का गुण। वह बहुत ऊंचाई पर जाकर अपना घाेंसला बनाता है, यही उसकी सतर्कता है। सतर्क रहने वाले व्यक्ति को जीवन में कमजोरी दबा नहीं सकती। तीसरा अति विश्वास से कौवा दूर रहता है। अतः जो विश्वसनीय है, उनका भी हद से ज्यादा भरोसा न करें। बहुत भरोसा भी चोट मारता है। चौथा दूर दृष्टि रखना जीवन का एक महान गुण है। कौवे से हम जवानी में बुढ़ापे की, रात में प्रभात के लिए सोचना सीखें। पांचवा कौवा से होशियारी भी सीखें।
कुत्ते के छः गुणों में एक महत्वपूर्ण है थोड़ा खाकर सन्तुष्ट रहना, अतः सन्तोष वाला बनें। वह तुरन्त जागता है। इसीलिए विद्यार्थियों के लिए कहा गया कि उनकी कौवे वाली चेष्टा, बगुले जैसी एकाग्रता, कुत्ते जैसी नींद हो और थोड़ा भोजन खाने वाले बनें।
कुत्ता वफादार भी होता है। इसने जिस घर में आंखे खोलीं, उसके लिए सदा अच्छी कामना करता है। इसी प्रकार कुत्ता सूंघने के बाद उसे भूलता नहीं। किसी को एक बार देख लिया, तो पहचान लेता है। कुत्ता फकीर की तरह दर-दर जाकर अलख भी जगाता है। उसका पेट दिखाना यह संदेश है कि भगवान ने आपको जो भी दिया, उसके लिए उस मालिक को धन्यवाद करें।
इससे तीन गुण सीख सकते हैं। जैसे काम करने में सदा तत्पर रहें। कर्म करने में कभी कमजोर न बनें। वह गर्मी-सर्दी से घबराता नहीं। अर्थात् परिस्थितियां कैसी भी हों, आंधी-तूफान के बीच भी पुरुषार्थ करते रहें। रूखा-सूखा, थोड़ा खाकर भी मस्त रहें। जीवन में कैसे भी उतार-चढ़ाव हों, जीवन में मस्ती की अमीरी ही मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है।
इस प्रकार प्रकृति के ये चितेरे हमें अहर्निश स्फूर्ति व मस्ती भरी जिन्दगी की सीख ही तो देते हैं। आइये! हम भी इनसे प्रेरणा लें और व्यावसायिक गुणों से परिपूर्ण मनुष्य बनें।