धन दौलत नहीं, घर को यह स्वर्ग बना देता है | सुधांशु जी महाराज

धन दौलत नहीं, घर को यह स्वर्ग बना देता है | सुधांशु जी महाराज

धन दौलत नहीं, घर को यह स्वर्ग बना देता है

एक महान् कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य हुए हैं। उन्होंने कहा है वह गृहस्थाश्रम धन्य है, स्वर्ग तुल्य है जिस गृहस्थाश्रम में ये विशेषताएं हों।    जिस घर में सदा प्रसन्नता दिखाई देती हो, जिस घर में हंसने की, मुस्कराने की स्थिति दिखाई देती हो, हंसने की आवाजें आती हों। विवाह संस्कार के अवसर पर भी जो मंत्र बोले जाते हैं, उनमें कहा गया है,

‘‘मा ते गृहेषु निशि घोष उत्थादन्यत्रा त्वद्रुदत्यः संविशन्तु’’

अर्थात् बेटी! तेरा घर ऐसा घर हो, जहां रात में, दिन में कभी भी रोने की, तड़पने की आवाजें न आएं। ऐसा घर जहां कलह की आवाज सुनाई न दे। ऐसा घर जहां सब एक दूसरे को नीचे गिराकर खुश नहीं होते हैं। बल्कि, एक दूसरे को आगे बढ़ाकर खुश होते हैं। वह घर तुझे मिले। वहां की तू साम्राज्ञी बने। वहां की रानी बनकर रहे। ये गृहस्थी का उत्तम स्वरूप है।

चाणक्य ने अपने शिष्यों से कहा कि और दौलत कमाओ या न कमाओ, लेकिन अपने घर में सुख, शान्ति, प्रसन्नता जरूर कमाओ। जो आदमी अपने घर में सुख-शान्ति नहीं रख सकता, प्रसन्नता से जीवन नहीं जी सकता, जिसके बच्चे मुस्कराते-हंसते न हों, जिसके घर में पति-पत्नी में प्रेम के संवाद न हों।

जिन भाइयों में प्रेम और सौहार्द न हो। जिस घर की दीवारों में ईर्ष्या-द्वेष बसा हुआ हो, वह घर स्वर्ग नहीं नरक है। दौलत आ भी जाए, तो उस दौलत का आप क्या करोगे? जहां चैन से बैठकर खा न सको, जहां चैन से सो न सको। जहां प्रसन्नता से आप जीवन न चला सको। वह घर, घर थोड़े ही है। चाणक्य ने कहा सानन्दं सदनं। सदन ऐसा होना चाहिए जो आनंद से परिपूर्ण हो। वेदों में इसके लिए और शब्द आया है।

‘‘धृतहृदामधुकूला क्षीरेणदध्नाः’’

घर ऐसा हो, जिसमें घी-दूध की नदियां और नहरें हों। शहद की तो घर में नहर बह रही हो ऐसी जगह स्वर्ग है, जहां दूध की, घी की और शहद की, दही की नदियां बहती हैं। आदमी जो कामना करता है, सब पूरी हो जाती हैं, क्योंकि वहां कल्पवृक्ष है।

ये सारा वर्णन हम लोग स्वर्ग का पढ़ते हैं। लेकिन देखा जाए तो अगर हम अपने घर को ठीक से व्यवस्थित कर लें और सब कुछ आपको यहां मिल जाए, तो सोच लेना-मेरे प्रभु ने मुझको स्वर्ग दे दिया है। न स्वर्ग धरती के नीचे है, न आकाश में और न कहीं ऊंचे स्थान पर। यहीं इसी धरती पर अपना स्वर्ग लाने की कोशिश कीजिए।

नरक वह होता है जहां पर आग जल रही है, बीमारी का पीव बह रहा है, पस बह रही है, जहां कोढ़ी बनकर लोग बैठे हुए हैं। एक दूसरे को काटा जा रहा है। जिस घर में बीमारी पीछा न छोड़े, लड़ाई खत्म ही न होती हो, रोज ईर्ष्या, द्वेष बढ़ता जाता हो, क्रोध की अग्नि बुझती ही न हो, रोज उसमें इंधन डाला जाता हो। सोच लेना वहां नरक है। अच्छा घर वह है, जिस घर में आनन्द और प्रसन्नता हो।

2 Comments

  1. Suresh Chandra Sharma says:

    Shukriya Guruwar

  2. Akash Chauhan says:

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