काश! मनुष्य यदि जगा सकता अपना सूक्ष्म व कारण शरीर
‘शब्द’ हम वाणी से प्रकट करते हैं, और वह स्वतः ध्वनि तरंगों में परिवर्तित हो जाती है तथा अपना प्रभाव डालती है। शब्द सुनकर उठने वाली प्रतिक्रिया उन्हीं ध्वनि तरंगों का ही प्रभाव है। भारतीय ऋषि इसी विज्ञान के सहारे व्यक्ति के व्यक्तित्व का रूपांतरण करते आये है। किरलियान नामक वैज्ञानिक के अनुसार जब एक ही शब्द को बार-बार दोहराया जाता है, तो शब्द के माध्यम से वातावरण में कुछ ऐसी तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो मनुष्य के अवचेतन मन में जाकर बस जाती हैं, फिर उन्हीं के अनुसार मनुष्य की आदतें और व्यक्तित्व का निर्माण होता है। इसीलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को मुख से कोई शब्द निकालने से पहले हजार बार सोच-विचार कर लेना चाहिए। क्योंकि शब्दों के साथ व्यक्तित्व की आंतरिक ऊर्जा भी क्षरित होती है। परावैज्ञानिकों का मत है कि इस ऊर्जा को यदि संचित किया जा सके तो मनुष्य में दूर श्रवण, दूरदर्शन, भविष्य देखने, भावी संकटों के विश्लेषण की शक्ति पैदा हो सकती है।
वास्तव में इसी को अतीद्रिंय क्षमता कहते हैं। मानवी अंतराल में एक से बढ़कर एक अद्भुत क्षमताएं विद्यमान हैं, दूर श्रवण, दूरानुभूति, दूरदर्शन, पूर्वाभास, भविष्य कथन जैसी अगणित क्षमताएं प्रसुप्त स्थिति में दबी पड़ी हैं, जो किन्हीं व्यक्तियों में स्वाभाविक उभर आती हैं, कितने व्यक्ति इन्हें सतत् अभ्यास द्वारा विकसित कर लेते हैं। भारतीय ऋषियों में यह क्षमता सहज देखने को मिलती है, पर उन्होंने सदैव इसे समाज के सामने लाने से परहेज किया। भारतीय अध्यात्मवेत्ता इसे पुरुषार्थ की प्रारम्भिक उपलब्धि मानते हैं। परन्तु पाश्चात्य जगत ने इसे प्रोफेशन के रूप में अपने से गुरेज नहीं किया। न्यूजर्सी की परामनोविज्ञानी श्रीमती डोरोथीएलीसन जिन्होंने अपने अंदर भविष्य के गर्भ में झांकने की सामर्थ्य विकसित कर इसके माध्यम से उनने सरकार के साथ मिलकर असंख्य खोये हुए व्यक्तियों, हत्याओं एवं अपराधों के रहस्य खोले हैं। न्यूयार्क के प्रसिद्ध परामनोवेत्ता रिचर्डरिचनर जो डोरोथी की अतीन्द्रिय क्षमता के जांचकर्ता थे। उन्होंने बताया कि एक दिन उनके कमरे में बैठा व्यक्ति आत्महत्या करने की सोच रहा है। इसका रहस्योद्घाटन पूर्व में ही डॉ- डोरोथी ने कर दिया। पूछताछ करने पर बात सही निकली। पर उपचार होने के बाद वही व्यक्ति सफल उद्योगपति बन।
वास्तव में मनुष्य की चेतना में असीम एवं अप्रत्याशित क्षमता विद्यमान है। यदि उसे परिष्कृत एवं विकसित किया जा सके तो न केवल भविष्य कथन जैसी अतीन्द्रिय सामर्थ्यों का वरन् भौतिक सिद्धियों एवं आत्मिक ऋद्धियों का भी मनुष्य स्वामी बन सकता है। आवश्यकता मात्र अन्तःकरण को पवित्र बनाने एवं सदाचार को व्यवहार में उतारने भर की है। उच्चस्तरीय चेतनात्मक विभूतियां इसी स्तर पर हस्तगत होती है।
इतिहास में दर्ज है कि फ्रांस के प्रख्यात साहित्यकार जैककजोट को अपने देश में होने वाली महाक्रांति की पूर्व में ही सार्वजनिक घोषणा पेरिस के प्रमुख समारोह में कर दी थी। उक्त समारोह में देश के प्रायः सभी मूर्धन्य दार्शनिक, वैज्ञानिक, मनीषी, साहित्यकार, पत्रकार एवं गणमान्य नागरिक जैसे संगीतकार मारकस, नाटककार निकोलस, नाटककार एवं आलोचक जॉनहॉर्पी भी सम्मिलित थे। तभी जैक ने यह कह कर सभा में उत्तेजना पैदा कर दी थी कि यहां एकत्र सभी लोग सन्निकट खूनी क्रांति में मारे जायेंगे। इसी क्रम में बाद के फ्रांसीसी क्रांति के नायक मारकस के बारे में भी उनने भविष्यवाणी की थी कि उन्हें बंदी बना लिया जाएगा और फांसी की सजा सुनायी आएगी, किन्तु फांसी से पूर्व ही वह जहर खकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेंगे। इतिहासवेत्ता जानते हैं कि उक्त घोषणा के बाद मारकस क्रांतिकारियों के सर्वोच्च कमेटी के सदस्य बने, उन्हें जेल में डाला गया। फांसी की तिथि निश्चित हुई, किन्तु उससे पूर्व ही उनने विष खाकर आत्महत्या कर ली।
इसी तरह ख्याति प्राप्त नाटककार एवं आलोचल हार्पी, पीटरहरकौस, इंग्लैण्ड की सुजेन पेडफील्ड, न्यूयार्क की एस्टेला राबट्स एवं डर्बन-दक्षिण अफ्रिका के नेल्सन पामर का नाम मूर्धन्य भविष्य वक्ताओं में लिया जाता है।
ये विश्लेषण अवश्य आश्चर्यचकित करते हैं, लेकिन यह कोई कौतूहल नहीं है, अपितु यह क्षमता पूर्णतः विज्ञान आधारित है। मानव की आंतरिक क्षमता विश्लेषक कहते हैं कि मनुष्य जिस हाड़-मांस के ढांचे रूप में दिखता है वह पूर्ण मानव नहीं है। अपितु यह मात्र एक खोल है, जिसे अंदर मानव की दो मूल शक्तियां छिपी हैं। प्रथम सूक्ष्म मानव। यह वैचारिक परमाणुओं से ओतप्रोत मनुष्य है, जिसका केन्द्रक मन है। जो नाभि केन्द्र से संचालित होता है। इसकी शक्ति हमारी शारीरिक शक्ति से हजारों गुनी है।
इसके अतिरिक्त कारण शरीर वाला मानव है। जिसका सीधा सम्पर्क विश्व ब्रह्माण्डीय चेतना से है। ब्रह्माण्डीय चेतना के साथ इसी कारण शरीर वाले मानव का सतत आदान-प्रदान चलता रहता है। मूलाधार व नाथि चक्र के अतिरिक्त अन्य सम्पूर्ण चक्र इसी के लिए कार्य करते हैं। हमारे संत, ऋषि एवं गुरु सदविचार, ध्यान, स्वाध्याय, जप सहित विविध साधनाओं द्वारा इसी मानव को जगाने का पुरुषार्थ करते रहते हैं। यदि कारण मनुष्य जग सका तो अतींद्रिय क्षमता प्राप्त होना सामान्य बात हो जाती है।
वैसे सामान्यतः हर प्राणी में प्रकृति को समझने की क्षमता देखी गयी है। तभी शीतऋतु में मक्खी, मच्छर कहीं सुरक्षित स्थान में छिप जाते हैं। मेढ़क और साँप भी प्रायः ऐसा ही करते हैं। सर्दी के दिनों में वे किसी बिल में इस प्रकार शिथिलता धारण करते हैं कि उन दिनों उन्हें भोजन की आवश्यकता ही न पड़े। यही सब धरती में गहराई में छिपे पड़े रहने पर भी अनुकूल मौसम का भविष्यज्ञान उन्हें हो जाता है और वे उपयुक्त समय में बाहर निकल आते हैं। पक्षियों में से अनेकों ऐसे हैं जो ऋतु प्रतिकूलता का आभास होते ही अनुकूल क्षेत्रें में जा पहुंचने के लिए लम्बी उड़ाने भरते हैं। समय काटते हैं और जब अनुकूलता उत्पन्न होती है, तो फिर अपने पूर्व निवास पर लौट आते हैं। यह सब भविष्य ज्ञान की पूर्वानुभूति के आधार पर ही संभव है।
पर मनुष्य में इससे अधिक अनन्त सामर्थ्य है परमात्मा ने दे रखी है, पर वह इसे ईर्ष्या, द्वेष, दुर्भाव, महात्वाकांक्षा, लोभ, मोह, अहम में गवांता रहता है। यदि मनुष्य अपना अंतःकरण परिष्कृत कर सके तो उसे अतींद्रिय क्षमता से जुड़ना असम्भव नहीं है।
2 Comments
Great ancient wisdom shared by Maharaj Shri!!
कोटि-कोटि नमन गुरूदेव
पर फल शुकराना गुरूदेन
सदा हम पर अपनी कृपा बनाए रखना