कैसे लें स्वस्थ रहते हुए वृद्धावस्था का आनन्द
जीवन के अंतिम समय तक स्वस्थ और आत्मनिर्भर रहना हमारी भारतीय वैदिक, सनातनी अवधारणा है। ‘जीवेम शरदः शतम्, श्रृणुयाम् शरदः शतम्, पश्येम शरदः शतम्’ जैसे सूत्र इसी का संदेश देते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसी को ‘हैल्दी एजिंग’ योजना नाम दिया। जिसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना कि वृद्ध लोग जीवनभर स्वस्थ सक्रिय और अर्थपूर्ण जीवन कैसे गुजार सकें। क्योंकि शारीरिक रूप से गिरता स्वास्थ्य, उन्हें डायबिटीज, मस्तिष्क के स्ट्रोक जैसी बीमारियों का उन्हें शिकार बना देता है। ऐसे में उनका जीवन शारीरिक रूप से वृद्ध होने के साथ रोगपूर्ण वृद्धावस्था में बदल जाता है।
ऐसे में जहां एक तरफ आवश्यक है कि बुजुर्गों के रोग ग्रस्त होने पर उन्हें चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराई जाये, इससे अधिक जरूरत है कि वे रोगी होकर न जियें। इसके लिए शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक स्तर पर हर बुजुर्ग को इतना सक्षम बनाया जाये कि वे जीवन के अंतिम दिन तक सुखमय, चलते फिरते जीवन गुजारते रहें। संयुक्त राष्ट्र संघ के मानकों को ध्यान में रखते हुए बुजुर्गों के जीवन में आने वाली शारीरिक गिरावटों पर विचार करते हुए तलाशते हैं कि उन्हें किस-किस प्रकार की शारीरिक कठिनाइयों का सामना बढ़ती उम्र के साथ करना पड़ता है। साथ ही वृद्ध लोगों की जीवन शैली में बदलाव लाकर उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है।
स्वाद कलिकाओं में परिवर्तन:
व्यक्ति की जीभ में असंख्य स्वाद कलिकाएं होती हैं, जिनके द्वारा व्यक्ति को आहार लेते समय स्वाद की अनुभूति होती है, पर ये कलिकायें उम्र बढ़ने के साथ कमजोर होती जाती हैं। इससे खाने की पसंद-नापसंद एवं स्वाद पर बहुत असर पड़ता है। इसके चलते बुजुर्गों को किसी पदार्थ को अधिकाधिक खाने की आदत होने लगती है। अतः वृद्ध व्यक्तियों को इन परिवर्तनों के प्रति सचेत रखने और अपने आहार पर नियन्त्रण रखने के प्रति जागरूक करने की जरूरत है।
दांतों से लेकर हृदयतंत्र की कमजोरीः
यह वृद्धावस्था की एक आम समस्या है, जिससे उन्हें खाने की आदतों में काफी बदलाव लाना पड़ता है। दांत से चबाना मुश्किल हो जाने पर वृद्ध लोग मुलायम या कुचला हुआ खाना अथवा तरल पदार्थ लेकर संतोष करते हैं। इससे अक्सर पौष्टिकता की कमियां पैदा हो जाती हैं। उन्हें नकली दांत लगवाने की जरूरत न पड़े और स्वास्थ्य ठीक रहे इसके लिए उनके आहार में पोषकीय व स्वाद दोनों का संतुलन जरूरी है। इस आयु में रक्तवाहिकाएं सख्त हो जाती हैं और उनकी दीवारों पर अधिकांशतः कोलेस्ट्राल जमा होने से शरीर में रक्त धकेलने की क्षमता कमजोर पड़ती है। शरीर के सभी अंगों को पर्याप्त मात्र में रक्त-आपूर्ति नहीं हो पाती।
इसी प्रकार वृद्धावस्था में उदर पहले के मुकाबले आकार में छोटा हो जाने के कारण उसे भोजन को यथा स्थान पहुंचाने में अधिक समय लगता है। इससे पेट में एक भारीपन का अहसास बना रहता है। कई बार आंतों की दीवारें भी कमजोर हो जाती हैं और उनमें से भोजन बहुत धीमी गति से गुजरता है। पाचन वाले इन्जाइम भी कम मात्र में बनते हैं। इसलिए ऐसे आहार का सेवन करायें जिससे आधा पचा भोजन आंतों में ज्यादा देर तक न रहे, न ही गैस बने और कब्ज हो।
गुर्दे आदि तंत्रों में कमजोरीः
बुजुर्गों के गुर्दे भी आकार में छोटे हो जाते हैं और शरीर से अवांछित अपशिष्ट पदार्थों को छान कर बाहर करने में उनकी क्षमता कमजोर हो जाती है। साथ ही बुजुर्गियत में मूत्राशय भी सिकुड़ जाता है, इससे बार-बार पेशाब करने की इच्छा होती है इसलिये शरीर में पौष्टिकता बनाये रखने के लिये तरल पोषक पदार्थ का सेवन अधिक मात्र में कराया जाना चाहिये ताकि शरीर में पानी की मात्र बनी रहने से उच्च ताप एवं लू का खतरा भी न बढ़े। रक्तसंचार तंत्र सही काम करे। अधिक पेशाब आए और इसका सम्पूर्ण तंत्र साफ होता रहे।
सावधानियां एवं उपाय:
शारीरिक जागरूकता: नियमित और हल्की शारीरिक सक्रियता अपनी रुचि के अनुसार प्रातः भ्रमण, बागवानी से लेकर कुछ हल्के-फुलके कार्य दिनचर्या में शामिल करना जरूरी है। योगाभ्यास, व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान भी विशेष लाभप्रद साबित होते हैं।
बुजुर्गों के हृदय रोग, स्ट्रोक, कार्डियोवैस्क्यूलर रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, एवं मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाने में सहायक बनता है। शारीरिक सक्रियता आर्थ्राइटिस के दर्द को रोकने एवं माँसपेशियों की शक्ति को बढ़ाने, चोट रोकने, वजन घटाने में भी मददगार साबित होती हैं।
आहार सम्बन्धी जागरूकता
आसानी से पचने वाली चीजों के साथ उपयुक्त पोषण युक्त भोजन लेने पर जोर दें। पर्याप्त मात्र में रेशेदार भोजन से आंतें सक्रिय होंगी और अन्य रोग सम्बन्धी शिकायतें दूर होंगी।
वैसे भी स्वस्थ रहने के लिये अच्छा पौष्टिक भोजन बहुत जरूरी है। शारीरिक गतिविधि को बढ़ाने विविधतापूर्ण आहार लेने से बुजुर्गों की पौष्टिक तत्वों की जरूरत पूरी होती जाती है।
यद्यपि स्वस्थ बुजुर्गियत के लिये वयस्क अवस्था से ही घूमना, व्यायाम करना जैसी शारीरिक गतिविधियों को शुरू कर देना चाहिये। नियमित ध्यान, जप, गुरु सत्संग को दिनचर्या का अंग बनायें। साथ ही शारीरिक गतिविधियों में तो संलग्न रहें, पर व्यायाम थकान भरा न रखें। वृद्धावस्था की जरूरतों के अनुसार अपने खानपान के तरीके बदलें। पर्याप्त नींद लें। खुले, हवादार कक्ष में अपना निवास बनायें। युगऋषि आयुर्वेद ने भी स्वस्थ बुढ़ापे को लेकर अनेक पौष्टिक रस तैयार किये हैं, चिकित्सक के परामर्श से जिनका सेवन कर सकते हैं। इसी तरह परिवार, मित्रों व पड़ोसियों से मैत्रीपूर्ण संबंध बढ़ाने से भी बुजुर्गों के मन-हृदय को खुशी मिलती है और वे स्वस्थ अनुभव करते हैं।