108 कुण्डीय महायज्ञ में बरसेगी श्रीगणेश-लक्ष्मी जी की महाकृपा | Sudhanshu Ji Maharaj

108 कुण्डीय महायज्ञ में बरसेगी श्रीगणेश-लक्ष्मी जी की महाकृपा | Sudhanshu Ji Maharaj

108 कुण्डीय श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ

108 कुण्डीय श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ

सम्पूर्ण विश्व में है सनातन धर्म एवं यज्ञ के ऐतिहासिक साक्ष्य (108 कुण्डीय श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ)

अभी अरब देश की सरकार को अपने यहां पुरातात्विक खुदाई में लगभग 8000 वर्ष पुराना यज्ञ परिसर और विशाल यज्ञशाला प्राप्त हुई है। पूरे विश्व भर में ऐेसे चिह्न पहले भी मिल चुके हैं। इससे स्पष्ट है कि सम्पूर्ण विश्व सदियों पूर्व से ‘यज्ञ’ परम्पराओं का पालन करता आ रहा है। यह यज्ञ संस्कृति ही भारतीय संस्कृति, ऋषि संस्कृति, देव संस्कृति जैसे नामों से पहचानी जाती रही है। ‘यज्ञ’ को भारत सहित सम्पूर्ण विश्व की देव परम्पराओं में चौबीसवां अवतार माना गया है।

 ‘यज्ञोयं सर्वकामधुक’

 अर्थात यज्ञ समस्त कामनाओं की पूर्ति का मूल मार्ग है। मान्यता है कि तैंतीस करोड़ देवता यज्ञ से प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनोवांछित वरदान देते हैं, इसीलिए शास्त्रों में मनुष्य के लिए यज्ञ जैसा सर्वश्रेष्ठ कर्म अपनाने को कहा गया है।

मनोकामनापूर्ति के लिए होता है यज्ञ

वेदों, उपनिषदों, गीता, महाभारत, 18 पुराणों से लेकर हर आर्ष ग्रंथ में यज्ञ का विस्तृत वर्णन है। ऋषि कहते हैं ‘यज्ञ में बुद्धि शुद्धि एवं सुख-सौभाग्य, आरोग्य, धन-वैभव, संतति-सुंदरता, दीर्घ जीवन, बल-ऐश्वर्य आदि संबंधी अनन्त शक्तियां भरी पड़ी हैं। अन्न, पशु, वनस्पति, दूध, खनिज सहित समस्त कामनाओं की प्राप्ति से लेकर देवताओं की कृपा-सुख-शांति-समृद्धि के लिए विधिवत ‘यज्ञ’ करने की देव पुरुषों की सदैव कामना रही। संत पुरुष सारे दुःख, दरिद्रता, कष्टों एवं पीड़ाओं से छुटकारा पाने, घर में, जन में, व्यवसाय और संस्थान में सुख, आरोग्यता, समृद्धि एवं लक्ष्मी की अभिवृद्धि के लिए यज्ञ परम साधन बताते हैं। अग्नि को यज्ञ भगवान एवं देवताओं का मुख माना गया है, साधकों द्वारा यज्ञ भगवान को दी गयी आहुति अग्निदेव सम्बन्धित देवताओं तक पहुंचाते हैं, फिर वे देवगण बदले में उन्हें कई गुना सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य, अन्न, धन, कीर्ति देते हैं।

‘‘श्रीगणेश-लक्ष्मी यज्ञ’’ एवं ‘‘वैभवलक्ष्मी साधना’’

हमारी संस्कृति में अनेक यज्ञों का वर्णन है। यज्ञ भगवान इंसान की पाप से रक्षा करते और देव गुण जगाते हैं। इसी क्रम में ‘‘श्री गणेश-लक्ष्मी यज्ञ’’ करने वाला इंसान देवताओं में माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा पाकर शांत श्रद्धा-भक्ति हृदय से वैभवपूर्ण जीवन का अधिकारी बनता है। सेवा, सिमरन का साधकों को पूरा लाभ भी प्रतिवर्ष होने वाले इस महायज्ञ में सामिल होने से प्राप्त होता है। कहा गया है कि जप का दशांश यज्ञ अवश्य करना चाहिए।

इस प्रकार जीवन की परिस्थितियों को अनुकूल बनाने हेतु श्री गणेश लक्ष्मी यज्ञ सबसे श्रेष्ठ है। जब सभी जप-तप निष्फल हो जाते हैं, तब यह यज्ञ भगवान गणेश का संरक्षण व माँ लक्ष्मी की कृपापूर्ण रक्षण से परिस्थितियों को अनुकूल करने की शक्ति पाता है। इस प्रकार यह यज्ञ सौभाग्य दाता, कल्याणकारी एवं सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। फिर इस बार तो ‘‘वैभवलक्ष्मी साधना’’ का विशेष अवसर भी मिल रहा है।

विधि-विधान से किये हुए यज्ञ से ही प्राप्त होते है मनचाहे परिणाम

यज्ञ में विधि-विधान से बोले गए मंत्र प्रारब्ध से जुडे़ संकट का निराकरण करते हैं, वातावरण संबंधित रोगों का उपचार यज्ञों से होते देखे गये हैं। चरक सूत्र कहता है यज्ञीय प्रयोग के लिए साकल्य, घृत मंत्र आदि रसायन महौषध से अकाल-मृत्यु योग तक कटते हैंµरसायन तपो जाप योग सिद्धैर्महात्मभिः। कालमृत्युरपि प्रौर्जीयते नालसै नरैः।।

इसी प्रकार यज्ञ संतान की चाहत रखने वाले को संतान पाने की शक्ति देता है। प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले इस यज्ञानुष्ठान से हजारों लोगों के पूर्वजन्म के भोग से उत्पन्न प्रारब्ध व दुःख आदि मिटते देखे गये हैं। आयु से क्षीण, शक्तिहीन तथा मृत्यु के समीप पहुंचे रोगी को यज्ञ विधान मृत्यु के मुख से वापस लाकर 100 वर्ष जीवित रहने की शक्ति देने में सफल रहा है। जन्म ले चुकी और भविष्य में जन्म लेने वाली सन्तानों को सूक्ष्म विधि से आरोग्य बनाने, समृद्धि-ऐश्वर्य से भरने की शक्ति के संकल्प सहित यह यज्ञ परम्परा वर्षों से सम्पादित की जा रही है। मंत्र भी यही संकेत करता है।

 ‘प्राणाश्चय मेऽपानश्च मेऽव्यानश्च मेऽसुश्च मे, चित्तं च मे आधीतं च मे वाक् च मे मनश्च मे चक्षुश्च मे श्रोत्रं च पे दक्षरच मे बलं च मे यज्ञेनकल्पताम्।। यजु- 18/2

तपोभूमि, आनन्दधाम आश्रम परिसर में विगत 20 वर्षों से इसीलिए इसे अनवरत सम्पन्न किया जा रहा हैं। ताकि महायज्ञ में भागीदार बनकर भक्तगण जीवन को धन्य बना सकें। सिद्धि प्रदान करने वाले भगवान गणपति और सर्वसुखदात्री माँ लक्ष्मी के वर्चस्व वाले इस ‘‘श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ’’ के आयोजन से साधकों के अंतः संकल्प पूरे होंगे। सुख-शांति की पूर्ति, दैवीय पुण्य का लाभ सहज मिलेगा। महाराजश्री के सान्निध्य में सम्पन्न होने वाला यह ‘‘श्रीगणेश लक्ष्मी महायज्ञ’’ भक्तों-श्रद्धालु शिष्यों के लिए स्वास्थ्य-सुख, धन-समृद्धि, नौकरी-व्यापार में उन्नति-प्रगति के साथ हर शुभ मनोकामनाओं को पूर्ण कराने वाला होगा। यजुर्वेद का मंत्र यजु- 2/25 भी साधक-याजकों में यही प्रेरणा भरता है!

दिवि विष्णु व्यक्तिस्त जागनेत छंदसा। तते निर्भयाक्ता यो-स्यमान द्वेष्टि यंच वचं द्विषमः। अन्तरिक्षे विष्णुव्यक्रंस्त त्रेप्टुते छन्दसा। सतो नर्भक्तो। पृथिव्यां विष्णुर्व्यक्रस्तंगायणे छन्दसा। अस्यादत्रात्। अस्ये प्रतिष्ठान्ये। अगन्य स्वः संज्योतिषाभूम।

गुरुभक्त इस यज्ञश्रृंखला की महिमा को नजरंदाज न करेंं, अपितु गुरु संकल्पित यज्ञानुष्ठान के पीछे के महान लक्ष्य को पहचानते हुए भागीदारी का प्रयास अवश्य करें। जिनका गुरु के प्रति श्रद्धा-विश्वास परिपक्व अवस्था में है अथवा गुरु अनुशासित साधना ऊँचाई पा चुकी है, उन्हें इसमें रहस्यात्मक अनुभूतियों के दर्शन अवश्य हो सकते हैं। वास्तव में गुरु अनुशासित ये वार्षिक महायज्ञ अनुष्ठान श्रृंखला विशेष आध्यात्मिक शक्ति प्रवाह लेकर आगे बढ़ रही है, इसलिए भी साधकों को हर सम्भव भागीदारी की निरंतरता बनाकर रखनी चाहिए। इसमें भाग लेने से यजमान के कुल परिवार से जुडे़ पूर्वजों को संतोष-शांति मिलती है तथा भविष्य में जन्म लेने वाली संताने उन्नत आत्मा वाली होने में सहायता मिलती है। सूक्ष्मऋषि सत्ताओं द्वारा प्रेरित व गुरुसत्ता निर्देशित विशेष वैज्ञानिक अध्यात्म परक इस प्रयोग का लाभ लेना अत्यधिक पुण्यदायक साबित होगा।

108 कुण्डीय श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ’’ का यह आयोजन

108 कुण्डीय श्रीगणेश-लक्ष्मी महायज्ञ’’ का यह आयोजन 06 से 09अक्तूबर, 2022 तक आनंदधाम आश्रम, नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है। जिसमें पूर्व की तरह यज्ञादि प्रयोगों के साथ 8 व 9 अक्टूबर को प्रातः बेला में ‘‘श्रीयंत्र प्राणप्रतिष्ठा एवं वैभवलक्ष्मी’’ की विशेष साधना का अवसर मिल रहा है। इस अनूठे आध्यात्मिक महायज्ञ अनुष्ठान में देश-विदेश से हजारों यजमान सम्मिलित होने के लिये पहुंचेंगे। ऐसे अनुपम यज्ञ-अनुष्ठान, पूजन-वंदन के लिये आप सभी आनंदधाम आश्रम पहुंचकर व्यक्तिगत रूप से भागीदारी का सौभाग्य पायें।

यदि किसी कारणवश अपने पारिवारिक, सामाजिक कारणों से व्यक्तिगत रूप से भाग लेना सम्भव नहीं हो, तो ऐसे भक्त अपने घर बैठे भी इस महायज्ञ का यजमान बनकर लाभ प्राप्त सकते हैं। अतः यजमान यज्ञ में भागीदार बनकर सुख-सौभाग्य, धन-वैभव, कीर्ति-यश से पूर्ण अपना जीवन गढें, अपने दुःख को सुख में, जटिल प्रारब्ध को सुखद भविष्य के रूप में बदलें, आत्मा, ईश्वर संबंधी रहस्यात्मक अनुभूतियां प्राप्त करें।

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