अथर्ववेद 8/1/8 मंत्र में कहा है कि मनुष्य! बीते समय की स्मृतियों से निराश न हो, ऐसे विचार जो तुम्हें निराश करें उन्हें अपने मन में न आने दें। आरोह तमसो ज्योतिः। निराश के अंधेरे से आशा के उजाले की ओर चल। परमात्मा तेरे सहायक हैं।
जीवन आशा और विश्वास का नाम है। जीवन को अगर एक नदिया कहा जाये तो आशा और निराशा दो किनारे हैं। व्यक्ति कभी निराश-हताश हो जाता है, कभी आशा, उत्साह से युक्त। हरी-हरी पत्तियों और तीखे शूलों के बीच मुस्काती मदकाती कलियों के होठों पर कल पूर्ण सुमन बनने की आशा होती है। कमल की कोमल पंखुडि़यों में बंद भौंरे कल तक जाने का स्वर्णिम अवसर का सहारा आशा ने ही तो दिया है। वसंत के गीत गाती कोयल के स्वर और आशा की मधुर तानें भरी हुई हैं। लहलहाती प्रकृति के हरित पट में आशा का गहरा रंग भरा है। ऊँची सुदूर उड़ान के पक्षियों में जो मस्ती दिखाई पड़ती है उसमें आशा ही बलवती है। निराशा जीवन का बंधन है, दुःख है, एक जंजीर है।
हम लोगों में से अधिकांश तो ऐसे हैं जो सांस लेने वाले मुर्दे हैं। क्योंकि उनमें कोई आशा नहीं, कोई आकांक्षा नहीं। जीवन वास्तव में एक गति है, लाश प्रतीक है जड़ता की, गतिहीनता की। जीवन प्रतीक है जागरण का, प्रगति का। हमारा अस्तित्व ये शरीर नहीं है हमारा अस्तित्व हमारी आत्मा है। मैं आत्मा हूं, इन्द्र हूं, हम सब इन्द्र हैं। हमारी हस्ती में सिमटे हैं जीवन के कार्यकलाप उदात्त भावनाएं और अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठने की कामना है। आप इन्द्र हैं, राजा हैं, अमर आत्मन हैं, तो क्या मौत तुम्हें मार देगी? परिस्थितियां तुम्हें गला देंगी। जला देंगी? डूबा देंगी? बिल्कुल नहीं जिसने यह विश्वास कर लिया मैं इन्द्र हूं, किसी से परजित नहीं हो सकता, उसे यह आत्मविश्वास ही जितायेगा।
आप शंकर बनना चाहेंगे और वासनाओं पर विजय प्राप्त करना नहीं चाहेंगे? आप दयानन्द बनना चाहेंगे और सत्य के सामने कष्ट भोगने में आपकी रूह कांप उठेगी? आप गांधी बनना चाहेंगे और सत्य के प्रति आग्रह करने में झुक जाना पसन्द करोगे। मेरे मित्र! जिसमें जीवन की शक्ति अधिक है उस पर बीमारी के कीटाणु भी असर नहीं करते। जिसमें जीवन की शक्ति अधिक है वह अपनी कमजोरी पर विजय प्राप्त कर लेगा।
जिसकी जिन्दगी कमजोर है उसे बीमारी खा जायेगी। उसका अस्तित्व आंधी में पड़े पीले पत्ते की तरह है जिसे बहा कर परिस्थितियां जहां चाहे ले जा सकती है। शक्तिहीन, दुर्बल, निराशावान् कभी एकनिष्ठ नहीं हो सकता। और न ही वह स्थिर रह सकता है। कभी उसे दुष्ट और उदण्ड शक्तियां अपनी ओर खींचेगी तो कभी वह देवत्व की ओर आकर्षित होगा। इसी खींचातानी में उसका अस्तित्व बिखर जायेगा। आशा और स्वप्न में यही अंतर है, स्वप्न का कोई आधार नहीं होता, और आशा का आधार होता है। आशा विश्वास को जन्म देती है। विश्वास बल के भरोसे पर ही टिका है। नैराश्य दृष्टिकोण शक्तिहीनता और अस्वस्थता का द्योतक है। जवानी आशा को जन्म देती है क्योंकि उसमें शक्ति है। बुढ़ापा नैराश्य को जन्म देता है क्योंकि उसमें अपने ऊपर भरोसा नहीं। शक्तिहीन टूटे खण्डहरों में ही निराशा की खाक उड़ा करती हैं वहां सदा मौत की उदास और काली छाया ही मंडराया करती है।
आज हर क्षेत्र में निराशा के भयावह घनघोर बादल छाये हुए हैं। सारा वातावरण आतंक के पंजे में समाया हुआ है। राष्ट्र की सीमाओं की ओर काली छाया बढ़ती जा रही है। अपने ही घर के अंदर ज्वालामुखी फूट रहे हैं। रक्षक और शासक जनता जनार्दन का विश्वास खो बैठे हैं। हर तरफ से शैतानियत की गंदी चीखें सुनाई पड़ रही है। चरित्र का गला घोंट दिया गया है। ईमानदारी मुंह छुपाये बैठी है। देशभक्तों और प्रहरियों का उत्साह सो गया है। निराशा की गहरी रात्रि जवान होती जा रही है। तो क्या सूरज अब नहीं उगेगा? सूरज जरूर उगेगा और जब उगेगा तो अपने असंख्य तीरों से इस रात्रि रूप दैत्य का सीना चीर देगा। दूर-दूर तक कहीं अंधेरा नजर नहीं आयेगा।
यदि निराशा ने आपके मन में घर कर लिया तो जान जाइये कि आपका बुढ़ापा आ गया है, आपकी शक्ति आपका साथ छोड़ रही है। अगर आपको जिन्दा रहना है तो उदास अंधेरी जिन्दगी को आशा की लाठी दिखाइये और फिर देखिये आपकी तरूणाई नृत्य कर उठेगी। बिना आशा के जिन्दगी बिना तारों की वीणा जैसी है, जिन्दगी के तारों को सजाइये और छेडि़ए एक मीठी रागिनी, जिससे वातावरण चहक उठे। आसमान के सितारे झूम उठें। सच मानिए, आपका सजीव व्यक्तित्व आशा के मनोहारी संगीत पर थिरक उठेगा। जीवन की डोर है आशा और विश्वास इसे कभी मत छोडि़ए।