अन्दर के शत्रुओं को जलाएं, त्रेतायुग के रावण को जलाने की जरुरत नहीं

अन्दर के शत्रुओं को जलाएं, त्रेतायुग के रावण को जलाने की जरुरत नहीं

अन्दर के शत्रुओं को जलाएं, त्रेतायुग के रावण को जलाने की जरुरत नहीं

हमारा देश त्योहारों का देश है और यहां मनाया जाने वाला प्रत्येक त्योहार किसी न किसी विशेष उद्देश्य को अपने अंदर समाहित किये होता है। विजयदशमी का पर्व अन्याय, अधर्म और असत्य पर न्याय, धर्म और सत्य की जीत का पर्व है।
विजयदशमी का पर्व मानव की असद्भावनाओं को दबाकर सद्भावनाओं को उभारता है। दशहरे का यह पर्व हमें संदेश देता है कि मन में छिपी असद्वृत्तियों का दमन करो और सद्वृत्तियों को अपनाओ।
दशहरा का शरीर की 10 इन्द्रियों पर जहां ‘मन’ के द्वारा जो कि इन्द्रियों का राजा है उन पर लगाम लगाने से है, और खुद मन के जीतने से है। कहा जाता है न कि मन के जीते जीत है वहीं गुरुवर सुधांशु जी महाराज कहते हैं कि दशहरा प्रतीक है हमारी 10 कमियों में सुधार करने का, हम देखें जहां कहीं अज्ञान है, आलस्य है अभाव है, अन्याय है, अकर्मण्यता है, मोह है, क्रोध है, जितने भी प्रकार के दोष माने जाते हैं जो इंसान की खुशियों और उन्नति में बाधक हैं उन सबको अन्दर से जलाना होगा। उन पर विजय प्राप्त करनी होगी।
रावण को तो त्रेतायुग में भगवान राम ने मार दिया उस जैसे अन्य आततायियों को भी प्रभुजी ने मार गिराया लेकिन आज हमारे समाज में एक नहीं अनेक रावण हैं जो असहाय युवतियों की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं और समाज में सिर उठाकर घूमते हैं। उन कुकर्मियों के लिये भी उनका केस लड़ने के लिये चंद पैसों के लालच में कुछ लालची वकील मिल जाते हैं जो कि ठीक नहीं है।
क्या समाज इन रावणों को सबक सिखाने के लिये कुछ नहीं कर सकता। लंका के रावण ने तो केवल एक सीता का हरण किया था, लेकिन आज के रावण राह चलती सीताओं से छेड़छाड़ करते हैं, उनसे अश्लील उपहास करते हैं। तभी सही मायनों में विजय दशमी का पर्व, विजय पर्व कहलायेगा और धरती पर फिर से राजा रामजी का राजराज्य आयेगा।

1 Comment

  1. Sweta Vajir says:

    Bilkul sahi kaha aapne, Guruji Happy Dusshera

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