गुरुपूर्णिमा का पावन अवसर बहुत निकट है। यह दिवस गुरु के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का दिन है, हमे विचार करने का दिन है कि गुरुशक्ति का कोई विकल्प नही।
सदगुरु की शक्ति को साधारण भावना से नहीं समझा जा सकता उसके लिए भी दिव्य दृष्टि चाहिए जो गुरु ही हमे प्रदान करते हैं।
देखने मे तो वह एक साधारण मनुष्य की तरह ही दृष्टिगत होते हैं परंतु उनकी महानता ओर उनके अंदर छिपे अमूल्य खजाने को जब हम समझ लेते हैं । तब हमें उनकी दिव्य शक्तियों का पता लगता है।
हमारे सभी अवतार हों या महान पुरुष। वह साधारण रूप में ही समाज के सामने प्रकट हुए, साधारण ही असाधारण होते हैं। यह तब पता चलता है जब सदगुरु अपनी कृपा जिस को प्रदान करते हैं- वही इन रहस्यों को जान सकता है।
जिस प्रकार कोई पत्थर लाखों वर्षों का ताप सहने के बाद ही हीरा बनता है – उसी प्रकार सदगुरु भी तप्त आत्मा होती है जिनके पीछे अनंत जन्मों की साधना और कृपा जुड़ी हुई होती है।
गुरु शक्ति को समझना है तो गुरु के सानिध्य में रहकर उनकी बताई हुई विधियों को अपनाकर – तप करते हुए उस बिंदु पर पहुंचना होगा जहां से गुरु की किरणें शिष्य को छूने लगती हैं। गुरु का प्रकाश भीतर उतरने लगता है और शिष्य मे भी वह सब प्रकट होने लगता है जो उसके गुरु में होता है।
जब गुरु अपनी मौज में होते हैं तब अपनी रहस्यात्मक विद्याएं प्रकट करते हैं परंतु उसके लिए आवश्यक है पात्र बनना – उतनी योग्यता हम विकसित कर सकें जिससे गुरु का दिया हुआ अम्रत अपने अंदर संभाल सकें।
गुरुपूर्णिमा का महान अवसर जब गुरु के अंदर तीनों शक्तियां ब्रह्मा, विष्णु , महेश , प्रकट होती हैं । उस अवसर पर हमें गुरु के औरे से अपना औरा संयुक्त करना चाहिए ताकि उन दिव्य शक्तियों को हम भी धारण करने वाले बन सकें।
यदि निकट जाना संभव ना हो तो भी मानसिक रूप से अपने गुरु से जुड़े रहो, गुरु के चित्र के सामने बैठकर उन किरणों को धारण करो जो उनके प्रभा मंडल से प्रकाशित हो रही हैं, कृपा अवश्य प्राप्त होगी।
गुरु तो दयालु हैं, कृपालु हैं – वह अपनी तपस्या ओर साधना का फल अपने शिष्यों को बांटने में प्रसन्न होते हैं। गुरु की इच्छा होती है कि उनके योग्यतम शिष्य भी उनके स्वरूप को धारण करके उतने ही पावन, निर्मल बन सकें और प्रभु की निकटता प्राप्त कर सकें !
ब्रह्मांड की अनन्त शक्तियों को अपने अंदर धारण करने वाले गुरु की शक्तियों को हम समझे, जाने और प्राप्त करें, गुरु का प्रत्येक संदेश अम्रत संदेश है – उनकी हर आज्ञा शिष्य के लिए शिरोधार्य है।
बस दीवानगी की हद तक अपने गुरु को समर्पण करके देखिए, उनके पदचाप पर चलते रहिये , कल्याण अवश्य होगा ।