सत्संग का अर्थ है सत्य का संग यानी जहां से व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को सत्य मार्ग की ओर मोड़ दे, उसी का नाम सत्संग है!!
महान पुरुषों के सानिध्य में बैठकर, उनकी अमृत वाणी का पान करके जो कुछ पाते हैं , वही जीवन की धारा को पूरी तरह मोड़ने में समर्थ होता है । पवित्र ग्रंथों का सार जो हम तक पहुंचता है मानो किसी फूल का माधुर्य ही निकाल कर दे दिया गया हो । यदि हम स्वयम उन ग्रंथों का पठन करें तो वह सारतत्व हम समझ ही नही पाएंगे जो सत्संग में जाकर गुरु की सानिध्य में प्राप्त होता है!
सत्संग कोई धार्मिक मनोरंजन नही है जहां आप नाच कूदकर घर चले जाएं – वहां तो आपको जीवन जीने की कला सिखाई जाती है, सूत्र रूप में सदगुरु बहुत कुछ प्रदान कर देते हैं! इसलिए सत्संग की महिमा अनंत है जहां भक्ति की विधियां, ध्यान की विधियां और सबसे अधिक परब्रह्म परमेश्वर को अपने ह्रदय में स्थापित करने के विशेष सूत्र देकर हमे अनुग्रहित करते हैं!
यूँ तो पूरा जीवन पूजा पाठ करते रहिए, घंटे घड़ियाल बजाते रहिये, इन सबसे हमे प्रभु की प्राप्ति नही हो पाएगी : असली कार्य है उससे कनेक्ट होना, जुड़ना किस तरह हम अपनी एकाग्रता साधें जो आध्यत्म की उस सीढ़ी के अंतिम छोर को प्राप्त कर सकें, यह विद्या सदगुरु ही देते हैं!
बिनु सत्संग विवेक न होई – सत्संग में बैठकर गुरु के शरणागत होकर उनसे वह सब प्राप्त करो जो आपके जीवन को धन्य कर दे और आपका जीवन सफल हो सके!