एक गरीब व्यक्ति कठिन परिश्रम के साथ एक अनाज की पोटली सिर पर रख झूमता जा रहा था। उस पोटली में एक छोटा सा सूराक था, धीरे-धीरे उस सूराक से अनाज के दाने एक-एक कर गिरते गये, पर व्यक्ति अनजान रहा। लगभग बोरी खाली हुई, तो उसका ध्यान गया, देखा तो पीछे दूर तक उसके मेहनत से कमाये दाने फैले पड़े थे। कुछ नजर आ रहे थे, कुछ धूल में मिलकर दिखाई भी नहीं दे रहे थे। उसने गहरे दुःख व ललक भरी नजर उन दानों पर डाली जरूर, लेकिन बस पछतावा ही उसके हाथ बचा। अंदर से एक ही भाव उठा कि काश! मैं इन दानों को फिर से पा सकता। वास्तव में यही स्थिति व्यक्ति की होती है समय हाथ से निकल जाने पर।
व्यक्ति निश्चित ही पोटली से बिखरे उन्हीं दानों को फिर नहीं पा सकता, लेकिन यदि जीवन में समय है तो परिश्रम करके दुबारा अवश्य एकत्र कर सकता है। बावजूद बीता हुआ समय और बीता हुआ जीवन कभी दुबारा वापस नहीं लाया जा सकता। फिर भी हम सब क्षण-क्षण करके पोटली के दानों की तरह परमात्मा की ओर से मिले समय को बिखेरते रहते हैं। पीछे बस हशरतें शेष बची रह जाती हैं। आता हुआ नववर्ष 2022 हम सबसे एक ही पुकार कर रहा है कि मैं आ तो गया हूँ, लेकिन फिर से 2021 की तरह हमें यूं ही न बिखरने देना।
सन् 2021 जा चुका, पर इसने न जाने कितनी बुरी-भली, दुखद-सुखद, कड़वी-मीठी, प्रिय-अप्रिय होनी-अनहोनियों को अपने में उदरस्थ करते हुए सदा के लिए काल के गाल में पहुंचा दिया है। विगत वर्ष जो कुछ भी हो चुका, यदि कोई उन दिनों घटी सकारात्मक या नकारात्मक घटनाओं का प्रत्यक्ष दर्शन करना चाहे तो असंभव है।
सदैव से होता यही आया है, इसीलिए समय को काल भी कहते हैं। काल अनन्तकाल से अपने साथ न जाने कितने प्रभावों, स्वभावों, अभावों, दबाओं से लेकर जीवन-परिवार-समाज से जुडे़ उखाड़-पछाड़ को अपने में समाता रहा है, आगे भी समाता जायेगा। लेकिन समझदार लोग मिले अनुभवों के सहारे आने वाले समय के अच्छे से उपयोग का तरीका निकाल कर सुखमय भविष्य की ओर फिर से बढ़ चलेंगे। यही जीवन का उसूल है।
विगत वर्ष भर कितनी पीड़ायें, कटुतायें लोगों ने सही, किसी ने कोरोना काल की लहरों से अपनो को खोया, कितनों का रोजगार छीना, न जाने कितनों की बसी बसाई बस्ती ही उजड़ गयी। भले 2021 में अपार दुख में कोई क्यों न डूबा रहा हो, पर वह सम्पूर्ण दुर्धर दौर आने वाले समय के साथ अवश्य शान्त होता जायगा। लोग अपनों का दर्द भूलकर फिर जीवन को आनन्द की धारा में डुबाने लगेंगे। समय के साथ धीरे धीरे सबकी जिन्दगी पटरी पर लौट आयेगी, हंसी के ठहाके फिर गूंजेंगे। भारत सहित चीन, अमेरिका, अरबदेश, यूरोप, रशिया, ब्राजील, अफगानिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान से लेकर इजराइल, इंडोनेशिया, ईरान, ईराक अर्थात सम्पूर्ण विश्व जिसने भी 2021 के थपेड़े खाये, वे सम्हलेंगे और दुनिया फिर मुस्कुरा उठेगी।
समय इस ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा चिकित्सक है, जो जीवन में शांति, प्रसन्नता का लेप लगाकर सबके दुख-कष्ट, पीड़ाओें को हर लेता है। यह सबसे बड़ा सर्जक भी है और सर्वश्रेष्ठ औषधिदाता वैद्य भी। समय ही उखाड़ और विनाश का कारक भी बनता है और असम्भव को सम्भव बना देने वाला निर्माणकर्ता भी यही है। वह नयी ऊर्जा से फिर भर देता है, समय के साथ ईश्वर-परमपिता परमात्मा का गहरा गुथाव जो है। इसीलिए जो समय को पकड़ता है, उसके पकड़ में परमात्मा और जो परमात्मा को पकडता है, उसकी पकड़ में समय स्वतः आने लगता है। समय और परमात्मा के बीच अद्भुत न दिखने वाली अनुशासन की डोर काम करती है, ऐसे में हम सब अपने आत्मनिर्देशन के सहारे परमात्म अनुशासन में रहकर नये वर्ष 2022 का स्वागत करें और जीवन को धन्य बनायें।
2021 देश-दुनियां के लिए पीड़ाओं से भरा वर्ष जरूर रहा, लेकिन भविष्य के आगाह व आगाज, इंडीकेशन का वर्ष भी इसे कह सकते हैं। जहां 2021 कोरोना जैसी विनाशक महामारी के लिए अवश्य याद किया जायेगा, जिससे विश्व के करोड़ों लोगों का जीवन छीना, करोड़ों लोगों को आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक, स्वास्थ्यपरक जटिलताओं में पड़कर उजड़ने के लिए विवश होना पड़ा। तो इसने विश्व भर के जनमानस को प्राकृतिक जीवन की ओर मोड़ा, हमारे ऋषियों द्वारा अनुसंधित योग-आयुर्वेद व अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पर विश्वास भी जगाया। लोग जीवन में शुद्धता के लिए संकल्पित हुए। विचारों, भावों, आहार-विहार, व्यवहार, जीवनशैली आदि से जुड़ी सम्पूर्ण शुद्धता को जीवन में स्थान देने का आगाज हुआ।
लोगों को अनुभव हुआ कि कोरोना जैसे अनेक वायरसों से बचाव का रास्ता तो इम्यूनिटी (आत्मबल) है। जिसे जीवन में जगाने की शैली हमारे ऋषियों ने हजारों साल पहले खोज दी थी कि यह प्रकृति के बीच ही मिल सकती है। प्रत्येक परिस्थिति में जीवन में शुद्धता-पवित्रता की प्रतिष्ठा से यह सम्भव है। प्रकृति के बीच रहन-सहन, प्राकृतिक आहार, व्यक्ति के निजी चिन्तन, चरित्र, आचरण, भावनाओं एवं व्यवहार में भी पवित्रता, शुद्धता, उत्कृष्टता, संवेदनशीलता लाना युग की आवश्यकता है, इसी से असली आत्मबल जगेगा और मानव सच्ची आरोग्यता व सच्चे सुख से जी सकेगा।
सदियों बाद मनुष्य में प्रकृति की दिशा में लौटने वाली बदलाव की बयार बहती दिखी है। तन, मन, व्यवहार एवं आत्मा का परिशोधन करते हुए लालच, लोभ, संग्रह आदि से मुक्त रहकर न्यूनतम में निर्वहन एवं सामर्थ्यभर पुरुषार्थ का दुनियां के करोड़ों लोगों ने उद्घोष इसी वर्ष किया।
आपकी सबसे बड़ी कमजोरी और ताकत क्या है? , जब दिनचर्या बनती है तीर्थ यात्रा