अध्यात्म के मार्ग पर चलना है तो पहली शर्त यही है कि अहंकार को त्याग कर सरल बनना होगा ! यदि अहंकार से भरे रहोगे तो प्रभु के आने का ह्रदय में स्थान मिलेगा ही नहीं!
भगवान कृष्ण ने अपने प्यारो की पहचान बताई है कि कौन भक्त मुझे प्रिय हैं तो वह यही बताते है – निरहंकारः – यानी अहंकार से रहित व्यक्ति ही मेरा प्रिय हो सकता है।
गुरुदेव बताते है कि अहंकार से चढ़ी हुई आंखे और सरलता से दूर रहना , यह भगवान को बिल्कुल पसंद नहीं है ।
मतलब यही की अपने अहंकार के आवरण को उतार कर फेंक दो, सरल हो जाओ, विनम्र हो जाओ, तभी भक्ति परवान चढ़ेगी
विनम्रता ही मान देती है, सम्मान दिलवाती है , अपने गुरु केऔर प्रभु के नज़दीक पहुंचाती है ।
झूठे अहंकार से तो व्यक्ति भगवान से ओर अपने परिवार, अपने समाज सबसे दूर होता जाता है ।
कहते हैं कि अहंकारी व्यक्ति उस सूखे पेड़ की तरह होता है जिस पर ना फल लगते हैं ना फूल, पक्षी भी उस पर आकर नहीं बैठते और तिरस्कृत जीवन जीता है इसलिए सरल, सहज बनकर भगवान के और अपने सदगुरु के प्रेमपात्र बनिये ।
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पूज्य गुरुदेव के पावन चरणों में कोटि-कोटि नमन एवं अभिनंदन
आपने भक्ति की राह पर चलने के लिए प्रथम सौपान अहंकार रहित होना । भक्ति उसी इंसान की सफल होती है जो इंसान निराभिमानी एवं प्रेम से ओतप्रोत है, वही इंसान भक्तिमार्ग की पराकाष्ठा तक पहुंच सकता है ।
भक्ति उसी इंसान की सफल होती है जिसका जीवन सरल और सहज है फिर उसको ईश्वर को खोजना नहीं पड़ेगा । भगवान को ऐसे भक्त पसंद हैं ।
गुरुवर आपके दिशा-निर्देशन के अमूल्य मोतियों की माला हम अपने जीवन में धारण कर सकें इससे बड़ा भक्ति का गहना हो नहीं सकता । आपका आशीर्वाद चाहिए ्््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््