आज के युवाओं में बढ़ता तनाव व भय-निराशा आदि भाव समाज मनोविज्ञानियों के लिए चिंता का विषय बन रहा है। युवा वर्ग द्वारा बात-बात में अपशब्द निकालना, क्रोध् में आकर वातावरण को बोझिल बना देना आदि उनमें विश्वास का अभाव सिद्ध करता है। ऐसा मनोभाव दर्शाता है कि इस व्यक्ति के पास ऊर्जा तो है, पर न तो कार्य का अनुभव है, न इतना धैर्य है कि किसी अनुभवशील से उसे क्रमशः सीखकर अपने को योग्य बना सके। यही कारण है कि अब पुनः दुनिया के विभिन्न तंत्रों में अनुभवशील सकारात्मक सोच वाले बुजुर्गों के प्रति सम्मान बढ़ने लगा है। कई मनोविश्लेषक बताते हैं कि जीवन में डर का कारण अनुभवशीलता का अभाव माना जाता है। अर्थात् अनुभव भी समय साध्य प्रक्रिया है। यहां बुजुर्गियत का अर्थ भी जीवन के मंगलमय अनुभवों से लेकर शारीरिक-मानसिक भावनात्मक सामथ्र्य के रूप में लिया जाना चाहिए। जो भविष्य को अंध्कार भरा नहीं देखता उसे ही बुजुर्ग मानना चाहिए है। इसके अभाव में हर बूढ़ा व्यक्ति अक्षम की श्रेणी में आता है। इसी प्रकार अभाव अतिसंग्रह, लालच, हिंसा, नकारात्मकता आदि से मुक्त जीवन भी बुजुर्गियत की श्रेणी में आता है।
वास्तव में निडरता एवं सद् की दिशा में रूपांतरण का जज्बा बुजुर्ग होने की परिभाषा है। पूज्यवर कहते हैं ‘‘ऐसे बुजुर्ग जो अपने ऊपर असीम विश्वास रखते हों, जो उपासना करें अनुभव की, आराध्ना करे स्पूफ£त की। जिसकी नाड़ियों में रक्त की जगह अनुभव से भरी सद्आकांक्षा हो, हृदय में भद्रवत शांति हो। जो अंध्-रूढ़ियों और जीर्ण परिपाटी के विपरीत चलने में समर्थ हो, जिस पर सदैव अपने अनुभव के बल पर कोई न कोई सकारात्मक कार्य कर गुजरने की ध्ुन सवार रहती हो, जिसे नैतिकता, संयम, अनुशासन और कत्र्तव्य का बोध् है, जिसमें चरित्रावान दृष्टि है। जो सपफलता की सीढ़ियां चढ़ने से अध्कि अपने अनुशासन, समर्पण, सेवा जन्य जीवन के अनुभव पर दृष्टि रखकर भविष्य के प्रति दृढ़ संकल्पित हो। वही पूर्ण अनुशासित चरित्रा वाले व्यक्तित्व बुजुर्ग कहलाते हैं।’’ देश में जब तक ऐसे बुजुर्गों-अनुभवशीलों का सम्मान रहा, उनके अनुभवों का लाभ लिया जाता रहा। देश की युवा शक्ति दिशाहीन होने से बची रही, परिवार संयुक्त रहे। देश गौरवान्वित हुआ।
आज भी ऐसा व्यक्ति तन ढांपने से ज्यादा अपने ऊपर दिखावे के लिए नहीं खर्च करता। यही मानसिकता उसके अंदर अपने को विपरीत परिस्थितियों में भी सम्हाल लेने की शक्ति जगाता है। ऐसे बुजुर्गों में राष्ट्र एवं समाज को भ्रष्टाचार, शोषण, अन्याय, अज्ञान, अंध्-परम्पराएं, दुराचार, अभाव के दानव से मुक्ति दिलाने के संकल्प उठते देखे जाते हैं।
देश-ध्र्म व संस्कृति के लिए जब-जब युवकत्व ने अंगड़ाई ली तो भारत विश्व भर में गौरवान्वित होता रहा, पर उन्हें देश के अनुभवशीलों ने ही दिशा दी। सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशपफाक उल्ला, चंद्रशेखर आजाद, लाला लाजपतराय, महर्षि अरविन्द, स्वामी विवेकानन्द, रवीन्द्र नाथ टैगोर, महात्मा गाँधी आदि के पीछे अनुभवशीलों का हाथ था व अनुभवों भरी क्रियात्मकता से वे हजारों-लाखों लोगों के साथ ब्रिटानी सरकार को उखाड़ पेफकने में सपफल हुए।
सम्पूर्ण विश्व में भारत के ऐसे ही अनुभवी लोगों को ट्टषि का दर्जा मिला व उनकी चर्चा होती आई है। वास्तव में ऐसी शक्तिधरा के लोग जिस कार्य को हाथ में लेते हैं, उसे लक्ष्य तक पहुंचाये बिना रुकते नहीं। विश्व को आज पुनः बहुमुखी शक्ति सम्पन्न ऐसे अनुभवी-भावनाशील लोगों की जरूरत है और इसके लिए दृष्टि विशेष रूप से भारत पर टिकती है। यहां का संन्यासी तो अनुभवी क्योंकि वह पहले किसी अनुभवशील गुरु से सीखता है। क्रांतिकारी-स्वतंत्राता संग्राम सेनानी तो अनुभवी, सद्गृहस्थ तो अनुभवी, सबमें एक अनुभवशील बुजुर्गियत दिखती आयी है।
आज हमें पुनः अपनी पूर्व पीढ़ी के वे लोग जिन्होंने देश, समाज, संगठन के लिए अपना जीवन दिया। उनके पुरुषार्थ वृत्ति से सीखना होगा। राष्ट्रयज्ञ में अपने तन-मन-धन की समिध जलाने वालों को सम्मानित करना होगा। उनके अनुभवों से सीखना होगा। आज विश्व पुनः अनुभवशील बुजुगों के सान्निध्य की हर जनमानस अपेक्षा करने लगा है।
जरूरत है विश्व के प्रत्येक वे व्यक्ति जिन्होंने किसी न किसी क्षेत्रा में अनुभव प्राप्त किया है। अपने अनुभवों के साथ नई पीढ़ी को दिशा देने का पुनः अपने अंतःकरण में जज्बा संजोयें और इस ध्रा को अपने अनुभव के सहारे सृजनशील तथा युवावर्ग को सहनशील बनाये। इसके लिए नई पीढ़ी को उनके जीवन लाभ हेतु महत्वपूर्ण स्थान देना होगा। साथ ही नयी पीढ़ी को अनुभवी बुजुर्गों को अपनी दिनचर्या में रचनात्मक स्थान देना होगा। तभी इस अनुभव के बल पर देश को विश्व गुरु बनाना सम्भव होगा।