जन्मों के पुण्य जीवन में प्रकाशित होते हैं, तभी सद्गुरु की सेवा का मन में उल्लास जगता है। सद्गुरु की सेवा करने से अंतः में भक्ति का प्राकट्य होता है, गुरु भक्ति जगने से गुरु की कृपा मिलती है और सद्गुरु की कृपा से मन में सत्य, न्याय, प्रेम, करुणा आदि देवत्वपूर्ण दिव्य तत्वों के प्रति विश्वास जगता है। देवत्व के प्रति विश्वास जगने से सूक्ष्म चेतना की ध्यान वृत्तियां आदि अंतःकरण में जागृत होती हैं। गुरु के ध्यान से जीवन का आवागमन चक्र समाप्त होता है और सुख, सम्पत्ति, ऐश्वर्यमयी शक्ति विकसित होती है।
जबकि चाण्द्रायण तप से ये सभी आध्यात्मिक व भौतिक कृपायें सहज उपलब्ध होने लगती हैं। इसलिए ऋषि, मुनि, संत, तपस्वी, योगी, सिद्ध, असिद्ध, अघोरी, निराकारवादी, आदि सभी ने चाण्द्रायण साधना को महत्व दिया और अपने-अपने सद्गुरु के संरक्षण-अनुशासन में चाण्द्रायण से शक्तियां पायीं गुरुतत्व अनुशासित तप ही एक मात्र कल्याण का मार्ग कहा गया है। गुरुतत्व का ध्यान व चान्द्रायण तप से अंतः करण पुलकित बना रहता है और साधक का मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है।
शास्त्र कहते हैं कि सद्गुरु धर्म, अर्थ, मोक्ष सहित आठों सिद्धियों एवं नौ निधियों को प्रदान करने में समर्थ हैं। सद्गुरु का ध्यान करने से विशिष्ट ज्ञान, दिव्य विज्ञान एवं सिद्धियों की प्राप्ति होती है और गुरुतत्व धारण करने से इस जीवन को पूर्णता मिलती है। पर गुरु निर्देशन में ‘‘चाण्द्रायण तप’’ शिष्य में धारणा शक्ति बढ़ाती है।
इसीलिए कहते हैं जिसने गुरुतत्व को जान लिया व चाण्द्रायण विधि से इसे धारण करने की शक्ति पा ली उसे कुछ भी संसार में जानना व पाना शेष नहीं रह जाता। अतः सम्पूर्ण आंतरिक एवं बाह्य क्लेश एवं कष्ट से मुक्ति के लिए सद्गुरु का मार्गदर्शन में तप व ध्यान आवश्यक है।
सद्गुरु मार्गदर्शन में ध्यान करते हुए साधक जब गुरुमंत्र का जप व तप करता है, तो उसमें दिव्य चक्षुओं का जागरण होता है तथा हृदय में दिव्य ज्ञान का प्राकट्य होता है। परमतत्व का दर्शन कण-कण में होने लगता है। इसीलिए पूज्य सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज अपने साधकों-शिष्यों व श्रद्धालुओं को अपने संरक्षण में मनाली देव तीर्थ नगरी में ‘‘चाण्द्रायण तप व ध्यान-साधना’’ से जोड़ने का बहाना खोजते रहते है।
वे चाहते हैं साधक का भौतिक ऐश्वर्य बढ़े, साथ दोनों आंखों के मध्य नासिका के ऊपर स्थित आज्ञाचक्र कूट में अपने गुरु को स्थापित करके शिष्य में ध्यान लगाने की क्षमता बढ़े, जिससे सम्पूर्ण मानवजन्म सफल हो, मानव जन्म का उद्देश्य पूर्ण हो। माँ शारदा, माँ लक्ष्मी एवं माँ काली की कल्याणी शक्ति से साधक ओत-प्रोत हो सके।
मान्यता है कि गुरु तत्व का ध्यान करने और चाण्द्रायण तप साधना करने वाले साधक का सहस्त्रधार सहज जागृत होता है, अंतःकरण में असीम संतोष जगता है, आत्मतत्व का विस्तार होता है। जन्मों के पुण्य प्रकट होते हैं व परमात्मा की विशेष कृपा प्राप्त होती है, गुरु कृपा तो मिलती ही है।
संतों का मत है कि सद्गुरु संरक्षण में चाण्द्रायण करने से सभी उस शिष्य पर अनायास कृपा करने लगते हैं। मंदबुद्धि व्यक्ति तक बुद्धिशाली हो उठता है, साधक की दरिद्रता मिटती है। सभी प्रकार के दोषों से वह मुक्त हो जाता है। ईश्वर व गुरु दोनों की कृपा से घर में क्लेश, चिंता आदि सभी विकृतियां नष्ट होती हैं। संतानहीन की सूनी गोद तक इस कृपा से भर उठती है, घर-परिवार में सुख-समृद्धि की वर्षा होती है और साधक सम्पूर्ण सुमंगल का अधिकारी बन जाता है। सद्गुरु एवं ईश्वर की कृपा और शिष्य के आध्यात्मिक पुरुषार्थ इन तीनों से जीवन में जगा तप शक्ति एवं भक्ति और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। चाण्द्रायण से जुड़ी व्यावहारिक जीवन की उपलब्धियां यही हैं।
सुमिरन, चित्त में स्मरण व तप से शिष्य के अंतःकरण में करुणा का जागरण होता है, उसके आलस्य, पाप दूर होते हैं, शिष्य अविद्या से मुक्ति पाता है। चाण्द्रायण तप करने वाली नारी अखण्ड सौभाग्यशाली का आशीष पाती है तथा उसका चित्त सदैव अडिग एकनिष्ठ बना रहता है। सत्यनिष्ठ साधकों को ब्र्रह्म विद्या की प्राप्ति होती है, जीवन में समृद्धि मिलती है तथा कठिनतम तप के प्रति उत्साह जगता है, दिव्य ब्रह्म तेज प्रकाशित होता है, हृदय से दुख, दरिद्र एवं कुमति, कुविचारों का नाश होता है। आर्ष साहित्यों में गुरु ब्रह्म बीज के अनुसंधान कर्त्ता कहे गये हैं, इसलिए भी चाण्द्रायण तप द्वारा शिष्य आत्म अनुसंधान करने परमात्म सत्ता को वरण करने के योग्य बनता हैै।
इस प्रकार सदैव सद्गुरु का चित्त से चिंतन करते हुए, गुरुतत्व का कूट (त्रिकुटी) स्थल पर ध्यान के साथ आप सभी मनाली तीर्थ में ‘‘चाण्द्रायण तप’’ गुरु अनुशासन में करने का संकल्प लें, शीलयुक्त तेज एवं निर्मल बुद्धि सहित सद्गुरु का शुभाशीष पायें। अनेक-अनेक जन्मों के कायाकल्प का मार्ग प्रशस्त करें। जीवन को कल्पवृक्ष बन लेने का सौभाग्य जगायें।
2 Comments
Nanda
प्रणाम गुरुजी
चांद्रायण साधना कैसे करनी होती हैं ये कैसे पता चलेगा? इसके बारे में जानकारी कहाँ प्राप्त होगी