हर कली में फल छिपा है संभावना की तरह वास्तविकता की तरह नही..
हर व्यक्ति में ईश्वर छिपा है वास्तविकता की तरह संभावना की तरह नहीं
जब फल आएगा तभी वास्तविकता पूरी होगी। हर व्यक्ति में ईश्वर छिपा है अगर मानो की ईश्वर मेरे अंदर है में उसे प्रकट कर सकता हूँ, तो आपको भगवान जरूर मिलेंगे
अपनी उस संभावना को वास्तविकता में बदलने की श्रद्धा और विश्वास पैदा कीजिये अगर यह श्रद्धा विश्वास गहरा है तो ईश्वर का दर दूर नहीं है।
अगर आपकी प्यास भरपूर है तो बादलों का घर भी दूर नही है ।
*आपको वह प्यास जगानी पड़ेगी जिस प्यास के द्वारा ईश्वर की अनुभूति होती है -जिसे पूरी प्यास लगती है वह दुनिया की हर चीज का परित्याग करके भी पानी के लिए भागता है::
अगर आपको ईश्वर की प्यास लग जाये तो दुनिया की हर चीज छोड़कर उसका प्यार पाने के लिए चल पड़ोगे!
अगर आपकी प्राप्ति की कतार में भगवान आखिर में है , पहले दुनिया की ओर चीजे मिल जाये तो यह समझ लेना कि आपको वह मिलने वाला नही है – अगर आपकी लिस्ट में – भगवान पहले है और दुनिया की चीजें बाद में हैं -तो आपको ईश्वर जरूर मिलेंगे और ईश्वर मिलेंगे तो दुनिया की हर चीज भी मिलेगी ।
इसलिए उस प्यास को जगाने के लिए सदगुरु की चरण शरण ग्रहण करो : उन्ही की विधि और उनके मार्ग पर चलकर ही कल्याण होगा
2 Comments
परम पूज्य गुरुदेव,
आपके श्री चरणों में कोटि कोटि प्रणाम। आपके श्रीमुख से गीता निहित गुह्यतम रहस्यमय ज्ञान को जिस तरह सुलझा सुलझा कर आप हम सभी को अमृत पिला रहे हैं वो अद्भुत है। गीता के प्रति श्रद्धा एवं नजरिया ही बदल गया है। अभी तक सुन रखा था कि गीता में सभी समाधान निहित हैं पर अब पूर्ण विश्वास हो गया है, यह आपकी ही कृपा से संभव हुआ है। आपकी गीता पर टीका को पढने पर एवं साथ साथ सुनने पर तो मानो आइने के समान साफ दिखाई देता है कि हम वास्तव में क्या हैं, किस धरातल पर खड़े हैं, अपने बारे में दिखावा कुछ भी करें या सोंचे। आपकी शैली एवं मुखारविंद की मिठास से गीता ज्ञान प्रसंग सुनने का आनंद कई गुना बढ़ गया है एवं अगले प्रसंग के लिए ललक बनी रहती है।
गुरुवर, मेरी प्रथम प्राथमिकता है कि मैं स्थतिप्रज्ञ, प्रज्ञावान बनूँ , मेरी बुद्धि सुबुद्धि रहे, मति सुमति रहे एवं मेरी श्रद्धा आपके एवं आपके बताए ज्ञान के प्रति नित्य ही प्रगाढ होती जाए ताकि उनका अनुकरण कर सकूँ एवं श्री कृष्ण के अद्भुत संदेश मेरे आचरण में भी उतरे। मैं कर्मरत रहते हुए एक आदर्श जीवन व्यतीत करना चाहता हूँ। यह सब मेरे बस में नहीं है पर आपकी कृपा से निश्चित ही संभव है अतः आपसे ही प्रार्थना कर सकता हूँ।
मैंने पहले भी आपके समक्ष जिज्ञासा रखी थी कि मैं किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस पृथ्वी पर आया और मेरे लिए उसका सरल उपाय क्या है।
आपका ही
राजेन्द्र मीमानी, कलकत्ता
RAVINDRA RAJ BHANDARI