गुरुकृपा और गुरुभक्ति के मार्ग पर चलने वाले पथिकों के लिए कुछ आत्मचिंतन के सूत्र।
विचारों का शुद्धीकरण सदगुरु के निर्देशों का पालन करने से ही सम्भव है, अन्यथा धूल तो अन्तःकरण पर स्वयम ही आ जाती है ।
भगवान की भक्ति और गुरुकृपा दोनो का मेल बैठा लीजिये आनंदघन हैं वह, बस दुखों से छुटकारा, चिंताओं से छुटकारा प्राप्त करने का उपाय है यह।
जिस प्रकार एक अनगढ़ पत्थर को तराश कर मूर्तिकार उसमे से मूर्ति प्रकट कर देता है ऐसे ही शिल्पकार होते हैं हमारे सदगुरु जो अपने शिष्य को निखार कर सुंदर रूप प्रदान कर देते हैं।
गुरुकृपा हो जाये तो मानो सब कुछ पा लिया – गुरु की कृपादृष्टि के बिना सब कुछ व्यर्थ है। इसलिए प्रार्थना गुरुदेव से कि हमारे दोषों को भुलाकर हमें स्वीकार कीजये।
सदगुरु का जीवन मे प्रवेश होना यानि नवीन जीवन की प्राप्ति, जैसे पुराने पत्ते झड़ गए हों और नई कोपलें निकल आईं।
पूर्ण रूप से समर्पण कर देना ही वफादारी है, मतलब सदगुरु के वचनों और नियमों का अक्षरशः पालन करना और अटल विश्वास रखने से ही आध्यात्मिक सफलता प्राप्त होती है।
जितना जितना आप धन्यवादी बनते हैं उतनी ही कृपा मिलती जाती है प्रभु की भी और गुरु की भी।
जो प्रकाश की किरणें सदगुरु के औरे से निकल रही होती हैं वह इतना अधिक प्रभाव डालती हैं कि पूरा वातावरण आध्यात्मिक रश्मियों से ओत प्रोत हो जाता है।
जब आपको कोई कुछ देता है तो आप उसका धन्यवाद करते हैं ! मगर उस भगवान् का जिसने आपको सब कुछ दिया है, उसका धन्यवाद करना ना भूलो! हर पल उसका धन्यवाद करो।
गुरु शिष्य को अपने माध्यम से परमात्मा की मंजिल तक पहुचाना चाहता है । अन्दर की आग पर राख मत आने दो, जैसे ही बुझने लगे फिर गुरुवचन सुनो, गुरुदर्शन करो।
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गुरू दीक्षा किस प्रकार और कहा पर मिल सकती है कृपया मार्ग दर्शन करने की कृपा करें