सच्चे ज्ञान तथा, सांसारिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए बुद्धि की स्थिरता, एक निष्ठ ,दृढ़ निश्चय , अत्यंत आवश्यक है!
बुद्धि भी सांसारिक भावावेश में बहनी नहीं चाहिए अन्यथा वहां संतुलन बिगड़ जाएगा।
ज्ञान के लिए कुटस्थ और स्थितप्रज्ञ होना आवश्यक मन गया है!
वही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है जो सरलता और तरलता को अपने जीवन में अपनाते हैं!
परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढाल लेना ही स्थिरता है !
आत्मनिग्रह है खुद पर नियंत्रण – मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए !
जीवन में उपर उठने की यात्रा में बढ़ा बनती है माया ! इसलिए संत कबीर ने जोर देकर अपने भाव में कहा- ठगनी तू क्या नैना झमकावे ,तेरे हाथ कबीर ना आवे!
आत्मसंयम से आप स्वराज्य के अधिकारी बनो! इसके लिए ध्यान और योग को जीवन का अंग बनाएं!
सम्राट बनिए, परीब्राट नहीं! परीब्राट साधु होता है और सम्राट प्रजा का अधिकारी होता है ! वह इंद्रियों द्वारा लाचार नहीं होता हैं!
जब इंद्रियां लाचार कर दें, और मन उनका गुलाम बन जाए तो समझ जाना चाहिए कि हमारे साम्राज्य को दूसरों ने छीन लिया ,और हम गुलामी तथा दास्तां की जिंदगी जी रहे हैं!
हमारा क्रोध हमारे वश में रहना चाहिए ! हमें क्रोध के वश में नहीं! कभी-कभी उपयोग करना पड़े, तो कीजिये लेकिन वह आपके वश से बाहर न जाने पाए!
जो अपनी इन्द्रियों पर संयम पा लेता है वही स्थिरता और संयम से ज्ञान को प्राप्त कर सकेगा!
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Great