स्वतंत्र बनो-स्वछन्द नहीं, स्वाभिमान रखो -अभिमान नहीं | Atmachintan | Sudhanshu Ji Maharaj

स्वतंत्र बनो-स्वछन्द नहीं, स्वाभिमान रखो -अभिमान नहीं | Atmachintan | Sudhanshu Ji Maharaj

Atmachintan

स्वतंत्र बनो – स्वछन्द नहीं..स्वाभिमान रखो – अभिमान नहीं

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , हमें समाज के बीच रहना है परंतु कुछ तो विशेषता अपनी अंदर लानी होगी !
स्वतंत्र रहना अच्छा गुण है , हमें आत्मनिर्भर ओर स्वतंत्र जीवन चाहिए परंतु इसके यह अर्थ नही की हम स्वछन्द हो जाये , मतलब अपनी मनमर्जी करना । यदि आप स्वच्छंदता बरतेंगे तो समाज से वहिष्कृत कर दिए जाएंगे । समाज के नियमों में चलना, उन तौर तरीकों का पालन करना तो आना ही चाहिए । मेरी मर्ज़ी जो मैं करूँ यह भावना समाज को दूषित करती है ।

स्वाभिमान बनाये रखना

इसी प्रकार अपना स्वाभिमान बनाये रखना यह आवश्यक है – अपनी कीमत स्वयम ही नही समझोगे तो कौन आपकी कीमत समझेगा । अपना महत्व जानिए , आप एक बहुत कीमती इंसान हैं, हिस्सा हैं समाज के – उस कीमत को बनाये रखना है ।
स्वाभिमान का अर्थ है अपना महत्व बनाये रखना पर इससे विपरीत अभिमान — जो व्यक्ति को धरती पर गिरा देता है । अभिमानी व्यक्ति का न कोई सम्मान करता ना ही वह प्रेम का पात्र होता है – अभिमानी के पास कोई जाना,बात करना भी पसंद नहीं करता !
सबसे अधिक तो यह कि भगवान को भी ऐसे व्यक्ति बिल्कुल पसंद नहीं : भगवान कहते हैं सरल बनो, सहज बनो, प्रेमपूर्ण होकर मेरे दर पर आओ !

अभिमान

इसलिए अभिमानी व्यक्ति की न तो इस लोक में कोई कद्र होती है नाही परमात्मा के लोक में अकेला बैठा अपना जीवन बिताता रहता है और घृणा, अपमान का पात्र बनता है।

अर्थ एक ही है कि स्वतंत्र भी बनिये, स्वाभिमानी भी बनिये परंतु मर्यादा का उचित ध्यान रखते हुए – आपका जीवन फूलों की तरह महकता हो, जहां जाओ अपने सद्गुणों की खुशबू फैलाकर आओ। इस धरती पर भी सम्मान का जीवन जियो ओर प्रभु के भी प्रेम पात्र बन सको । अपने जीवन को ऊंचा उठाइये, उसकी कीमत दिन प्रतिदिन बढ़ती जाए घटे नहीं  यही हमारा जीवन का उद्देश्य हो !

1 Comment

  1. Ashok says:

    Jivan Ka Yahi Niyam Hai Prabhu Prapti pane ka Jay Gurudev Sudhar Ji Maharaj ki Jay

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