भगवान कृष्ण ने अपने उपदेशों में अर्जुन को जो सकारात्मक होने के संदिध दिए हैं वह अद्वित्य हैं -गीता ऐसा ग्रंथ है जो निराश मन को भी उत्साह से भर दे !
गीता में समस्त मानवजाति के लिए सन्देश है! गीता सभी धर्मों के लिए, जाती, पंथों के लिए और चिंतन मनन करने वालों के लिए है! विश्व में एक गीता ही है जिसका सबसे अधिक भाषाओँ में अनुवाद किया गया है!
लोग सोचते हैं कि गीता ऐसा ग्रंथ है जिसे मरते हुए व्यक्ति को सुनाया जाता है परंतु यह विचार उन लोगो के लिए ही उचित है जो इसकी गहराई में नही जानते – यह मरणधर्मा को सुनाने का ग्रंथ नही है अपितु यह मनुष्य की चेतना को जगाने के लिए दिया गया ज्ञान है!
अर्जुन इतना निराश ओर निरुत्साहित हो चुका था कि युद्ध करने को तैयार ही नही था परंतु भगवान कृष्ण ने इतना अधिक सकारात्मक विचार उसके ह्रदय में बो दिए जिससे वह कहने लगा—करिष्ये वचने तव! हे कृष्ण मैंने अपना आपा आपको सौंप दिया है आप जैसा कहोगे मैं करने को तैयार हूं : जिधर ले चलो मैं चलूंगा !
व्यक्ति के विचार ही उसकी पूंजी हैं – ऊंचे ओर सकारात्मक विचार व्यक्ति का जीवन पूरी तरह परिवर्तित कर देते हैं अन्यथा निराशा और हताशा व्यक्ति को गड्ढे में गिरा देती है !
भगवान कृष्ण की यह अमृतमयी वाणी सकारात्मकता की ऐसी धरोहर है जिसे हर व्यक्ति को अपनी जीवनशैली बनाना चाहिए! सदगुरुदेव ने अपनी ओजस्वी वाणी में गीता का सुन्दर और सरल शब्दों में पूरा व्याख्यान किया है और जन जन तक पहुंचा रहे हैं!
गीता के अमृत ज्ञान का श्रवण करने से ही हम भगवान कृष्ण के अमृतमय संदेश का सार और जीवन जीने की कला को समझ सकेंगे!
अधिकतर लोग गीता को एक ग्रंथ मानकर एक सुंदर कपड़े में बांधकर रखने के साथ उसकी पूजा कर लेते हैं लेकिन महत्वपूर्ण है गीता के संदेशों को अपने दिल में उतरना!
वक़्त का नहीं कहा जाता की कब कहाँ लेकर खड़ा करदे! टूट कर गिरने वाली स्थिति प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आती है; जीवन का कोई भरोसा नहीं, लेकिन धर्म कर्म तो करना है, जीना भी है, इस लिए साथ लीजिये गीता के अमृत ज्ञान का!
जब इंसान की इन्द्रियां उसको नचाने लग जाएं तो केवल दुःख और नकारात्मकता ही बचती है! जो जोश आपको आगे लेकर जाता है वह सकारात्मक विचारों ही है!
इसलिए यदि सकारात्मक बनना है तो गीता की शरण मे जाओ, भगवान कृष्ण की शरण मे जाओ और अपने सदगुरु की शरण मे जाओ !