भक्ति में ही शक्ति है | आत्मचिंतन | Atmachintan | Sudhanshu Ji Maharaj

भक्ति में ही शक्ति है | आत्मचिंतन | Atmachintan | Sudhanshu Ji Maharaj

Atmachintan

भक्ति में ही शक्ति है

जीवन तो सभी जी रहे हैं पर जीवन जीने का ढंग तो बहुत चुने हुए लोगो को आता है – मात्र भोजन कर लेना, अपने परिवार का भरण पोषण कर लेना, उन्ही के इर्द गिर्द चक्कर काटते रहना – अधिकतर व्यक्तियों को इतना ही पता है पर कभी सोचिये कि ऐसा जीवन तो पशु पक्षी भी जी लेते हैं फिर मनुष्य में और उनमें क्या भेद हो पाया !

इसलिए अपनी चेतना को जाग्रत कीजिये और सोचिये कि इस जन्म को कैसे सार्थक करना है और सफल बनाना है: एकमात्र आधार है परमात्मा और परमात्मा की भक्ति : हमारी चेतना प्रभु में स्थित हो जाये तो मानो सफल हो गए !

भक्ति का अर्थ यह भीनही है कि आप पूरे दिन घंटे घड़ियाल ही बजाते रहें : अपने कार्यक्षेत्र में भी सफल होना है और पारिवारिक उत्तरदायित्व भी पूर्ण करने हैं, इन्ही के बीच अपना समय भगवान को भी देना सुनिश्चित करना है !

भक्ति से जो शक्ति आती है उसका वर्णन नही किया जा सकता क्योंकि जब हमारी चेतना परम चेतना से मिल जाती है तब अनेक गुना बढ़कर वह किरणें साधक को प्रभावित करती हैं और नई ऊर्जा का उदय होता है- इसलिए भक्ति को अपने जीवन मे , अपने कार्यकलापों में अवश्य शामिल करें !

भक्त होने का अर्थ है दयालु होना, शुद्ध विचारों का होना : शुध्दता आपकी हर क्रिया में दीखनी चाहिये – रहन सहन, खान पान ,लेन देन -सभमे आप पारदर्शी हों क्योकि भगवान को वही भक्त पसंद आते हैं जिनके मन मे छल फरेब नहीं- भोला व्यक्ति जल्दी भगवान को प्रसन्न कर पाता है क्योंकि उसका मन पवित्र है !

भक्ति कैसे करें, यह विद्या और गूढ़ ज्ञान सदगुरु की शरण मे जाकर ही प्राप्त होता है :: वह अपने शिष्यों पर कृपा वश सारी गहराइयां उलट देते हैं – गुरु चाहते हैं कि वह अपने शिष्य को वह चरम लक्ष्य दे सकें जिसके लिए मानव का चोला मिला है : गुरु इसलिए द्वार बनकर भगवान के दर पर पहुंचाकर प्रसन्न होते हैं !

भक्त का आत्म बल इतना मजबूत होता है कि कोई परिस्थिति उसे हिला नही सकती , अपनी विषम परिस्थितियों को भी लांघकर पार कर जाना भक्त के लिए संभव होताहै : अलग ही आत्मबल का धनी होता है भक्त क्योकि उसे एक ओर से गुरु का तप का प्रभाव मिल रहा होता है और दूसरी ओर भगवान की कृपा की किरणें -उसका जीवन खुशियों से महकता हुआ, हरा भरा दिखाई देता है !

इसलिए भक्त बनिये

अपने प्रभु के, अपने सदगुरु के – पूर्ण समर्पण कर दीजिए – अपने को हल्का करके अर्थात अहंकार के आवरण को हटाकर मात्र भक्ति का आवरण ही रह जाये – फिर देखिए आपके जीवन मे कितने चमत्कार घटित होते हैं।
प्रभु सब पर कृपा करें कि हम सभी भक्ति के मार्ग पर चलते हुए अपने जीवन की उत्कृष्टता को प्राप्त कर सकें* !

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