भक्ति परम प्रेम है | Atmachinatan | Sudhanshu Ji Maharaj

भक्ति परम प्रेम है | Atmachinatan | Sudhanshu Ji Maharaj

Prayers can transform lives. It is powerful and it can heal. Have faith and invite this power to your life.

भक्ति परम प्रेम है

प्रेम का ही रूप जब श्रद्धा में परिवर्तित हो जाता है तब वह भक्ति बन जाती है :भक्ति तभी सफल होती है जब उसमे प्रेम की मिठास घुल जाए !

प्रेम के अनेक स्वरूप है – जब यह प्रेम भगवान के प्रति होता है तबभक्ति बन जाताहै- यही प्रेम गुरु के प्रति हो तो श्रद्धा बन जाता है और यही प्रेम संसार मे हो तो हर रिश्ते में अलग रूप ले लेता है !

प्रेम में विह्वल होकर जब मीरा भगवान के गीत गाती थी, अश्रुधारा बह रही है और उसे अपनी होश नहीं: इतना पागलपन या दीवानापन जब प्रेम में हो तभी वह पराकाष्ठा पर पहुंचता है !

भगवान को आपसे कुछ नही चाहिए न आपका तन, न आपका मन, नाही धन :: चाहिए तो मात्र आपके ह्रदय का प्रेम :: वही उसको अर्पित कर दीजिए तो कल्याण हो जाएगा !

भगवान किसी भाषा को जानते हैं ना वेश भूषा को : न किसी के चढ़ावे से प्रसन्न होते – यह तो मात्र प्रेम प्रकट करने का माध्यम है – वह तो गूंगे की भाषा भी सुन लेते हैं – क्योंकि भगवान भाव के भूखे हैं !

इसलिए भावपूर्ण होकर अपना आपा उसके सामने रख दो – अपना प्रेम उसको अर्पित कर दो: अपने को तरल अवस्था मे ले आओ, जैसा वह चाहे उसी में रहना है : राज़ी हैं हम उसी में जिसमे तेरी रज़ा है पूर्ण समर्पण !!

प्रेम हमेशा त्याग मांगता है – भगवान के प्रति त्याग आप क्या कर सकते हैं , अपना आलस्य का त्याग कीजिये , अपने क्रोध का त्याग कीजिये अपनी बुरी आदतों के त्याग कीजिये :: उस मालिक के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने की भावना रखें : यह भी प्रेम का एक रूप है !

जब आप स्वयम को शुद्ध करके, पवित्र ह्रदय लेकर भगवान के समक्ष जाओगे तब वह कृपा अवश्य करेगा और एक दिन आपकी भक्ति चरम को स्पर्श करेगी -प्रभु का साक्षात्कार होगा !

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