अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे। ज्ञानवैराग्यसिद्धड्ढर्थं भिक्षां देहि च पार्वति।।
अर्थात् अन्न में प्राण बसते हैं। जीवनी शक्ति वास्तव में प्राणमय शक्ति ही है, जिसका निवर्हन अन्न से होता है तथा उसकी शक्ति धारा अन्नपूर्णा है। जो मां जगदम्बा का ही एक रूप है। जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। संसार का भरण पोषण होता है। अन्नपूर्णा ही ‘धान्य’ की अधिष्ठात्री हैं। घर-परिवार में अक्षय भण्डार भरा रहे, परमात्मा की कृपा रहे, आरोग्य मिले, इसके लिये समस्त प्राणियों को भोजन कराने का विधान है। अन्नपूर्णा की कृपा व नियंत्रण में ही सम्पूर्ण जगत है।
मां अन्नपूर्णा की कृपा से कोई भूखा नहीं सोता है। उनकी उपासना से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। वे अपने भक्त की सभी विपत्तियों से रक्षा करती हैं। आदि गुरु भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी की संचालिका हैं। ब्रह्मैवर्त्तपुराण’ के अनुसार यह भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। अन्नपूर्णा में यह सामर्थ्य है कि अनेक जन्मों की दरिद्रता का निवारण होता है। सद्गुरु, संत महापुरुष, अपने शिष्यों-भक्तों के कल्याण हेतु अपने आश्रमों में मां अन्नपूर्णा की प्रतिष्ठा भण्डारे रूप में करते हैं।
इसीलिये ऋषि-मुनि इनकी स्तुति में सदैव तत्पर रहते हैंµशोषिणीसर्वपापानांमोचनी सकलापदामं दारिद्रड्ढदमनीनित्यंसुख-मोक्ष-प्रदायिनी।
अन्न हमारे जीवन स्वास्थ्य से सीधे जुड़ा है। अतः हमेशा हाथ, पैर और मुंह धोने के पश्चात ही भोजन करें। भोजन करने से पूर्व अन्न देवता, अन्नपूर्णा माता का स्मरण कर उन्हें धन्यवाद देने का विधान है। शास्त्र में वर्णन है कि रसोई घर में बने भोजन में से गाय, कुत्ते, चींटी और पक्षियों को भोजन खिलाने से पितृ तृप्त होते हैं। यही नहीं चींटियों को भोजन देने से कर्ज से मुक्ति मिलती हैं, प्रतिदिन कुत्ते को रोटी खिलाने से संकट दूर होते हैं। ब्रह्मचारी, वृद्ध, गाय, गुरुकुल के विद्यार्थियो को भोजन खिलाने से सर्वमंगल होता है। जैन परम्परा अनुसार कार्तिक भानु प्रेक्षा में कहा गया है-भोयण दाणे दिण्ण्ेतिण्ण्दिि दाणाणिहोंति दिण्णणि। मुक्ख तिसाए बाहीदिणे हिणेहोंति देहीणं। अर्थात् भोजन दान देने पर तीन दान स्वतः सफल होते हैं। जैसे प्राणियों की भूख व प्यास रूपी व्याधि दूर होती है और विद्या, धर्म, तप, ज्ञान, मोक्ष सभी नियम सधते हैं। कहते हैं यह शरीर आहार मय है, आहार न मिलने से यह टिक नहीं सकता, अतः जिसने हमें आहार दिया, उसने हमें शरीर दिया यही जानो। अर्थात् अन्नदान करके हम उस अन्न ग्रहण करने वाले सद्पुरुष का शरीर उस दिन के लिये पालते हैं और उसके द्वारा किया तप का अंश हमें भी मिलता है।
भोयण बलेणसाहू सत्थंसेवेदिरत्तिदिवसंपि।
भोयण दाणेदिण्णे पाणवि य रक्ख्यिा होंति।।
नवग्रह विज्ञान की दृष्टि से देखें तो गुरु ग्रह एक ऐसा ग्रह है जो धन वंश वृद्धि और पुण्य बढ़ाता है। अतः यदि लोगों की निष्काम सेवा भाव से हम गुरु आश्रम में यदि अन्नदान करते हैं, तो पुण्य, बरकत और लाभ स्वतः प्राप्त होता है। काम बनना शुरु होते है।
वैसे भी अन्नदान पुण्य वृद्धि और कर्ज नाश का सबसे अच्छा उपाय है। इसीलिये सामर्थ्य अनुसार भूखे प्राणी को भोजन कराने का विधान है।
अन्नदानं परं दानं विद्ययादानमतः परम्।
अन्नेन क्षणिका तृप्तिर्यावज्जीवं च विद्यया।।
दान से यश, अंहिसा से आरोग्य तथा सेवा से राज्य तथा ब्रह्मत्व की प्राप्ति होती है। इसीप्रकार जलदान करने से मनुष्य को अक्षय कीर्ति प्राप्त होती है। अन्नदान करने से मनुष्य को पूर्ण तृप्ति मिलती है। शरीर जीवन का आधार है, अन्न प्राण है, इसलिये अन्न दान प्राणदान के समान है। यह दान धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। अतः अन्न दीनों, नेत्रहीनों और दूसरे जरूरतमंदों में बांट देना चाहिये। क्योंकि यह अन्नदान अमृत बनकर मुक्ति देता है।
सात धातुएं अन्न से पैदा होने के कारण इन्द्र आदि देवता भी अन्न की उपासना करते हैं। वेद में अन्न को ब्रह्मा कहा गया है। सुख की कामना से ऋषियों ने पहले अन्न का ही दान किया था। आज भी जो श्रद्धालु विधि विधान से अन्नदान करता है, उसे पुण्य मिलता है।
अन्नदान के निमित्त:
गुरु आश्रम में थोड़ा दान करने से भी ज्यादा फल मिलता है। आनन्दधाम गुरुधाम तीर्थ परिसर में दिवंगत परिजनों एवं स्वयं या अन्य परिवारीजनों के जन्मदिन, विवाहदिन अथवा अन्न पर्व अवसर पर ऋषि व गुरु के प्रति श्रद्धा स्वरूप ‘सहभोज’ की अति-विशिष्ट योजना संचालित है। अतः अपने पितरों या अन्य स्वजनों के प्रति श्रद्धा-समर्पण व्यक्त करने हेतु गुरुभक्त साधक यहां के गुरुकुल विद्यापीठ एवं उपदेशक महाविद्यालय में विद्याध्ययन कर रहे विद्यार्थियों और इनके आचार्यों, शिक्षकों तथा वृद्धाश्रम के वृद्धजनों को भोजन कराने का सुअवसर प्राप्त कर सकते हैं। परिसर द्वारा संचालित अन्नपूर्णा योजना इसी निमित्त ही तो है। देश विदेश के मिशन परिवार के भाई-बहिन यह सहभोज कराने हेतु अपने पूर्वजों के निमित्त अपनी तिथियां आरक्षित भी कराते आ रहे हैं। साथ ही विविध पर्वों आदि पर चलने वाले भण्डारे आदि में अपने योगदान का अवसर भी खोजते दिखते हैं।
इसी क्रम में मिशन के पर्व सहित अन्य वार्षिक समारोहों में भी जो गुरुभक्त उन विशेष दिवसों के सहभोज कार्यक्रम में सहभाग कराना चाहेंगे, वह भी अपनी श्रद्धा व क्षमता के अनुसार सहयोगी बन सकते हैं। आप सभी अपनी श्रद्धा सामर्थ्य के अनुसार इस योजना में भाग लेकर पुण्य के भागीदार बनें। इस अन्नदान से अपना पुण्य बढ़ाकर घर-परिवार को सुख-समृद्धि, शांति एवं गुरुकृपा-देवकृपा से भरें।