मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, उसे समाज के साथ होकर ही चलना पड़ता है चाहे परिवार के साथ हो कार्यक्षेत्र में अथवा अन्य जगह,अपने विचार में यह बात भर ले कि दुनिया का काम मेरे बिना चल सकता है पर मेरा काम दुनिया के बिना नही चल सकता..!
जब तक हम अपने संबंधों में मजबूती नही लाएंगे- रिश्ते टिकेंगे नहीं! उसके लिए सबसे बड़ा सूत्र है “सहनशीलता”! एक दूसरे को निभाना सीख जाए क्योंकि कमी तो हर किसी मे होती है! पूर्ण शुद्ध तो केवल परमात्मा है-व्यक्ति हमेशा ही अपूर्ण रहेगा, इसलिए बेहतर हो कि हम किसी की कमियां निकालने की बजाय उसकी अच्छाइयां ढूंढना शुरू कर दें: जब आप अच्छाइयां देखोगे ओर दोषों की अवहेलना करोगे तब आपको वह व्यक्ति प्रिय लगने लगेगा !
“अपने प्रिय को सभी गुण दोषों के साथ स्वीकार कर लो”- अर्थात जो रिश्ता आपको मिला है उसी को मानकर चलो की यही श्रेष्ठ है, कमी तो हर व्यक्ति में होगी- तब आपकी सोच बदल जाएगी और आप सकारात्मक पक्ष की ओर ही ध्यान देंगे! क्रोध, लालच, अहंकार, अभिमान यह सभी रिश्तों के बीच बाधक बनते हैं! प्रेमपूर्ण जीवन मे ही आनंद है- इन विकारों का परित्याग करकर सरल ह्रदय, विनम्र, सुशील बनकर देखिए! सारा जमाना आपके साथ खड़ा होगा !
अपने कर्तव्य पूरे करते जाओ जैसा भगवान कृष्ण ने गीता में कहा “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कडचन!” फल की इच्छा से रहित होकर कर्म करो- इनके लिए मैंने इतना किया तो यह बदले में मेरे लिए क्या करेगा: इस भावना का परित्याग कीजिये ! जिस जगह अपनापन है चाहे वह घर परिवार हो! ऑफिस हो, आपका बिज़नेस हो! वही सम्रद्धि ओर सफलता खुशियां आती है वर्ना जिंदाबाद मुर्दाबाद के नारे लगने में देर कितनी लगती है!
इसलिए अपने व्यक्तित्व में! अपनी आदतों में सुधार लाएं, आत्मचिंतन ही एक ऐसा दर्पण है जिसमे देखकर आप स्वयम को निखार सकते है : अपना उद्धार स्वयम ही करेंगे: सदगुरु की शरण इसमें अहम भूमिका निभाती है क्योंकि वह ही अनुशासन में ढालकर ओर पवित्र विचारों से भक्ति से जोड़कर आपको ऊंचा उठने में मदद करते हैं! इसलिए गुरु के शरणागत होकर जीवन को! रिश्तों (संबंधों) को आनंद व प्रसन्नता से भर लीजिए !