गुरु अनुशासन में करें सफ़ल मंत्र जप | Sudhanshu Ji Maharaj

गुरु अनुशासन में करें सफ़ल मंत्र जप | Sudhanshu Ji Maharaj

गुरु अनुशासन में करें सफ़ल मंत्र जप

गुरु अनुशासन में करें सफ़ल मंत्र जप

स्तुति, प्रार्थना, उपासना, आराधना पद्धतियों में मंत्र साधना का अपना विशेष महत्व है। मंत्रों में जीवन की शक्तियों का जागरण हैं, मंत्रों के उच्चारण, मंत्रों के गायन, जप चिंतन-मनन धारण से मनुष्य अपने भीतर महान् शक्ति की अनुभूत पाता है। मनुष्य के प्राण, इंद्रियां, बुद्धि, अंतःकरण एवं स्नायुतंत्र शुद्ध होते हैं। यही मंत्र का अपना विज्ञान है। इसके प्रभाव से जीवन में रूपातंरण आता है, जीवनी शक्ति जगती है। इसीलिए प्राचीनकाल से हमारे ऋषि-मुनि मंत्रनुष्ठान करते आ रहे हैं।

मननात् मंत्रः

मननात् मंत्रः अर्थात् मनन करने से जीवन में मंत्र की शक्ति जागृत होती है। विचारों की चेतना से ही मनुष्य महान् बनता है। विश्व में अनेक महापुरुषों ने इसीलिये मंत्र को विचारों का विज्ञान भी कहा है।

‘‘विचारों में व्यक्ति के रूपातंरण की शक्ति होती है। यह मनुष्य पर निर्भर है वह इसका किस रूप में प्रयोग करता है। विचारों के अच्छे होने से मनुष्य का उत्थान होता है, जीवन में प्रखरता आती है। सत्संग, स्वाध्याय, महापुरुषों एवं भगवान के साथ अंतरात्मा से संबंध जोड़ने की प्रक्रिया भी मंत्र प्रयोग से ही सम्भव बनती है। एक विचार को अपने जीवन का लक्ष्य बनाकर उसको सफलता तक पहुंचाना मंत्र सिद्धि है।’’ महात्मा गांधी ‘सत्य’ और ‘अहिंसा’ ये दो शब्द लेकर चले, महात्मा बुद्ध ‘करुणा’ लेकर चले, महावीर स्वामी ने ‘‘जियो और जीने दो।’’ अहिंसा परमोधर्मः को अपनाया और एक शब्द पर की गयी जीवन साधना से वे अलग ढंग से पहचाने गये। रविन्द्रनाथ टैगोर ने ‘‘उत्सव आमार जाति, उत्सव आमार गोत्र’’ का संदेश दिया। इससे स्पष्ट है कि किसी एक महान विचार व शब्द को जब व्यक्ति जीवन का लक्ष्य बनाकर पूरी श्रद्धा के साथ अपनाता है, तो उसके जीवन में रूपांतरण आता है, मंत्र सिद्धि भी यही है। लोग मंत्र जाप गहराई से करते हैं, तो उसे शक्तियां मिलती हैं, जीवन बदलता है।

मंत्रशक्ति का विज्ञान

अर्थात् मंत्र का मनन करने, चिंतन करने, विचार करने और तदनुरूप आचरण करने से उसकी सिद्धि होती है। शक्ति जागृति होती है। मंत्रशक्ति का यही विज्ञान है। हमारे पूर्वज गौतम, कणाद, वशिष्ठ आदि ऋषि-महर्षियों ने मंत्रों की साधना से जीवन के साथ समाज को भी उच्च धरातल पर प्रतिष्ठा दिलाई। गायत्री मंत्र के प्रभाव से दुर्वासा आदि ऋषियों ने अद्भुत शक्तियाँ प्राप्त कीं। रामानुजाचार्य, निम्बकाचार्य, माध्वाचार्य आदि ने अलौकिक आत्मबल प्राप्त करके ईश्वरीय शक्तियों का दर्शन किया। इस धरा पर असंख्य व्यक्ति मंत्र जप से धार्मिक, आस्तिक तथा ईश्वरभक्त बने। मंत्र जप से मनुष्य में आत्मशुद्धि आती है और वह बहिर्मुखी से अंतर्मुखी बनता है। दैवी शक्ति का स्वामी, सर्वसमर्थ बनता है और मनुष्य की श्रद्धा, भक्ति में पूर्णता आती है।

मंत्र जप स्वयं एक चमत्कारी शक्ति है, जितना अधिक जप किया जाता है, जितना विश्वास और श्रद्धा से करते हैं, उतना ही व्यक्ति फल प्राप्त करता है। गुरु निर्देशित, गुरु अनुशासन में गुरु द्वारा दिये मंत्र का जप करने से जीवन भटकन से बचता, सुख-समृद्धि-सौभाग्य से भरता और जन्मों के बंधन टूटते हैं। शास्त्रों का मत है कि जप को गोपनीय रखें, जप के लिये गौमुखी जैसे वस्त्र का प्रयोग करें।

अर्थात् गौमुख के समान कपड़े की एक थैली में जपकर्ता माला लेकर इसी गौमुखी में जाप करे, तो उत्तम फल मिलता है। मंत्रजप के समय आलस्य, जम्हाई, निद्रा, छींक, थूकना, अनावश्यक बार-बार अंगों के स्पर्श तथा क्रोधादि से बचना चाहिए। क्योंकि इससे साधक की ऊर्जा अवरुद्ध होती है।

जप सम्बन्धी सावधानियां:

*        जप में मिथ्या भाषण व अनावश्यक चेष्टायें न करें।

*        साधना व उपासना स्थल को पूर्ण सात्विक रखें।

*        पूजा स्थल को देवताओं, महापुरुषों, संतों के चित्रें से सुसज्जित करें, इससे भावनायें ऊर्ध्वागामी बनती हैं।

*        प्रेरणादायक मंत्रों की सूक्तियों एवं सद्गुरु के वचनामृत वाक्यों के स्टीकर लगायें।

*        मंत्र जप करते समय उसके अर्थ का भी चिंतन करते रहें।

*        मंत्र जप में एकाग्रता लाने और शक्ति उत्पन्न करने के लिये भगवान, ईश्वर, सद्गुरु के गुणों का चिंतन करें।

*        मंत्र पर श्रद्धा भावना दृढ़ करने, सद्गुणों को अपने अंतःकरण में स्थापित करने से मंत्र अंतःकरण में स्थापित होने लगता है।

*        मंत्र जप के समय जपकर्ता का मुख दक्षिण दिशा में न होकर पूर्व, पश्चिम अथवा उत्तराभिमुख हो।

*        जप साधक हर समय अंतःकरण में पवित्र भाव, मन में श्रद्धा-भक्ति व व्यवहार में सहनशीलता पैदा करे, इससे जीवन में स्वतः बदलाव आता है।

*        साधक का आहार-विहार सात्विक हो।

*        मन की शुद्धि, भावों में पवित्रता, संयम, वैराग्य, व मंत्रर्थ का बोध सदैव बना रहे।

*        मंत्रजप के समय चित्त स्वस्थ, शांत हो। यथा सम्भव अंतःकरण गुरुधाम, गुरुचिंतन से जोड़कर रखें।

*        मन की अशांति, चिंता, उत्तेजना, भय व संदेह मंत्र से उत्पन्न ऊर्जा को नष्ट करते हैं, अतः इनसे बचें।

*        जप के समय जहां तक सम्भव बने एक स्थान पर स्थिर होकर ही बैठे।

इस प्रकार गुरु एवं शास्त्रों द्वारा बताये अनुशासन के अनुरूप जो साधक नियमित मंत्र जप के साथ स्वाध्याय, श्रेष्ठ महापुरुषों का चिंतन-मनन करता और सरल- सहज-प्रसन्नतापूर्ण व्यवहार अपनाता है। उसकी साधना सफल होती है और जीवन में सौभाग्य प्रकट होते हैं। ●

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