ध्यान एक ऐसी क्रिया है जो कि नही जाती ,स्वयम घटित होती है -जिस प्रकार नींद को लाया नहीं जाता! मस्तिष्क खाली हो जाये तो अपने आप नींद आ जाती है! बिल्कुल यही ध्यान में होता है! जब हम निर्विचार हो जाते हैं तभी हमारा ध्यान लगना संभव है !
परंतु वास्तविकता यह है! कि जब हम ज्ञानी ध्यानी सिद्ध पुरुष यानी सतगुरु के चरणों मे बैठकर ध्यान करने का प्रयास करते हैं तब अलग ही अनुभूति होती है! उस समय गुरु की ऊर्जा भी अपना काम कर रही होती है, हमे भर रही होती है जिसका हमे अहसास ही नही होता !
सतगुरु के समक्ष बैठकर ध्यान करने से उनको कोई निजी लाभ नहीं होता लेकिन वह तो आपके ही भले के लिए ध्यान सिखाते हैं! गुरु द्वारा निर्देशित ध्यान करने से आपके जन्मों के पाप ताप नष्ट होते हैं और आपकी आध्यात्मिक उन्नति होती है! आपकी ऊर्जा सकारात्मक होती है, आपके विकार नष्ट होते हैं और आप अपने नवजीवन का निर्माण करने योग्य बनते हैं!
इसलिए साधारण रूप से विधियां सिखाने वाले जो आजकल केंद्र चल रहे हैं , वहां आपको ध्यान का वास्तविक अनुभव नहीं हो पता! वास्तव में वह ध्यान नहीं होता , वह कुछ क्रिया करवाकर कुछ समय के लिए आपका मस्तिष्क तो शांत कर देंगे परंतु जैसे ही आप अपने उसी वातावरण में जाओगे आप फिर उसी स्थिति में पहुंच जाओगे !
इसलिए वास्तविक ध्यान की अनुभूति प्राप्त करनी है तो गुरु के चरणों मे बैठना होगा उन्होंने जो कुछ अपनी तपस्या से , भक्ति से, जीवन के अनुभवों से पाया है, वह सब आपको दे देना चाहते हैं! गुरु ने अनेक महान पुरुषों के सानिध्य में रहकर जो कुछ सीखा है, वह अनमोल उपलब्धि है जिसको कही से पाया नही जा सकता !
गुरु जब साधक पर, अपने शिष्य पर प्रसन्न होते हैं! तो अपना सारा रहस्यमय ज्ञान भी उसको अर्पित करने को तैयार हो जाते हैं ! महत्वपूर्ण है! कि शिष्य स्वयं को गुरु चरणों में पूरी तरह समर्पित करके ध्यान सीखने बैठे तब उसको अधिक लाभ मिलता है! स्वयं को गलाना होता है, अपना अहंकार ,अपनी अकड़ सब कुछ छोड़कर भूल जाना होता है कि मैं क्या हूँ ! जो कुछ हूँ गुरु का हूँ -गुरुमय हो जाए !
जैसे सूरजमुखी का फूल सदैव सूरज की ओर मुंह किये रहता है! -जिधर सूर्य घूमता है ,फूल का मुंह भी उसी दिशा में होता जाता है! बस ऐसे ही गुरुमुख हो जाओ , हर श्वांस में गुरु का ही नाम ,हर धड़कन गुरु को याद करना! जब ऐसी पात्रता विकसित हो जाएगी तो गुरु अपनी रूहानी दौलत का खजाना आपको पकड़ा देंगे !
इसलिए जब भी अवसर मिले, गुरु निमंत्रण देते हैं! कृपावश की आ जाओ -बैठेंगे साधना में ,ध्यान में ,चाहे हिमालय के पर्वत हो या अन्य कोई स्थान गुरु के आदेश का पालन करते हुए पहुंच जाओ और खज़ाना लेकर वापस आओ ,भर देंगे आपको वह !
सदगुरु के सानिध्य में बैठकर की गई साधना साधरण नही होती -जन्मों की तपस्या का फल होता है! जब हमें ऐसा अवसर प्राप्त होता है! उनके आभामंडल में बैठने मात्र से ही आपके अंदर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है! और आपके अंदर जाग्रति आती है! इसलिए सीखो ,जानो, ओर जीवन को उन्नत बनाओ !