आत्मा परमात्मा का ही अंश है , हम इस दुनिया मे आये हैं अपने कर्मो का फल भोगने ओर आत्मा का शुद्धिकरण करने। इसलिए हर सम्भव प्रयत्न यही करना है कि जन्म जन्मान्तरों के मल विक्षेप को शुद्ध करके आत्मा को पवित्र बनाया जाए : क्योंकि पवित्र शुद्ध आत्मा ही परमात्मा की गोद मे बैठने के काबिल हो सकती है ।
शुद्धिकरण का सबसे मुख्य उपाय है कि हम जप, तप, साधना द्वारा इसमें जमा हुए पाप तापों को नष्ट किया जा सकता है। गुरु द्वारा दी गयी विधियां ही इसके लिए सहायक सिद्ध होती हैं ।
गुरु हमे विभिन्न मार्गों द्वारा प्रभु के द्वार तक पहुंचने का उपाय बताएंगे । दान, धर्म, साधना के अलावा कोई उपाय नहीं हैं शुद्धिकरण का ओर तब तक जीव यूं ही भटकता रहेगा संसार मे , विभिन्न योनियों में जन्म लेना, फिर मरना :: यह जन्म मरण का चक्कर खत्म नही हो सकता !
इसलिए ईश्वरीय आनंद को प्राप्त करना है तो अपनी आत्मा का शुद्धिकरण कीजिये, प्रभु तो अपनी कृपायें लगातार बरसा रहे हैं, हम ही अपना पात्र उल्टा करके बैठे हैं : जब तक पात्र सीधा नही होगा तब तक अम्रत उसमे कैसे इकट्ठा हो पायेगा ।
प्राचीन समय मे राजा महाराजा भी अपने राज्य का परित्याग करके वन में चले जाते थे तपस्या करने के लिए यानी अपने जीवन का उद्धार करने और अपने पाप तापों को जलाकर शुद्ध होने के लिए – जिससे अगले जन्म में शुद्ध होकर ही इस धरा पर आये या मोक्ष ही प्राप्त हो सके ।
संसार के सारे सुख क्षणिक हैं, एक समय ऐसा आता है जब इसका रस जाने लगता है , परम रस तो परमात्मा ही है , उसकी भक्ति, उसका ध्यान, उसी में लीन रहना – यही वास्तविक आनंद भी है और शांति भी । इसलिए अपने जन्मो के कर्मों के बीज को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए साधना द्वारा ओर लीन हो जाना चाहिए परम की भक्ति में यही जीवन की सत्यता है ।