दयालु कृपालु देव सर्वशक्तिमान सच्चिदानंद स्वरूप मेरे परमेश्वर हे घट घट वासी अंतर्यामी! अपने हृदय मंदिर में हम आपका स्वागत करते हैं अभिनंदन करते हैं अपने परम आनंद के, शक्तियों के साथ पधारो प्रभु।
हमें आनंद से परिपूर्ण कीजिए आपकी शक्ति तो सर्वत्र है हम अशक्त होकर इस संसार में बहुत दुर्बल अनुभव करते हैं हमें आपकी कृपा की शक्ति की आवश्यकता है।
हे प्यारे ईश्वर! अनंत प्रेम आपका इस पूरे संसार में सर्वत्र है इसी आकर्षण से बंधी है धरती आकर्षित करती है अपनी ओर चीजों को सूर्य भी चंद्र भी सब में आकर्षण है प्रेम का सब अपनी ओर खींच रहे हैं हमारे अंदर का वह प्रेम वह आकर्षण कम हो रहा है, न हम अपनी और किसी रिश्ते को बांध पाते हैं ना उसको रोक पाते हैं ऐसा लगता है कि हर वस्तु का हम इस्तेमाल कर लेना चाहते हैं प्रयोग कर लेना चाहते हैं जिसके कारण स्वार्थ अधिक है और प्रेम नहीं हमें वह सच्चा प्रेम दो जिस प्रेम के धागे में प्रभु हम आपसे बंध जाएं और आपको अपने से बांध लें।
इस संसार में जो भी हमारे कर्तव्य कर्म हैं प्रेमपूर्वक उन्हें निभाते हुए हम आपके धाम तक पहुंच सकें हमारी मुस्कुराहट सदा कायम रहे हमारा आनंद कभी कम न हो जीवन की सफलताओं के साथ हम परलोक में भी सफल हो सकें, लोक भी सुधरे परलोक भी सुधरे हम सबका कल्याण हो वही मार्ग हमें दर्शाइए प्रभु और आपके दर से जुड़े हुए जितने भी भक्त हैं जिस जिस कामना को लेकर बैठे हैं भगवान सबकी कामना पूरी करना सबकी झोलियां भरना सबके कष्ट हरना सब पर कृपा दृष्टि रखना प्रार्थना को स्वीकार करना।
ॐ शांति: शांति: शांति: ॐ