सनातन धर्म मे यज्ञ का बहुत अधिक महत्व है : जब हम अग्नि प्रज्वलित करके उसमें आहुतियां प्रदान करते हैं, वही यज्ञ कहलाता है !
सबसे पहले अग्निदेव का आह्वाहन किया जाता है, दो आरंडियों को घर्षण करके अग्नि प्रज्वलित की जाती है , फिर उसको नारियल के केश व रुई के साथ बढ़ाया जाता है और फिर हवन कुंड में स्थापित करते हैं, यह तो हुई अग्नि स्थापना !
उसके बाद जिस भी यज्ञ की भावना से आहुतियां दी जाती हैं, वह भिन्न भिन्न होते हैं !पुराने समय से हमारे ऋषि मुनियों ने यह परंपरा स्थापित की, घने जंगल मे बैठकर साधना करते हुए यज्ञ में मंत्रोच्चार के साथ आहुतियां प्रदान करना आवश्यक था !
यज्ञ हमारी प्रतिदिन की पूजा में शामिल होना चाहिए : जिस कामना को लेकर यज्ञ करते हैं वह बड़े स्तर का होता है जैसे राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि महायज्ञ किया – जो वरदान उन्हें कहीं से नही प्राप्त हुआ वह यज्ञ के फलस्वरूप मिला और उनके घर मे स्वयम नारायण ने बालक रूप में जन्म लिया !
अर्थ यह है कि जब कामना को लेकर यज्ञ किया जाता है तो वह वैसा ही फल देता है परंतु नित्य प्रति कोई भी जाप, चाहे महामृत्युंजय का हो, गायत्री जाप हो, या अन्य – वह आपकी साधना , अनुष्ठान को पूर्ण करने का माध्यम है !
दीपावली से पूर्व हम लोग माता लक्ष्मी और बुद्धिदाता गणपति की विशेष आराधना करते हैं और गुरुदेव विशाल स्तर का 108 कुंडीय यज्ञ भी आयोजित करते हैं, जिनमे लाभ अवश्य लेना चाहिए !
किसी भी प्रकार की रिकत्ता न आये, विश्व मे सुख शांति का वातावरण रहे, इसी भावना को लेकर गुरुदेव यह यज्ञ आयोजित करते आ रहे हैं वर्षों से, जिसमे अनेक भक्तों ने भाग लेकर अपने सौभाग्य को जगाया है !
मंत्रों का उच्चारण ,उसके साथ ही घी व सामग्री की आहुतियां : जब इकठ्ठे होकर सामूहिक जाप चलता है, उस स्थान का विशेष कई गुणा प्रभाव पड़ता है । आपके रोग, शोक तो दूर होते ही हैं- पर्यावरण भी शुद्ध होता है-इसका प्रभाव धरती तक ही नही रहता : दूर ब्रह्मांड तक यह प्रभाव डालता है !
इसलिए अपनी प्राचीन परंपराओं को जीवित रखिये, जाप करे, मंत्रोच्चार करे, हवन करें, वह भी जब प्रबुद्ध सदगुरु के सानिध्य में हो, तो चमत्कारिक प्रभाव देखने को मिलता है – इसलिए इस अवसर का लाभ लेते हुए महायज्ञ में अवश्य भाग लीजिए!