कर्म से आयी थकान को दूर करने, कर्म में दिव्यता की ऊर्जा लाने के लिए गुरु एवं गुरुधाम की महत्ता का बखान अनन्त काल से होता आया है। इसीलिए संतगण व ऋषि स्थान-स्थान पर आश्रम, आरण्यक, तीर्थ एवं गुरुकुलों का निर्माण करते रहे हैं। इसी पुण्य परम्परा को पूज्य सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज ने फलित किया है। आनन्दधाम आश्रम में ट्टषियों का आशीर्वाद है, संतों का तप, सद्पुरुषों की साधना, देवताओं की कृपा। ऐसे अजड्ड दैवी प्रवाह से आनन्दधाम आश्रम में आने वाले शिष्य-भक्तों के जीवन में दिव्य संकल्प फलित होते स्पष्ट देखे जा सकते हैं। ईश्वरीय आस्था, आध्यात्मिक समृद्धि, गुरु कृपा से ओत-प्रोत प्रवाह झरता रहता है।
आश्रम के कण-कण से भव्य मन्दिर, अस्पताल, आदर्श गौशाला, गुरुकुल, उपदेशक महाविद्यालय, ओंकार कुटिया, वृद्धाश्रम, झील, सिद्धशिखर, ईश्वरीय गान गुनगुनाते पक्षी, यज्ञशाला में नियमित यज्ञ की सुगन्धि वानप्रस्थ-वृद्ध आश्रम, वैदिक व लौकिक स्वर में मंत्र पाठ, भजन, सिमरन, ध्यान, जप, योग प्रवचन और मुस्कुराते, खिलखिलाते सुगन्ध बिखेरते फूलदार औषधीय पौधे यह सब परिसर के वैदिक-धार्मिक आध्यात्मिक अस्तित्व व देवमय कर्मसिद्धि, सद्गुरु की तपःस्थली व मानव निर्माण की प्रयोगशाला होने का एहसास कराते हैं।
इससे भी महत्वपूर्ण है तपस्वी संत पुरुष अभिभावक का प्रत्यक्ष मार्गदर्शन व आशीर्वाद जो हर आश्रमवासी को प्रतिपल मिलता है। प्राणों से भी प्रिय ऐसे सद्गुरु के दर्शनों के लिए प्रतिदिन तांता लगा रहता है। प्रत्येक पूर्णिमा के पावन दिन सैंकड़ों शिष्य यहां गुरुआरती, पादपूजन करके अपना पुण्य जगाने आते हैं। वास्तव में आनन्दधाम आश्रम एक सर्वमान्य तीर्थ है। धार्मिक, सांस्कृतिक गतिविधियों का अनूठा केन्द्र होने के साथ- साथ सम्पूर्ण विश्व की आध्यात्मिक चेतना का केन्द्र है।
विश्व जागृति मिशन द्वारा मानव सेवा की विभिन्न गतिविधियों का संचालन एवं मिशन के विविध केन्द्रों का प्रबन्धन यहीं से किया जाता है। वास्तव में जीवन की व्यस्तताओं में भौगोलिक दूरियों के कारण जिन लोगों का हिमालयी तीर्थों तक जाना सम्भव नहीं हो पाता, उनके लिए आनन्दधाम आश्रम हिमालयी चेतना केन्द्र है।
जहां साधक समस्याओं, परेशानियों का, कष्ट कलेशों का निवारण पाते व सुख-शान्ति की शुभ आध्यात्मिक तरंगों की अनुभूतियां पाते हैं।
पूज्यवर स्वयं कहते हैं कि जन-जन की ऋषियों में ईश्वरीय आस्था बढ़े, परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त हो, सबके घर मंदिर बने, घरों में प्रभु के पावन नाम का गुणगान होता रहे, मन सर्वदा परमप्र्रभु के साथ जुड़ा रहे तथा सेवा के लिए सुयोग मिले, यही सब संकल्प पूर्ति का तीर्थ है यह धाम।
आनन्दधाम के सहारे ही साधक-शिष्य अपने घर में गुरुस्थली बनाकर गुरुकृपा का लाभ लेते और अपनी नियमित साधना की पूर्णाहुति आश्रम के यज्ञों में करते हैं। इस तीर्थक्षेत्र में श्रीमद्भगवत सप्ताह, देवी कथा, श्री शिवपुराण कथा, गीता, वेदोपनिषद पर सत्संग, धर्म अनुष्ठान एवं गौ सेवा, वृद्ध सेवा का क्रम सतत चलता रहता है।
गुरुवर परिसर में रहते हैं तो वे स्वयं मंदिर के सािÂध्य में पूजा अर्चना, गौसेवा, सत्संग करते एवं अपने विश्वभर के शिष्यों के लिए यहीं से शुभकामनायें प्रेषित करते हैं। इसलिए यह शुभमंगल कामना का केन्द्र भी है।
देश भर में जिन शिष्यों का जन्मदिन, विवाह दिन आदि होते हैं, उनके लिए यहां से गुरु आशीष प्रेषित होता है और मांगलिक कार्यों जैसे यज्ञोपवीत, विवाह वर्षगांठ, किसी के स्वजनों की पुण्यतिथि आदि के अवसर पर गुरुकुल के विद्यार्थियों द्वारा यज्ञ-सत्संग आदि की व्यवस्था की जाती है।
क्षेत्र व देश-विदेश में फैले शिष्यों के हित हेतु यहां यज्ञ, पूजा, पाठ, अनुष्ठान, शिव रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय मंत्र, गायत्री, गोपूजन, मंत्र पाठ, नवग्रह शान्ति, नामकरण, यज्ञोपवीत, गृहक्लेश निवारण आदि का पूजन चलता ही रहता है।
इस प्रकार गुरुतीर्थ आनन्दधाम को आध्यात्मिक युगतीर्थ व साधना स्थली कह सकते हैं। जहां की प्रत्यक्ष एवं मानसिक यात्र करने वाले श्रद्धालु साधकों- शिष्यों तक की सम्पूर्ण शुभ मनोकामनाओं की पूर्ति सहज होती देखी जाती है। आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक तीनों तापों से मुक्ति का अवसर इस तीर्थ के ध्यान मात्र से मिलता है। आइये! हम सब भी इसका लाभ लें, जीवन धन्य करें।